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त्रिपुरा की अनोखी सब्ज़ियों से बनाते है आदिवासी चातांग का पकवान

भारत के उत्तरपूर्व में बसे हुए त्रिपुरा के आदिवासीयों का खाना कुछ अलग ही होता है। उन लोगों की खाना बनाने का तरीका ही कुछ और है। जंगलों से, नदियों से जो भी प्राकृतिक संसाधन मिलें, उससे वह खाना बनाते है। ऐसा एक पकवान है “चातांग”।

चातांग बनाने के लिए सब्ज़ियाँ


चातांग बनाने के लिए कोई भी सब्जी इस्तेमाल कर सकते हैं, यहाँ पर सब्जी, सुखी हुई मछली, मिर्ची, नमक और सोडा इस्तेमाल किया जाता है। इसमें इस्तेमाल होनी वाली सब्ज़ियों को आदिवासी भाषा में है फांटोक, केखा, मोया कोरण, फें बोकोंग कोरान, कोवाई फोल और सोटोई कहते है। यह सब्ज़ी ज़्यादातर जंगल में मिल जाती है।

चातांग बनाने के लिए सुखी हुई सब्जी चाहिए। इन सब्ज़ियों को पहले 10-20 मिनट तक पानी में उबाला जाता है। पानी से निकालकर इनको एक कढ़ाई में डालकर, सब्ज़ियों को मिलाकर थोड़ा पानी डाला जाता है। फिर उसमें नमक, सोडा, सुखी हुई मछली डाली जाती है। 30- 40 मिनट के लिए इसे पकाया जाता है। आदिवासी लोगों के पास गैस नहीं है इसलिए बोलो चोला (चूल्हे) पर पकाना पड़ता है।

इसे पकाते समय यह साबुन के बुलबुले जैसे दिखता है, सफेद रंग का। लेकिन इसे फेंकना नहीं चाहिए, ये ऐसे ही पकता है। इसे ज्यादा से ज्यादा 30- 40 मिनट तक ही पकाना चाहिए, इससे ज्यादा नहीं।

साबुन जैसे बुलबुले, जिसे फेंकना नहीं चाहिए


यह खाने में बड़ी स्वादिष्ट लगती है। लोग कहते है की चातांग में इस्तेमाल होने वाली कई सब्ज़ियाँ सिर्फ़ त्रिपुरा में ही मिलती है और इन्हें हर कोई उत्तमता से नहीं बना सकता।

चातांग


त्रिपुरा के आदिवासी लोग कई सदियों से ऐसी सब्जियों से खाना बनाकर खाते आए हैं। बाज़ार से खाना खाने के बजाय यह खाना खाकर ही लोग तंदुरुस्त रहते है।


लेखक के बारे में- जोएल देब बर्मा त्रिपुरा के निवासी हैं। वह अभी BA की पढ़ाई कर रहे हैं। इन्हें गाने और घूमने के शौक के अलावा लोगों की मदद करना अच्छा लगता है। वह आगे जाकर LLB की पढ़ाई कर वकील बनना चाहते हैं।


यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था

 
 
 

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