नोट- यह आर्टिकल केवल जानकारी के लिए है, यह किसी भी प्रकार का उपचार सुझाने की कोशिश नहीं है। यह आदिवासियों की पारंपारिक वनस्पति पर आधारित अनुभव है। कृपया आप इसका इस्तेमाल किसी डॉक्टर को पूछे बगैर ना करें। इस दवाई का सेवन करने के परिणाम के लिए Adivasi Lives Matter किसी भी प्रकार की ज़िम्मेदारी नहीं लेता है।
छत्तीसगढ़ के सबसे उपयोगी पेड़ों में से एक है भेलवा। यह काजू परिवार का पेड़ है और इस राज्य के लोग भेलवा के बीज को भून कर उसका सेवन करते हैं। इस पेड़ को विभिन्न जगह पर विभिन्न नाम से जाना जाता है। जबकि छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिला में इसे भेलवां कहते हैं। मराठी मे इस पेड़ को बिब्बा के नाम से जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम है ‘Semecarpus anacardium।’ गरियाबंद जिला के ग्रामीण क्षेत्र के जंगल एवं मलेवा अंचल में भेलवा के पेड़ अधिक मात्रा में पाए जाता है।
भेलवा के तेल का औषधि और अन्य उपयोग
छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों में यह पेड़ अपने औषधि गुणों के लिए जाना जाता है। इस पेड़ के फल से निकला तेल मुख्य रूप से हाथ और पैर की मांसपेशीयो के दर्द से राहत दिलाने के लिए इस्तेमाल होता है। इस पेड़ के फल को आग में गर्म करके इसमें सुई चुभोई जाती है। जिससे इसका तेल निकल आता है। जिस सुई से फल को चुभा कर तेल निकाला जाता है। उसी सुई के सहारे पैरों के तलवे और एड़ियों पर तेल लगाया जाता है। इसका उपयोग बड़ी सावधानी से करना पड़ता है, अन्यथा यह त्वचा में फफोला कर सकता है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि लोग पैरों के तलवों को छोड़कर शरीर के किसी अन्य हिस्से पर सीधे तेल का उपयोग न करें।
हाथ और पैर के तलवों के अलावा शरीर के अन्य जगह पर तेल लगाने से पहले त्वचा के ऊपर गोबर छेना की राख लगानी पड़ती है। उसके पश्चात ही भेलवा के फल का तेल सुई या एक लकड़ी के टुकड़े के माध्यम से लगाया जा सकता है। इस तेल के लगाने से हाथ और पैर का दर्द ठीक हो जाता है। भेलवा तेल शहद की तरह गाढ़ा होता है और काला-भूरा दिखता है।
किसी कारणवश अगर भेलवा का तेल त्वचा में फफोला पैदा कर दे, तो उसके उपचार के लिए उस त्वचा पर दीमक की मिट्टी का लेप लगाने से वह ठीक हो जाता है। पहले आम के पेंड़ के दीमक की मिट्टी को ले, फिर उसमें कुसुम तेल, टोरी या सरसों तेल मिला दें, और त्वचा पर लगा लें। शरीर के वही जगह पर लगाएं जहां खुजली या जलन महसूस हो रही हो।
पहले जब लोग बैलगाड़ी का उपयोग करते थे, तो यह तेल उनके सुचारू कामकाज के लिए गाड़ी के पहियों पर लगाया जाता था। यह तेल ग्रीस का काम करता था।
भेलवा के फल और बीज भी है फायदेमंद
भेलवा के फल और बीज के बहुत फायदे हैं। इसके बीज मेवे की तरह खाए जाते है। इसके तेल को नाखूनों के बीच लगाया जाता है। फोटो में आप देख सकते हैं की भेलवा के कुछ बीज काले हैं और कुछ पीले। पीले बीज को भूनकर काजू की तरह खाया जाता है। वह भी बीज का एक अंग है। काले रंग के बीज का कुछ भाग पीला होता है। वह सूखने के बाद भूरे रंग के हो जाते हैं। सूखने के बाद यह बीज खाने में बहुत ही स्वादिष्ट होता है।
इस पेड़ के फलों को गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत लाभदायक माना जाता है। इसकी सुपारी गर्भवती महिला को खिलाई जाती है, क्योंकि इसकी तासीर गर्म होती है। गोंड एवं कई अन्य जाति के आदिवासी समुदाय के लोग महिला के बच्चे होने पर भेलवा को घर के आसपास जलाते हैं, जिससे कीटाणु महिला और उसके बच्चे तक न पहुंच पाए।
आदिवासी बुजुर्गों द्वारा बताया जाता है कि भेलवा एक ऐसी आयुर्वेदिक दवा है जिसका उपयोग पारम्परिक रूप से सदियों से चला आ रहा है। वह कहते हैं की इसके फल को खाने से हमारा शरीर कई प्रकार की बीमारियों से लड़ने में सक्षम हो जाता है, जैसे शुक्राणु की समस्या, पेट में आंत की समस्या, सांस लेने की समस्या, इत्यादि।
रोज़गार का माध्यम है भेलवा के बीज और फल
आज कल जंगल के मूल निवासी भेलवा के बीज या फल को इकट्ठा करते हैं और इसे दुकान में बेचते हैं, जिससे आदिवासियों को वन उपज रोजगार भी मिलता है। यह रोजगार मार्च- अप्रैल के माह में मिलता है, जब ये वृक्ष फल देता है।
नोट: यह लेख आदिवासी आवाज़ प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था
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