Chaman Netam

Nov 28, 20222 min

जानिए एक ऐसे फल के बारे में जो मनुष्य और जानवर दोनों के लिए लाभदायक है

आदिवासी प्रकृति का पूजा करते हैं इसलिए वे प्रकृतिवादी कहलाये। यही प्रकृति आदिवासियों की पहचान बनी। जल, जंगल, जमीन यही आदिवासियों का सब कुछ है। जल जंगल जमीन हम सब के जीवन दायिनी हैं तो आदिवासी इनका संरक्षण व संवर्धन भी वर्षों से करते आए हैं ।

मनुष्य शरीर हो या किसी अन्य प्राणी जैसे गाय, बैल, बकरी, भैंस आदि का शरीर। सभी के लिए वात, कफ, और पीत ये तीनों का शरीर में संतुलन बना रहना बहुत जरूरी है। किसी का भी संतुलन बिगड़ने पर हमारा शरीर बीमार पड़ जाता है। पारंपरिक रूप से हमारे बुजुर्गों ने मानव शरीर के वात, कफ, और पीत को मेंटेन रखने के लिए हमें हर्रा, बेहडा, आंवला आदि चीजों का प्रयोग करने का सलाह दिए हैं। पर इनके अलावा भी एक फल है ठेलका जो शरीर को स्वस्थ रखने में काफ़ी मददगार है।

ठेलका एक तरह का पेड़ है जो छत्तीसगढ़ के गावों में आसानी से देखा जा सकता है। यह पेड़ साल भर हरा भरा दिखाई देता है, इसमें ठंड के शुरूआत में फल भी लगते हैं, इसके फल हुबहु नींबू के समान दिखाई देते हैं। किन्तु आकार में बड़ा होते हैं, ये पकने पर हल्का पीला और लाल रंग में दिखाई देते हैं।

वृक्ष में लगे ठेलका के फल

ठेलका के फल एक जंगली फल है जिसमें बहुत सारे औषधीय गुण हैं। यह पाचन शक्ति को मजबूत बनाने में सहायक होते हैं। ठेलका को सब्जी बनाकर भी खाया जाता है, इसके फल के उपरी भाग को अच्छी तरह छिलकर फल के बीच भाग को काट कर बीज को बाहर निकाल कर छोटे-छोटे टुकड़े कर के हल्का सा नमक और हल्दी गर्म पानी में उबाला जाता है जिससे फल के कसावट निकल जाती है। उसके बाद सब्जी बनाई जाती है, यह ठेलका का सब्जी सेहत के लिए फायदेमंद है। इससे डायबिटीज के मरीजों के लिए भी बहुत ही मददगार होता है।

ग्रामीण अंचल में बहुत कम ही लोग वर्तमान समय में इस फल को सब्जी के उपयोग में लाते हैं । ज्यादातर इनका उपयोग जब पशुओं का तबीयत बिगड़ जाता है तब किया जाता है। आदिवासी घरों में एक या दो ठेलका फल ज़रूर रखे हूए रहते हैं । धान कटाई के बाद गाय, बैल, बकरी, भैंस को हरा चारा आसानी से मिलता है, ठंड के मौसम में इन पशुओं को पेचीस जैसी समस्याओं से गुजरना पड़ता है, पशुओं के पाचन शक्ति को मजबूत करने के लिए ठेलका को आग में भुनकर उसमें नमक मिलाकर पशुओं खिलाया जाता है, इस फल को दो या तीन दिन तक लगातार खिलाने से समस्या दूर होने लगती है। ठेलका के बारे में हमारे साथी 'तिरु.गौतम मण्डवी जी बताते है कि 'हमारे क्षेत्र में इसको बावासीर के समस्याओं से निजात पाने के लिए भी उपयोग में लाते हैं।'

आधुनिक विज्ञान आज जिन बीमारियों का दवा विकसित कर रहा है, उन बीमारियों का इलाज आदिवासियों ने हज़ारों साल पहले ही ढूंढ लिए थे। हम आदिवासी युवाओं की यह ज़िम्मेदारी है कि अपने पारम्परिक ज्ञान को सीखकर इसको बचाने की पुरजोर कोशिश करें।

नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।