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त्रिपुरा के आदिवासियों का मृतकों को पूजने का अनोखा तरीक़ा

त्रिपुरा में कई प्रकार की पूजाएँ और त्यौहार होते है, जिनमें से एक है हांग्राई की पूजा। इसमें अस्थि के अंतिम संस्कार का पूजा पाठ मनाते हैं। हर साल यह त्यौहार १४ जनवरी को मनाया जाता है।

(Bekereng tonmani nok/अस्थि को रखा हुआ घर।)


अस्थियों को एक छोटे से घर में रखा जाता है। यह घर लोग अपने आँगन में ही बनाते है। किसी व्यक्ति के मर जाने के बाद उसको जला देने के बाद उस व्यक्ति की अस्थियों को ऐसे रखा जाता है, जिसको हमारी भाषा में “Bekereng tonmani nok” बोलते हैं, जो “अस्थि घर” कहलाता है।


Bekereng mwrwkmani अस्थियों की पूजा करने का त्योहार है। सुबह अस्थियों को अस्थिघर से निकाल कर घर के बाहर कहीं जगह रख देते है। उसके बाद रात को इस अस्थि का पूजा पाठ होता है । इस “Bekereng” के सामने दिया जलाया जाता है और रात-भर पूजा जाता है और पूरी रात गाना बजाना होता है।

Haparo phaimani amano Maya


Haparo phaimani amano malanglia tei…..


दुनिया में आने से मां को नहीं पाया।

दुनिया में आने से मां को अब कभी नहीं मिलेंगे।


यह गाने हमें ज़िंदगी कितनी छोटी और नाज़ुक है, इसकी याद दिलाते है। लोग एक साथ ऐसे कई गाने गाते है।वह दुख भरे दिल से अपने प्रिय व्यक्तियों को याद करते है।

सुबह होने के बाद अस्थियों को निरमहल (त्रिपुरा के राजाओं द्वारा बनाया हुआ बड़ा सा घाट), या फिर डुम्बूर (एक बड़ी नदी) को लेकर जाते है, जहाँ सिर्फ त्रिपुरा के आदिवासी ही जाते हैं। सप्ताह के 2 दिन- बृहस्पतिवार और शनिवार को इन अस्थियों को पूजा जाता है। पूजा में मोमबत्ती और अगरबत्तियाँ जलाई जाती है और प्रसाद बाँटा जाता है।


ऐसे करीब 1 साल या 6 महीने पूरा हो जाने के बाद 14 जनवरी को “हांग्राई” का अनुष्ठान होता है। इस हांग्राई के अनुष्ठान में अस्थियों को पानी, समुद्र या फिर किसी बड़े घाट में बहा देते है। इस प्रथा को लोग सदियों से मानते आ रहे है। इस त्योहार का लोग बेसब्री से इंतेज़ार करते है। यह त्रिपुरा के आदिवासियों के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है।


लेखिका के बारे में- खुमतिया त्रिपुरा की निवासी है। यह BA पढ़ चुकी है और समाज सेविका बनना चाहती है। यह गाने, घूमने, फ़ोटोग्राफ़ी और विडीओ एडिटिंग में रुचि रखती है।


यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था

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