Tara Sorthey

Jul 4, 20223 min

हाथियों के झुंड के आने से तेंदू पत्ता के संग्रहण में आई कमी

साल भर में एक बार मई-जून के महीने में हरा सोना यानी तेंदूपत्ता संग्रहण करने का काम किया जाता है, जिसमें सभी आदिवासी महिला पुरुष बच्चे बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं, और एक प्रकार से कहा जाए तो उनके आर्थिक स्थिति को सुधारने में यह हरा सोना अहम भूमिका निभाता है। महुआ, चार, साल बीज, तेंदू जैसे वन लघु उपज के बाद अंत में तेंदूपत्ता संग्रहण करने का मुख्य कार्य आदिवासी क्षेत्रों में किया जाता है, तेंदूपत्ता संग्रहण करने का कार्य 8 से 10 दिन का होता है, संग्रह करने के दौरान कभी-कभी खराब मौसम होने के कारण रुकावटें आ जाती हैं, जिसके कारण मुश्किल से 7 से 8 दिन लोगों द्वारा तेंदूपत्ता संग्रहण किया जाता है, लेकिन इस वर्ष मौसम के साथ साथ हाथियों के पहुंचने से तेंदूपत्ता संग्रहण में रुकावट आ गया।

हाथियों के पहुंचने से लोगों में दहशत आ गया है, वन विभाग द्वारा गाँव में यह बुनियादी कराने के लिए कहा गया कि कुछ दिनों के लिए तेंदूपत्ता संग्रहण का कार्य बंद करवाया जाए ताकि लोग इन हाथियों से स्वयं को सुरक्षित रख पाए। हाथियों के पहुंचने से गाँव के लोगों में दहशत फैल गई। हालांकि हाथी सिर्फ जंगलों में ही थे, बस्ती के अंदर नहीं आए, और न ही जन-धन को हानि पहुंचाए।

गॉंव किनारे पत्ता तोड़ता एक व्यक्ति

ग्राम वासियों का कहना है, कि इतने सालों में हमने कभी भी इतने कम तेंदूपत्ता का संग्रह नहीं किया है, पिछले कुछ सालों में भले ही मौसम की वजह से कुछ रुकावटें हुआ करती थी। लेकिन इस वर्ष हमने केवल दो ही दिन तेंदूपत्ता का संग्रहण किया और हाथियों के झुंड आने से तेंदूपत्ता का संग्रहण करने में काफी दिक्कत हुई, लोग जंगलों के आसपास भी नहीं जा रहे हैं, गाँव में अभी भी विवाह षष्ठी जैसे कार्यक्रम हो रहे हैं, जिसमें अधिकतर साल वृक्ष के पत्तों से बने हुए दोना पत्तल का प्रयोग किया जाता है, तो लोग इन पत्तों को भी इकट्ठा करने में असफल हो रहे हैं। मई-जून के महीने में तेंदूपत्ता संग्रहण करने के साथ-साथ साल फल को भी इकट्ठा करते हैं, सूखे तेंदू, भेलवा और चार जैसे फल को इकट्ठा कर अपने घर में संरक्षित रखते हैं। जंगलों में अभी तक छोटे-मोटे जानवर तो आते-जाते थे लेकिन इस वर्ष हाथियों ने अपना डेरा हमारे जंगलों पर डाला है, जिनके कारण हम जंगलों से सूखी लकड़ियों को भी इकट्ठा नहीं कर पा रहे हैं, जंगलों में हाथियों का आना हमारे लिए बहुत बड़ी समस्या बनी हुई है। हालांकि हाथी हमेशा के लिए इस जंगल पर नहीं आए हैं, वे एक जगह से दूसरी जगह आते जाते रहते हैं, लेकिन यह समय वन लघु उपज संग्रहण करने का समय होता है, जिस पर रुकावट आ गई है।

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ग्राम पंचायत बिंझरा कि निवासी श्रीमती तिलकुंवर जी का कहना है कि "हमारे घर में 4 सदस्य हैं, जिनमें से इस वर्ष केवल 2 सदस्य के द्वारा ही तेंदूपत्ता का संग्रहण किया गया हमारे द्वारा कुल 450 तेंदूपत्ता संग्रहण किया गया है, कहा जाता है, कि तेंदूपत्ता संग्राहक को कम से कम 500 बंडल तेंदूपत्ता तोड़ना अनिवार्य होता है। 500 तेंदूपत्ता तोड़ने पर ही संग्राहक को वन लघु उपज से संबंधित अन्य योजनाओं का लाभ दिया जाता है, लेकिन इस वर्ष हमारे द्वारा केवल 450 बंडल ही तेंदूपत्ता संग्रहण किया गया, महुआ का फूल बेचने में जितना मुनाफा होता है, उससे कहीं अधिक मुनाफा हमें तेंदूपत्ता संग्रहण करने में होता है, क्योंकि तेंदूपत्ता बेचने पर हमें राशि 4 से 5 गुनी प्राप्त होती है, अगर हमारे द्वारा 100 बंडल तेंदूपत्ता संग्रहण किया जाता है तो उसके बदले ₹400 प्राप्त किया जाता है, और साथ ही साथ बोनस भी मिलता है, जिस घर के लोगों द्वारा तेंदूपत्ता संग्रहण किया जाता है, अगर किसी कारणवश मुखिया का देहांत हो जाता है, तो अलग से राशि प्रदान की जाती है, और समय-समय पर चरण पादुका का भी वितरण प्रबंधकों द्वारा तेंदूपत्ता संग्राहक को किया जाता है। तेंदूपत्ता संग्राहको के बच्चों को यदि वे विद्यालयों में अध्ययनरत हैं, तो उन्हें स्कॉलरशिप जैसी सुविधा भी सरकार द्वारा दी जाती है। तेंदूपत्ता संग्रहण करने में बहुत सारे सुविधाएं दी जाती है। जिसके कारण आदिवासी लोग तेंदूपत्ता संग्रहण करने में काफी दिलचस्पी रखते हैं।"

नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।