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कैसे त्रिपुरा के आदिवासी सब्ज़ी बनाने में घरेलू बेकिंग सोडा का उपयोग करते हैं

Chekhok या चेखक एक ऐसी चीज़ है जो त्रिपुरा के आदिवासी बंबू से बनाते हैं। इस चेखक से बेकिंग सोडा बनाया जाता है। पहले तो यहां के आदिवासी जंगल में जाकर बंबू को काटकर घर पर लाते हैं और एक दिन के लिए धूप में सुखाते हैं।


फिर दूसरे दिन बंबू को चीरकर यह चेखक बनाते हैं। इसको बनाने के बाद इसके अंदर राख डालकर पानी से भिगो देते हैं। यह होने के बाद थोड़ा-थोड़ा करके पानी फिल्टर होकर नीचे गिरता है।

वहीं, राख का पानी चेखक के ज़रिये फिल्टर होकर सोडा बनता है। इस सोडा का रंग लाल होता है और इस सोडा से यहां के आदिवासी बहुत सारी चीज़ों के लिए उपयोग करते हैं।

फोटो साभार- बिंदिया देब बर्मा


त्रिपुरा के आदिवासी इस सोडा का बाल धोने के लिए इस्तेमाल करते हैं और कहा जाता है कहीं पर भी चोट लगने पर सोडा से धोने से वहां पर इन्फेक्शन नहीं होता है।

बातिमा एक प्रकार का आलू है, जो त्रिपुरा में पसंदीदा है। ज़्यादातर यह आलू जंगल में पाया जाता है लेकिन यहां के आदिवासी इस आलू को घर के आस-पास उगाते हैं।

इस आलू को हाथ से बनाए हुए बेकिंग सोडा में उबालकर खाने लायक बनाते हैं, क्योंकि यह डायरेक्ट पकाकर नहीं खा सकते हैं। डायरेक्ट खाने से अपने गले में जलन होती है। इसलिए इसे पहले काटकर उबालने के बाद बेकिंग सोडा में उबाला जाता है।

फोटो साभार- बिंदिया देब बर्मा


त्रिपुरा के आदिवासियों को यह सब्ज़ी बहुत पसंद है। यह खाने में जितना स्वादिष्ट है, इसे बनाने में उतनी ही मेहनत है। इसे ज़मीन के अंदर से निकालने में इतनी मेहनत करनी पड़ती है, क्योंकि ये ज़मीन के अंदर कम-से-कम 5 फुट नीचे पाए जाते हैं।

ये आलू बहुत बड़े होते हैं। एक ही आलू 2-3 किलो का होता है। इस एक आलू से कम-से-कम पांच बातेंमा बनाए जा सकते हैं।

फोटो साभार- बिंदिया देब बर्मा


बातेमां की सब्ज़ी को तरह-तरह से पकाकर खाई जाती है जैसे कि भरता और चाखोइ। इसे मांस के साथ भी पकाकर खाया जाता है। कभी-कभी तो इसे धूप में सुखाकर पैक करके रखते हैं और बाद में इसे पानी में भिगोकर 1 दिन के लिए रख देते हैं। फिर से नरम होने के बाद इसकी चटनी बनाकर खाते हैं।


विडियो के ज़रिए देखिए कैसे बनाते है बातेमां



त्रिपुरा के आदिवासियों की पहचान भाषा, पहनावे और खास करके उनके तरह-तरह के खाने-पीने से होती है। अगर आपको कभी किसी अलग किस्म का खाना खाने का शौक हो, तो आप त्रिपुरा के आदिवासियों के हाथों का खाना खाकर देखिए, आप उंगलियां चाटते रह जाओगे!



लेखिका के बारे में- बिंदिया देब बर्मा त्रिपुरा की निवासी हैं। वो अभी BA के छट्ठे सेमेस्टेर में हैं। वो खाना बनाना और घूमना पसंद करती हैं और आगे जाकर प्रोफेसर बनना चाहती हैं।


यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था

 
 
 

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