Rakesh Nagdeo

Oct 12, 20202 min

पूरे छत्तीसगढ़ में मूर्तियों की कारीगरी के लिए मशहूर है यह गॉंव

छत्तीसगढ़ के ज़िला कोरबा में ग्राम पंचायत चैतमा वैसे तो काफी साधारण है लेकिन इस गाँव को नज़दीक से जानने से इसकी खूबी मालूम पड़ती है। यहां के निवासियों के ज़रिए हमने इस गाँव की कला और लोगों के कौशल को पहचाना। आधुनिकरण के दौर में जब सबकुछ केवल मिनटों में बनकर तैयार हो जाता है, उस दौर में तहसील पाली जैसे कई कारीगर धीरज और लगन से मूर्तियां बनाते हैं, यह काम महिलाएं और पुरुष दोनों मिलकर करते हैं।

फेकनराम प्रजापति की निगरानी में पूरा काम होता है | फोटो सोर्स- राकेश नागदेव

पर्व-त्यौहार में देवी-देवताओं के साथ इन कारीगरों को भी किया जाता है याद

पर्व-त्यौहारों का समय जैसे ही नज़दीक आता है, लोग देवी-देवताओं के साथ-साथ इन कारीगरों को भी याद करते हैं। पूजा प्रथाओं में इनके द्वारा बनाई मूर्तियों की मांग आसमान छू जाती हैं। पर्व से 6 महीने पहले ही मूर्तियां बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती हैं। मूर्तियों को बनाने के लिए मिट्टी बाहर से लाई जाती हैं।

कई वर्षों से चला आ रहा है मूर्ति बनाने का यह पारंपरिक काम

पुनीराम प्रजापति की मूर्तियां पूरे क्षेत्र में मशहूर हैं| फोटो सोर्स- राकेश नागदेव

गाँव में लगभग 70-80 वर्षों से यह पारंपरिक काम चला आ रहा है। इस व्यवसाय में पुनीराम प्रजापति का पूरा परिवार शामिल है। मूर्ति बनाने की पूरी प्रक्रिया फेकनराम प्रजापति के नेतृत्व में की जाती है। फेकनराम भले ही 80 साल के बुज़ुर्ग हो लेकिन बारीक-से-बारीक काम की देख-रेख वहीं करते हैं। कामों में वो मार्ग दर्शन करते हैं।

लोगों को पुनीराम की कारीगरी इतनी पसंद है कि पूरे क्षेत्र के ग्राहक पुनीराम से ही मूर्तियां खरीदते हैं। रजकम्मा के निवासी दिलेशवर आहिर से बात करने पर पता चला कि वह लगभग 10 वर्षों से पुनीराम के दुकान से भगवान गणेश की मूर्तियां लेते आ रहे हैं। पूरे क्षेत्र के लोग उनसे ही मूर्तियां खरीदते हैं। पंडरीपानी के पंचायत बिंझरा का नवयुवक समिति 12 सालों से गणेश स्थापना के लिए उनसे मूर्तियां खरीदते आ रहे हैं। खूबसूरत कला होने के साथ ही, पुनीराम की कारीगरी की इतनी महत्व इसलिए है, क्योंकि ये कला पारंपरिक तौर से एक खास जाति में प्रचलित है, इसलिए यह कला कुछ ही लोगों को आती है। यह कला पुरखों से चली आ रही है और इसके कारीगरों को बहुत सम्मान मिलता है। पुनीराम कहते हैं कि उनके परिवार के पालन-पोषण और देखभाल का खर्चा मूर्तियों को बेचकर आता है। यह उनका मुख्य व्यवसाय है और वह कोई दूसरा काम नहीं करते हैं। उनका छोटा सा खेत है, जिससे परिवार के लिए अनाज मिल जाता है। वह अपनी सफलता का श्रेय अपने परिवार को देते हुए कहते हैं, “अगर कोई भी काम मिलकर किया जाए तो सफलता ज़रूर मिलती है।”

लेखक के बारे में- राकेश नागदेव छत्तीसगढ़ के निवासी हैं और मोबाइल रिपेयरिंग का काम करते हैं। यह खुद की दुकान भी चलाते हैं। इन्हें लोगों के साथ मिलजुल कर रहना पसंद है और यह लोगों को अपने काम और कार्य से खुश करना चाहते हैं। इन्हें गाने का और जंगलों में प्रकृति के बीच समय बिताने का बहुत शौक है।

यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था