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त्रिपुरा के आदिवासी क्यों मनाते हैं होजागिरी पूजा

Puni Debbarma

त्रिपुरा की आदिवासी संस्कृति में पूजा-पाठ का बड़ा मोल है। तमाम त्यौहारों में होजागिरी पूजा एक ऐसा पर्व है, जिसे हर साल काफी धूमधाम से मनाया जाता है। पूजा के दिन घर के सौभाग्य और धन की समृद्धि के लिए महालक्ष्मी को प्रसन्न किया जाता है।


महालक्ष्मी को अतिफल-दायिनी माना जाता है। त्रिपुरा के आदिवासियों के हर घर में इस पूजा के रीति-रिवाज़ पाले जाते हैं। होजागिरी के दिन घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगाकर नीचे पूजा दी जाती है और घर के चावल से बनाया हुआ प्रसाद महालक्ष्मी को चढ़ाया जाता है।

एक पीतल के लोटे में शुद्ध पानी डालकर उसके ऊपर 5-7 आम के पत्ते और तुलसी के पत्ते डालते हैं। घर में अगरबत्ती, दीये और मोमबत्तियां जलाई जाती हैं। प्रसाद के लिए भीगा हुआ चावल, केला, शक्कर और विभिन्न प्रकार के फल का उपयोग होता है और देवी को चढ़ाने के लिए अनेक प्रकार के फूल।

यह पूजा शाम को दीया और अगरबत्ती जलाकर की जाता है। इस दिन हर घर में चावल रखने वाले पतीले से पुराना चावल निकालकर नया चावल डाला जाता है।

होजागिरी के दिन लोग दिनभर उपवास करते हैॆं और पूजा के बाद इस उपवास को छोड़ते हैं। इस दिन का एक रिवाज़ है, जो पुराने दिनों में पाला जाता था। गाँव के लोग दूसरों के घर जाकर छोटी-मोटी चोरी करते हैं। इसके पीछे की यह मान्यता है कि जो चोरी करते हैं और जिनके घर में चोरी होती है, उनके घर में समृद्धि आती है।


गाँव के लोग पशु-पक्षी पालकर अपना जीवन-यापन करते हैं और यह चोरी होने से इन्हें बहुत तकलीफ होती है। होजागिरी की रात को सभी लोग एक-दूसरे के घर में जाकर प्रसाद खाते हैं और पटाखे बजाते हैं। यह दिन बहुत आनंददायक होता है।



यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था

 

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