हांग्राई तेर को त्योहार पौष महीने के आख़री दिन मनाया जाता है और अंग्रेज़ी कैलेंडर के हिसाब से यह जनवरी महीने में आता है। हांग्राई तेर के त्योहार से पहले बाहर सारी तैयारी करनी होती है। इस त्योहार में कई स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते है, लेकिन आज में आपको दो पकवानों के बारे में बताना चाहूँगा- आवांग बांगवि और आवांग बेलेप।
आवांग बांगवि
सबसे पहले केले के पत्ते तोड़े जाते है और उन्हें धूप में सुखाने के लिए रख देते है। इसे क़रीब 5-6 घंटे ऐसे ही धूप में रखते है, धूप में रखने से पत्ते ख़राब नहीं होते और उनके फटने की सम्भावना भी कम हो जाती है। इस केले के पत्तों को हम आवांग बांगवि (Kokborok: Awang Bangwi) बनाने में उपयोग करेंगे।
आवांग बांगवि बनाने के लिए चावल का इस्तेमाल होता है, इस चावल को हम गुरिया कहते है। इस चावल को पानी में 3-5 घंटे भिगोया जाता है, क्योंकि यह पकवान बनाने के लिए चावल को नरम बनाना ज़रूरी होता है।
आवांग बांगवि
चावल नरम होने के बाद इसमें नमक, प्याज़, किसमिस, धनिया, बादाम, अदरक और थोड़ा तेल डाला जाता है। इन्हें फिर ठीक से मिलाया जाता है। इसे मिलाने के बाद चावल को केले के पत्ते पर डाला जाता है। पत्ते में चावल को डालने के लिए भी केले के पत्ते का छोटा भाग काटा जाता है, और उसी से पत्तों में चावल को डालते है। इन पत्तों को फिर रस्सी से बांधा जाता है, ताकि वह खुल ना जाए।
इसके पश्चात पत्तों को एक बर्तन में डालकर उसमें पानी डाला जाता है, ताकि आवांग बांगवि को पकाया जा सके। इसे क़रीब 45 मिनट तक उबाला जाता है, जिसके बाद यह खाने के लिए तैयार है!
आवांग बेलेप
आवांग बेलेप बनाने के लिए पहले हम गुरिया चावल को पानी में भिगोके रखेंगे। इसे 2-3 घंटे पानी में रेखने के बाद चावल का पानी निकालकर इसे rwsam में डालके इसकी पिसाई करेंगे। Rwsam ना हो तो पिसाई की मशीन का भी इस्तेमाल होता है।
चावल पीसने के बाद इसमें थोड़ा पानी मिलाया जाता है। इसके बाद इसमें गूढ़/ शक्कर, बादाम, नारियल और किसमिस डाला जाता है ओर इसके गोले बनाए जाते है। फिर कढ़ाई ली जाती है और उसे गरम करके उसमें तेल डाला जाता है। तेल गरम होने के बाद उसमें यह आवांग बेलेप डालते है।
ऐसे होते है त्रिपुरा के हांग्राई तेर के पकवान। यह बनाने में बहुत आसान है, आप भी इसे घर पे बनके इनका मज़ा उठा सकते है!
लेखक के बारे में- सुराखा देब बर्मा त्रिपुरा के निवासी हैं। यह अभी राजनीतिक विज्ञान से ग्रैजुएशन कर रहे हैं। यह क्रिकेट खेलना और घूमना पसंद करते हैं। यह अपनी आदिवासी संस्कृति के बारे में और भी वीडियो बनाना और लेख लिखना चाहते हैं।
यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था
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