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जानिए गोंड आदिवासियों के इशर-गौरा विवाह प्रथा के बारे में

Khageshwar Markam

छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में कई अलग-अलग प्रकार के त्यौहार मनाए जाते हैं और पूजा-अर्चना की जाती है। इन पूजाओं और त्यौहारों के रीति-रिवाज़ों का पालन कड़ाई से किया जाता है।

गोंड आदिवासी समाज का इशर गौरा विवाह एक ऐसा त्यौहार है, जो श्रुति तिहार के दिन मनाया जाता है। गोंड समाज इसे बड़े हर्षोल्लास के साथ मानता है। इसे अनेक आदिवासी संप्रदायों द्वारा मनाया जाता है।

इसमें शंभू शेख, जिसे हम महादेव कहते हैं और गौरा माता का विवाह किया जाता है। इस विधि में गाँव के लोग माटी घर से मिट्टी लाकर इसको सिरजाते हैं। यानी मिट्टी जागृत करते हैं और बढ़िया बाजा बाजे के साथ गीत गाते हैं।

एक पतरी रैनी बैनी हो..

जोहर जोहर मोर गवरा गवरी हो सेवर लागौं मै तोर

जोहर जोहर मोर ठाकुर देवता सेवर लागो में तोर..



कलसा परघाते हुए इशर राजा को गवरा चौक पर लाते हैं फिर वे शादी के नेंग जोक (नीति-नियम) करते हैं। इसके पश्चात सभी गाँव वाले महादेव के साथ बरात पर जाते हैं। महादेव, जो बैल पर सवार रहते हैं और गौरव माता, जो कछुआ पर सवार रहती हैं।


इन्हें अलग-अलग जगह पर रखा जाता है। जो जो बैल पर सवार होते हैं, वो मरकाम गोत्र के होते हैं और जो कछुए पर सवार होती हैं, वो नेताम घर की बेटी होती हैं।

इसका कारण यह है कि मरकाम का टोटम सांड है और देव संख्या तीन, जो विषम है और नेताम का टोटम कछुआ है और देव संख्या दो, जो सम है। सम-विषम गोत्र ही है।

वैवाहिक लेनदेन का भी प्रचलन होता है, जिसके कारण उन्हें अलग-अलग घरों पर रखा जाता है। धर्मगुरु पहन दीपारी कुपा लिंगों के बनाए गोत्र में से एक गोत्र है, जो हमेशा विषम को बताता है।

विवाह होने से पहले और गौरा माता के स्वागत के लिए या पूजा-अर्चना के लिए घर की साफ-सफाई की जाती है। ऐसा माना जाता है कि गौरा माता लक्ष्मी का रूप है।


दीवाली त्यौहार के बाद ही हमारे खेत खार से धान की फसल आती है, जिसे हम पूजा-अर्चना करके घर में रखते हैं। इसी खुशी में हज़ारों दीप जलाए जाते हैं और नाच-गान करते हैं। सुआ नृत्य करके लक्ष्मी का स्वागत करते हैं।

घर की बहू पर घर की पूरी ज़िम्मेदारी होती है। घर की बहू को जितना प्यार से रखो, उतनी ही वह आपको खुशी देगी। ठीक उसी तरह खेत खार के धान को बहू के समान पूजा-अर्चना करके घर में लाकर रखते हैं।


खेत खार के धान के साथ गौरा माता विराजमान हो चुकी हैं, ऐसा आदिवासी आभास करते हैं। इसी खुशी में दीवाली त्यौहार को देवारी तिहार एवं इशर गौरा दाई के नाम से यह कार्तिक माह के अमावस्या को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।


लोग यह कहते हैं कि आदिवासी गोंड समाज में पहली शादी के रूप में इशर राजा और गौरा माता का विवाह किया जाता है, क्योंकि यह प्रथा गोंड आदिवासी समाज में आदि काल से चलती आ रही है।


इस प्रथा को आने वाली पीढ़ी को अपने वैवाहिक रीति-रिवाज़ों के लिए नहीं भूलना चाहिए, क्योंकि हज़ारों वर्षों से गोंड़ वंश के प्रथम राजा-रानी के विवाह के प्रतीक को लोग साल-दर-साल मनाते आ रहे हैं।


यह जानकारी दिलेश्वर नेताम द्वारा प्राप्त हुई है, जो गरियाबंद के निवासी हैं।



लेखक के बारे में- खगेश्वर मरकाम छत्तीसगढ़ के मूल निवासी हैं। वो समाज सेवा के साथ खेती-किसानी भी करते हैं। खगेश का लक्ष्य है शासन-प्रशासन का लाभ आदिवासियों तक पहुंते। वो शिक्षा के क्षेत्र को आगे बढ़ाना चाहते हैं।


यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था

 

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