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चूहों को कैसे उनके बिल से निकालते हैं छत्तीसगढ़ के आदिवासी

Khageshwar Markam

हमारे छत्तीसगढ़ के आदिवासी ज़िला गरियाबंद के ग्रामीण अंचल में कई मूल निवासियों द्वारा चूहे को खाद्य पदार्थ के रूप में ग्रहण किया जाता है। चूहा ज़मीन में बिल खोदकर अंदर घर बनाकर रहता है या कोई पेड़ के ऊपर घोंसला बनाकर रहता है।


लेकिन चूहा जहां रहता है, वहां के फसल को बर्बाद कर देता है। कोई भी किसान फसल को खाता कम और काटता ज़्यादा है। मतलब कटी हुई फसल घर मे रखी जाती है। चूहा अगर घर में डेरा डाल दे, तो घर को छेद छेद कर देता है।


एक तरह से देखा जाए तो चूहा बहुत नुकसान करने वाला जीव है। यहां तक कि खेत की मेड को भी छेद छेद कर देता है, जिससे मेड फूट जाता है और फसल को बहुत क्षति पहुंचती है। तो कई लोग इसे गुस्से में मारते हैं और कई लोग इसे खाने के लिए भी मारते हैं।


बिना हथियार के कैसे फंसाते हैं चूहों को?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया


चूहा मारने का पहला तरीका ये है- चूहे के बिल में लगातार पानी भरकर उसे बाहर निकलने पर मजबूर कर देते हैं। जब चूहा बाहर निकलता है, तो उसे डंडे से मार देते हैं। उसके बिल के पास जाली डालकर रखने पर भी चूहा फंस जाता है।


चूहा मारने के लिए रांपा, कुदारी, हंडी या टीपा की ज़रूरत पड़ती है। रांपा या कुदारी चूहा के बिल को खोजने के लिए उपयोग में लाया जाता है। उसके बाद टीपा में घास को भरकर आग लगाकर बिल के अंदर धुआं डाल देते हैं।


चूहे के किसी एक बिल को थोड़ा खोदकर, जलते हुए टीपा को वहीं चूहे के बिल में रखकर चारों तरफ से मिट्टी डाल दी जाती है। उसके बाद उसके बिल में टीपा और पत्ता के सहारे धुआं भरा जाता है जिससे उस बिल में जितने भी चूहे होते हैं, मर जाते हैं।


कई बार तो ऐसा होता है कि चूहा अपनी जान बचाने के लिए सीधा जिधर से धुआं देते हैं उधर ही आकर मर जाता है। कई लोग चूहे को पकाते हैं और खाते हैं।चूहे को पकाने के लिए ज़्यादा सामग्री की ज़रूरत नहीं पड़ती है। इसमें हल्दी, मिर्ची, नमक और पत्ता एवं बांस के सिकुंन और थोड़े से पानी की ज़रूरत पड़ती है।


यह सब करने के बाद आग को अच्छे से जलाएं और पनपुरवा को आग में डाल दें। पनपुरवा के ऊपर फिर आग डाल दें और पकने दें। इतने वक्त तक पकाएं जब तक कि ऊपर का पत्ता जल जाए। उसके बाद ही स्वाद का आनंद ले सकते हैं। इस तरह से कई आदिवासी लोग चूहे को व्यंजन के रूप में ग्रहण करते हैं।



लेखक के बारे में- खगेश्वर मरकाम छत्तीसगढ़ के मूल निवासी हैं। वो समाज सेवा के साथ खेती-किसानी भी करते हैं। खगेश का लक्ष्य है शासन-प्रशासन का लाभ आदिवासियों तक पहुंचे। वो शिक्षा के क्षेत्र को आगे बढ़ाना चाहते हैं।


यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था

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