लेखिका- बिंदिया देब बर्मा
नोट- यह आर्टिकल केवल जानकारी के लिए है, यह किसी भी प्रकार का उपचार सुझाने की कोशिश नहीं है। यह आदिवासियों की पारंपारिक वनस्पति पर आधारित अनुभव है। कृपया आप इसका इस्तेमाल किसी डॉक्टर को पूछे बगैर ना करें। इस दवाई का सेवन करने के परिणाम के लिए Adivasi Lives Matter किसी भी प्रकार की ज़िम्मेदारी नहीं लेता है।
दुनिया भर के आदिवासी समाज सदियों से बीमारियों के इलाज जंगलों में ढूँड़ते आ रहे है। त्रिपुरा में रहने वाले आदिवासी भी छोटी-मोटी बीमारियों का इलाज घर पर खुद करते है। इस इलाज की औषधि पेड़-पौधों और जड़ीबूटियों से बनती है। लाभदायक पेड़-पौधे और जड़ीबूटियाँ तो बहुत सारे है, लेकिन आज हम बात करेंगे मुइफ्राई, कोसा कोथा, नीम और के बारे में।
मुइफ्राई के पत्ते से सर दर्द का इलाज
मुइफ्राई के पत्ते (Basella alba / पोई ) का उपयोग सर दर्द दूर करने के लिए किया जाता है। इन पत्तियों को कूटके सर के बीचों- बीच लगाया जाता है। उसके बाद छोटे कपड़ा या रुमाल से दो-तीन मिनट के लिए इन पत्तियों को सर पर बांध के रखना पड़ता है। यहाँ के आदिवासियों का कहना है की इन पत्तियों को लगाने के बाद अच्छे से नींद आती है और जब लोग सो कर उठते हैं तब सर दर्द खत्म हो जाता है। इसलिए सर दर्द होने पर इस मुइफ्राई के पत्तों को सर पर लगाते है। इस मुइफ्राई के पत्तों से सब्जियाँ बनाकर भी खाया जाता है।
गैस और घावों के लिए इलाज कोसा कोथा
कोसा कोथा त्रिपुरा में बहुत आसानी से मिलने वाले पौधों में से एक है। इस पौधे के पत्तियों का इलाज दो चीजों के लिए किया जाता है-
जब पेट में गैस के तकलीफ़ होती हो, तब इस पौधे के पत्तियों को कूटकर उसका रस (जूस) पिया जाता है।
शरीर पे चोट लगने पर, इस पत्ते को कूटकर लगाने से घाव जल्दी भर जाते है।
इस कोसा कोथा (Kwsa Kthang) के पौधे को यहाँ के आदिवासी घर के आस-पास में उगते है, ताकि जरूरत पड़ने पर आसानी से मिल सके।
डंकलर्स के पत्तों से ख़ासी का इलाज
जब आदिवासियों को ख़ासी की बीमारी होती है, तब डंकलर्स (Leucas Cephalotes/ द्रोणपुष्पि) को पानी में उबाल के इन पत्तों का रस (जूस) पिया जाता है। इससे ख़ासी रुक जाती है। सिर्फ़ इतना ही नहीं, इसका स्वाद इतना खराब होने के बावजूद भी आदिवासी इसे पिते है, क्योंकि इनका मानना है यह शरीर के लिए बहुत फलदायक है- सिर्फ ख़ासी के लिए ही नहीं, बल्कि यह पेट भी साफ रखता है।
सफ़ेद दागों का इलाज नीम और मूइ मासिं से
शरीर पे सफेद दाग होने पर नीम और मूइ मासिं के पत्तों (pigeon pea leaves/ अरहर के पत्ते ) को कूटकर शरीर में अच्छे से लगाते है। इन पत्तियों को नहाने से पहले रोज शरीर में लगाने से 1 महीने की अंदर सफेद दाग कम या फिर चले जाते है। शुरुआत में तो इसे शरीर पर लगाने से बहुत जलन होती है, लेकिन बाद में यह भी ठीक हो जाती है। और तो और यहाँ के आदिवासी इस मूइ मासिं के फल से सब्जियाँ पकाकर भी खाते है।
आँगन के पत्तों से पैरों की सूजन होती है दूर
पैरों की सूजन होने पर आँगन के पत्तों (Calotropis gigantea/ Giant Milkweed/अर्क) से औषधि बनाई जाती है। कढ़ाई में नमक के साथ आंगन के पत्तों को गर्म किया जाता है। 2 मिनट तक पकाने के बाद एक छोटे कपड़े में इन पत्तों को डाल के पैरों पर सेकते है। प्रतिदिन सोने से पहले रात को आंगन के पत्तों से पैरों पर सेक देने से पैरों की सूजन काम हो जाती है।
त्रिपुरा में रहने वाले आदिवासियों को आयुर्वेदिक औषधि और वनस्पतियों के बारे में बहुत जानकारी होती है। आज कल के मेडिकल स्टोर के जमाने में यह विद्या लुप्त होते जा रही है। विज्ञान में महत्वपूर्ण खोज करने की ज़रूरत बिलकुल है, लेकिन उसी के साथ साथ इस पुरातन विद्या को भी बचाना हमारा फ़र्ज़ है।
लेखिका के बारे में- बिंदिया देब बर्मा त्रिपुरा की निवासी है। वह अभी BA के छट्ठे सेमेस्टेर में है। वह खाना बनाना और घूमना पसंद करती है और आगे जाकर प्रोफेसर बनना चाहती है।
यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था
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