मार्च में जब लॉकडाउन शुरू हुआ, भारत में शिक्षा और पढ़ाई का नक्शा ही बदल गया। स्कूलों और कॉलेजों में जाने पर पाबंदी थी और आज भी है लेकिन पढ़ाई रुकनी नहीं चाहिए, इसलिए स्कूलों और कॉलेजों ने इंटरनेट के माध्यम से स्टूडेंट्स को पढ़ाना शुरू कर दिया। इससे पढ़ाई तो जारी रही लेकिन दिक्कतें भी बढ़ गईं।
त्रिपुरा में भी लॉकडाउन के कारण सभी स्कूल, यूनिवर्सिटी और कॉलेजों के स्टूडेंट्स को ऑनलाइन क्लासेज़ द्वारा पढ़ाया जा रहा है। जो पढ़ाया जा रहा है, उसके नोट्स भी ऑनलाइन माध्यम से दिए जाते है। व्हाट्सएप्प समूह के माध्यम से ये नोट्स स्टूडेंट्स तक पहुंचाए जाते हैं। बाहर से देखें तो ऐसा भी लग सकता है कि यह लोगों के लिए बहुत बड़ी सुविधा है, घर बैठे पढ़ाई हो जाती है लेकिन इन ऑनलाइन क्लासेज़ के माध्यम से असल में बच्चों को पढ़ाई करने में सुविधा होती है या असुविधा?
सबके लिए सुविधा नहीं है ऑनलाइन पढ़ाई
शहरों में नेट्वर्क, बिजली की सुविधा होने के कारण ऑनलाइन पढ़ाई कभी-कभी आसान हो जाती है लेकिन त्रिपुरा के कई आदिवासी गाँवों में बच्चों के पास स्मार्ट फोन नहीं हैं। फोन की बात छोड़ो, यहां नेटवर्क मिलना भी ना के बराबर है। अगर स्मार्ट फोन हो भी और नेटवर्क भी अच्छा हो तो बिजली की दिक्कत होती है। स्मार्ट फोन, बिजली या नेटवर्क हो या ना हो, पढ़ाई तो सबके लिए ज़रूरी है ना?
त्रिपुरा के खोवाई ज़िले की एक छात्रा से मैंने बात की, तो उसने बताया कि ऑनलाइन क्लास तो रूटीन के अनुसार करवाए जाते हैं। हमें कॉलेज के प्रोफेसर ने बोला था कि हमें एक एप्प डाउनलोड करना है, जिसका नाम ज़ूम (Zoom) है। इसी ऐप्प के माध्यम से ऑनलाइन क्लासेज़ होते हैं लेकिन मैं कभी क्लास अटेंड नहीं कर पाती हूं, क्योंकि हमारे गाँव में नेटवर्क नहीं मिलता है।
पूरे गाँव में घूमकर एक-दो बार सिग्नल मिलने के बाद ऑनलाइन क्लास में जुड़ने की मैं कोशिश करती हूं। यह सब करने के बाद भी कोई फायदा नहीं होता है, क्योंकि वीडियो रुक-रुककर ही चलता है और आवाज़ भी ठीक से नहीं आती है। अगर कुछ समझ ही ना आए तो पढ़ाई कैसे होगी?
ऑनलाइन क्लास तो हो रहे हैं लेकिन क्या स्टूडेंट्स पढ़ाई समझ पा रहे हैं?
