त्रिपुरा राज्य के एक छोटे से गांव में रहने वाले आदिवासी बुज़ुर्ग श्री सौदागर देव वर्मा यहाँ की जानी-मानी शख्सियतों में से एक हैं। पचासी वर्षीय सौदागर वर्मा जी अपनी पत्नी के साथ त्रिपुरा के सौदागर गाँव में रहते हैं। सिपाहिजाला नाम के जिले में स्थित इस गाँव का नाम भी सौदागर देव वर्मा जी के नाम पर पड़ा है। आप सोच रहे होंगे आख़िर यह वरिष्ठ गाँव निवासी इतने प्रतिष्ठित किन कारणों से है? बता दें कि सौदागर जी त्रिपुरा के आदिवासी समुदाय के प्रसिद्ध संगीत यन्त्र वादक हैं।उन्हें कई प्रकार के पारम्परिक संगीत यन्त्र बजाने में दक्षता प्राप्त है।
श्री सौदागर जी अपनी पत्नी जया देवी देव वर्मा के साथ
इन्हीं यंत्रों में से एक है चोंग प्रेंग (Chong Preng). लगभग अस्सी बरस पुराण ये वाद्य-यन्त्र आदिवासियों के मनोरंजन का साधन रहा है। हालाँकि आधुनिक युग में इसका प्रयोग कम हो गया है, परन्तु सौदागर जी जैसे लोगों ने आज भी आदिवासी संगीत-शास्त्र की इस धरोहर को जीवित रखा हुआ है।
श्री सौदागर देव वर्मा जी अपने हाथों से बना चोंगप्रेंग बजाते हुए
सौदागर जी कहते हैं कि चोंग प्रेंग (Chong Preng) की धुन पर गीत गाकर लोगों का मनोरंजन उनके लिए एक बेहद आनंददायक अनुभव रहा है और इसके लिए उन्हें कईं सम्मान भी मिले हैं। आज भी सौदागर जी के गाने लोगों के दिल में बसे हुये हैं। उनको कई गीतों की रचना और गायन के लिए कई पुरस्कार भी मिले हैं। कोकबोरोक (Kokborok) भाषा में लिखित उनके पहले गीत के बोल कुछ इस प्रकार हैं-
Phaibaijadi dol baksha khwlai
Khoroksa phano karjakya khai
Jadujan madhujan hinwi ringlai
Chwla bwrwi palkhe yakbai yakromlai
Kotorma Hani bebak borokbai samung
kaham tangnai chwng kwthalai
Chini o hao kahama khwlai hamari
Yakhili chwng songsanai…
सौदागर देव वर्मा जी को दिए गए कईं पुरस्कारों में से एक त्रिपुरा सम्मान-2010
2010 में उन्हें त्रिपुरा सम्मान पुरस्कार पाने का गौरव प्राप्त हुआ। जिस गाने के लिए उन्हें यह सम्मान दिया गया उसके प्रारंभिक बोल का हिंदी में तात्पर्य है ‘जोगी फिर से।’
इस गीत के बोल इस प्रकार हैं-
Jadu hinmale kisani kokya hani saka nokhani tola athuksa manbo jadu abasaambo jadu bonole sanani kokya
Lekhawi akayarago naiwibo akaya nono hamjakmani jotormanlia Bawibo tonmanlia tisaibo tonnanilia aharey tei sawi manlia…
लोहे से बनी डांगड़ू
इसके अलावा सौदागर जी को डांगड़ू (Dangdu) नाम का वाद्य-यंत्र भी हाथों से बनाना और बजाना जानते हैं। इस छोटे से यंत्र को बनाने में केवल लोहा और पुरानी छतरी पिन ही लगती हैं, परन्तु एक डांगड़ू बनाने में कम से कम एक महीने तक का समय लग जाता है।
सौदागर बताते हैं कि डांगड़ू एक वायु उपकरण है जो मुंह के बीच रखकर बजाया जाता है। उन्होंने इस वाद्य-यंत्र की धुन पर कई गीत गाए हैं। इसे बजाना सीखना बहुत मेहनत का काम है।
सौदागर जी डांगड़ू बजाने का तरीका बताते हुए
ऊपर दिए गये छायाचित्र में सौदागर यह गीत गा रहे हैं-
Twi khereng khereng tiyari twio
Bakhlai thwiyano o dada da tobodi
Karia rojong chanani
ग़ौरतलब है कि त्रिपुरा में बहुत से प्रतिभाशाली आदिवासी भाई-बहन हैं जो ये वाद्य-यंत्र बजाने में प्रवीण होकर पूरे समुदाय का नाम रोशन करने की योग्यता रखते हैं। परन्तु जागरूकता और दिलचस्पी न होने क कारण यह सांस्कृतिक कला धीरे-धीरे लुप्त हो रही है। आदिवासी युवा पीढ़ी को यह प्रयास करना चाहिए कि इन वाद्य यंत्रों को बजाना सीख कर सौदागर जी जैसे दीर्घानुभवी और कुशल यंत्र-वादक द्वारा संजोई गई विरासत को आगे लेकर जाएं।
About the author: Khumtia Debbarma is a resident of the Sepahijala district of Tripura. She has completed her graduation and wants to become a social worker. She spends her free time singing, dancing, travelling and learning how to edit videos.
यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था
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