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ऐसे पीते है त्रिपुरा के आदिवासी यह नैसर्गिक दापा

Joyeal Debbarma

त्रिपुरा की आदिवासी लोक सदियों से अपने हाथों से चीज़ें तैयार करके अपनी ज़रूरतें पूरी करते आ रहे है। चटाई से लेकर बर्तन तक, लोग यहाँ बाज़ार पर निर्भर न होकर खुद ही इन चीजों को बनाकर इस्तेमाल करते है। इन हाथों से बनाई गयी चीजों में से एक अद्भुत चीज़ है दापा।

बांस का बना हुआ दापा


त्रिपुरा के आदिवासी इस दापा को घर पे बनाते है और इसका उपयोग मज़े के लिए भी, और औषधि के रूप में सर्दी और ज़ुखाम के लिए भी किया जाता है। यह पहले बहुत लोग इस्तेमाल करते थे, लेकिन आज कल ज़्यादातर बड़े बुजुर्ग इसका उपयोग करते है, और यह ज़्यादा घरों में देखने नहीं मिलता।


ऐसे बनाते है दापा


इनको बनाने के लिए जंगल में जाकर बांस काट के लाना पड़ता है, जिसके बाद उसे सफ़ाई से दोनों ओर से काटा जाता है। इसके बाद बांस की ट्यूब में एक छेद काटते है, जिसमें बांस का एक चोटी सी ट्यूब को घुसा देते है।

इस दापा को बिना दुमा के इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। दुमा को बाज़ार से ख़रीदा जाता है और यह 10₹ प्रति 100 ग्राम के दर पे बेचा जाता है। दुमे में बहुत मिठास होती है, हालांकि इसे देखकर ऐसे नहीं लगता। दुमा को रखने के लिए मोती की भी ज़रूरत होती है। यह बाज़ार से 20₹ में मिल जाता है।

दुमा


कैसे पीते है दापा


दापा, दुमा और मोती लाने के बाद, दुमा को मोती में डालकर दापा की छोटी ट्यूब पर डाल देते है। दुमा पर आग भी दी जाती है, तब ही इसका पूरी तरह से मज़ा उठाया जा सकता है। इसे पीने से पहले दापा के अंदर 250 ग्राम पानी डालना चाहिए। पानी के बिना भी इसे ठीक से नहीं पी सकते। इसे मुँह से पीते है और इसे पीते समय मुँह से नाक में धुआँ आता है और धुएँ की ख़ुशबू बहुत ही अच्छा होती है और इसे पीने की आवाज़ भी बड़ी सुंदर होती है।

दापा त्रिपुरा के आदिवासीयों के बीच बड़ा प्रिय है और लोग इसको पिए बिना नहीं रह सकते। कभी कभी इसकी आदत भी पड़ जाती है, लेकिन लोगों का कहना है की यह नैसर्गिक है और बिलकुल भी हानिकारक नहीं है और अन्य पदार्थों की तरह इससे साँस लेने में तकलीफ़ नहीं होती।

दापा और उसे पीने की सामग्री


लेखक के बारे में- जोएल देब बर्मा त्रिपुरा के निवासी हैं। वह अभी BA की पढ़ाई कर रहे हैं। इन्हें गाने और घूमने के शौक के अलावा लोगों की मदद करना अच्छा लगता है। वह आगे जाकर LLB की पढ़ाई कर वकील बनना चाहते हैं।


यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था

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