ऑनलाइन क्लास तो देशभर में शुरू है लेकिन स्टूडेंट्स को पढ़ाई और सिखाया गया कुछ समझ में आता है या नहीं, इसके बारे में क्या सोचा जाता है? आमने-सामने बैठकर भी अगर पढ़ाया जाए, जैसे पहले होता था तब भी बच्चों को बार-बार समझने की ज़रूरत होती है। ऐसे ही तो पढ़ाई होती है लेकिन अभी स्टूडेंट्स को कुछ समझ में आए या ना आए, टीचर तो अपना सिखाने का काम कर देते हैं।
इसके बारे में मैंने सरना देवबरमा से बात की, जो जंपूई ज़िले में रहती हैं और कॉलेज की 6ठी सेमेस्टर में हैं। वो कहती हैं, “ऑनलाइन क्लास तो होते ही रहते हैं लेकिन मुझे कुछ समझ ही नहीं आता। हमारे ग्रुप में बहुत सारे स्टूडेंट्स हैं और हर एक को कुछ अलग समस्या है। किसी को वीडियो ठीक से दिखाई नहीं देती है, किसी के पास नेटवर्क नहीं है, किसी को प्रोफेसर का बोर्ड दिखाई नहीं देता, किसी को प्रोफेसर की आवाज़ ठीक से सुनाई नहीं देती।
कभी कभी सभी स्टूडेंट्स एक साथ बात करने लगते हैं और उन्हें रोकना मुश्किल है। इतना सब कुछ होते-होते पढ़ाया गया तो कुछ समझ में तो आता नहीं है और कक्षा का आधा घंटा कब पूर्ण होता है, पता भी नहीं चलता है। ज़यादातर समय तो स्टूडेंट्स की समस्याएं सुलझाने में और उन्हें चुप करवाने में ही निकल जाता है।
बारिश के मौसम में नेटवर्क और बिजली की दिक्कत
इस बारिश के मौसम में जो नेटवर्क मिलता है, वह भी चला जाता है और बिजली भी ज़्यादा कटती है। सिपाहीजाला ज़िले में रहने वाली सुनंदा देबवमा, जो कॉलेज की चौथी सेमेस्टर में पढ़ाई करती है, इस समस्या के बारे में मुझे और बताती है
ऑनलाइन क्लास तो दूर की बात है, कॉलेज के व्हाट्सएप्प ग्रुप में कौन से नोट्स दिए गए हैं, कौन क्या पढ़ा रहा है, इसकी भी जानकारी मुझे नहीं मिल पाती है। हमारे यहां बारिश की दो बूंदें गिरने से तुरंत बिजली कट जाती है। ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई करना बहुत मुश्किल है।
बेरोज़गारी के समय में आर्थिक भार है ऑनलाइन पढ़ाई
त्रिपुरा में जो बच्चे क्लास 1 से लेकर क्लास 12 तक पढ़ाई कर रहे हैं, उन बच्चों में बहुत से बच्चे गरीब परिवारों से हैं। कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जो मज़दूरी करके पैसे कमाते हैं। खोवाई ज़िले के कुछ बच्चों के माता-पिता ने अपने बच्चों को ऑनलाइन क्लास करवाने के लिए अपने बचाए हुए सारे पैसे मोबाइल ख़रीदने में खर्च किए हैं।
ऐसे परिवारों के लिए ऑनलाइन पढ़ाई एक आर्थिक भार है। लॉकडाउन और कोरोना की वजह से लोग पहले से ही परेशान हैं, उन्हें रोज़गार नहीं मिल रहा है, बेरोज़गारी बढ़ गई है और घर में खाना लाने में दिक्कत है। इसमें और एक समस्या है ऑनलाइन पढ़ाई, जहां लोगों को अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए और भी पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं।
त्रिपुरा सरकार और राज्य सरकार को बेहतर मार्ग खोजने चाहिए, जिससे गरीब बच्चों की पढ़ाई में रोक ना लग जाए। हर बच्चे को पढ़ाना ज़रूरी है और उसकी पढ़ाई इस बात पर आधारित नहीं होनी चाहिए कि उसके परिवार के पास कितने पैसे हैं। पूरे भारत के स्टूडेंट्स की पढ़ाई के लिए एक ही उपाय नहीं हो सकते हैं। हर एक राज्य और गाँव की स्थिति देखकर हमें उपाय निकालने चाहिए। तो आप बताइए कि क्या ऑनलाइन क्लासेज़ बच्चों के लिए सुविधा है या असुविधा? इसके क्या उपाय हो सकते हैं?
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था
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