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इस प्रकार छत्तीसगढ़ के आदिवासियों ने पकड़ी बाँस से मछलियाँ

लेखक- खाम सिंह मांझी


आप जानते हैं कि मछलियों को बंसी या जाल डालकर पकड़ा जाता है। लेकिन, आज आप ऐसे तकनीक से रूबरू होंगे कि आप भी सोचेंगे कि पेड़ से ऐसे कैसे बन गया मछली पकड़ने का औजार!


बाँस को हरे सोने के नाम से जाना जाता है। बाँस काफी टिकाऊ होता है, इसलिए इसे विभिन्न प्रकार की चीज़ें बनाने के लिए बिलकुल उपयुक्त माना जाता है। बाँस के फर्नीचर, चटाई, ब्रश और हस्तकला से तो आप वाक़िफ़ होंगे। लेकिन क्या आप जानते है कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी इसे मछलियाँ पकड़ने के लिए भी उपयोग करते हैं? छत्तीसगढ़ के जंगलों में बाँस पर्याप्त संख्या में मौजूद होते हैं।


गाँववासी इसे काटकर “चोरियां” बनाते हैं। चोरियां बनाने के लिए कम से कम २०-२५ बाँस के पौधों की जरूरत होती है। चोरियां एक माध्यम की तरह काम करता है, जिसे पत्थरों और लकड़ियों से बंधे गए नदी के बीच में मज़बूती से बंधा जाता है। फिर चोरियां के अंत में कपड़े से बनाया गया झोंकनी बंधा जाता है। झोंकनी एक “कंटेनर” की तरह काम करता है, जिसमें चोरियां के द्वारा बहती हुई सारी मछलियाँ इकट्ठा हो जाती हैं।

चोरियां बनाने के लिए सबसे पहले बाँस को बीच से काटकर दो अलग भाग मिलते हैं। इन दो भागों को और पतले पट्टों में काटा जाता है। इनकी छीलाई करने के बाद इन्हें चोरियां के ढांचे में बिन्ना जाता है। बिन्ने की इस कला को स्थानीय भाषा में “पन्ना” कहा जाता है। बाँस के पट्टों को पन्ने के लिए रस्सी का भी उपयोग होता है। बाँस को काटकर लाने से लेकर पन्ने की क्रिया में ४-५ दिन लग जाते हैं।


जब चोरियां बिन्न के तैयार होता है, आदिवासी बंधु इसे नदी में उतारते हैं। इस काम में दो लोगों की जरूरत होती है। चोरियां को बंधे गाए डैम में अच्छे से टिकाया जाता है, ताकि छोटे- मोटे बाढ़ इसे बहा ना ले जाए।


चोरियां को एक दिन के लिए बिठाया जाता है। अगले दिन झोंकनी में फँसी मछलियों को निकाला जाता है। इस तकनीक से काफी मछलियाँ आसानी से पकड़ी जाती है। ज्यादा मछलियों को बेचकर आदिवासी बंधु जीवन यापन करते हैं।


क्या आपको मछली पकड़ने के और भी अनोखे औज़ार पता है?



लेखक के बारे में: खाम सिंह मांझी छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं। उन्होंने नर्सिंग की पढ़ाई की है और वह अभी अपने गाँव में काम करते हैं। वह आगे जाकर समाज सेवा करना चाहते हैं।


यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था

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