छत्तीसगढ़ के जंगलों में अनेक प्रकार के मशरूम पाए जाते हैं। इनमें से कई मशरूम इतने विषैले हैं कि हम तो क्या कोई भी जीव-जन्तु अगर इन्हें खा ले, तो मर भी सकते हैं।
लेकिन ऐसे भी कुछ मशरूम हैं जो बेहद स्वादिष्ट और पौष्टिक होते हैं। मुख्य रूप से पतेरी, छरकनी, गोईहा, बासपुटू, कुम्हा, लम्हागुदी और कनकी मशरूमों को खाया जाता है।
एक और जंगली मशरूम है, जिसे लोग बड़े उत्साह से खाते है, जिसे छत्तीसगढ़ के आदिवासी अपनी भाषा में फूटू कहते हैं।
पहली बारिश होने पर लम्हा, गुदी, कनकी मशरूम निकल आती है। इनमें पराली मशरूम भी शामिल हैं, जिसे पैरा फूटू कहते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अपनी पराली को खुले आसमान के नीचे ढेर बनाकर छोड़ देते हैं। यह गर्मी में अच्छी तरह से सूख जाती है। बरसात आने पर वह सड़ती है और उसमें से गोल-गोल मशरूम निकलती है, जिसे लोग अलग-अलग तरीके से बनाकर खाते हैं।
मशरूम। फोटो साभार- राकेश नागदेव
मशरूम हर क्षेत्रों में निकलती है। लोग बरसात के मौसम में भोर में ही मशरूम की तलाश में निकल जाते हैं। दिन निकलने के बाद जंगलों में भी जाते हैं। गाँवों में खाने-पीने की कमी होती है, तो आदिवासी दिनभर मशरूम निकालते हैं।
इनमें से कुछ अपने उपयोग के लिए रखते हैं और जो बच जाता है उसे आसपास के गाँवों में बेच देते हैं। पराली में निकलने वाले मशरूम बहुत ही स्वादिष्ट और पौष्टिक होते है। जितने भी प्रकार के मशरूम हैं, उनमें से पराली मशरूम सबसे अच्छा माना जाता है, क्योंकि इसमें प्रोटीन, विटामिन की मात्रा अधिक होती है।
इसे मशरूम को लोग घर लाकर धोने के बाद पकाते हैं। इसे साल के पत्ते में लपेटकर, उसमें हल्दी- मिर्च और नमक डालकर आग में पकाया जाता है।
मशरूम इकट्ठा करते समय इतनी ही बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि जिस मशरूम का खाने में उपयोग हो, वो साफ सुथरा हो, नहीं तो इससे अनेक प्रकार की बीमारियां भी हो सकती हैं।
लेखक के बारे में- राकेश नागदेव छत्तीसगढ़ के निवासी हैं और मोबाइल रिपेयरिंग का काम करते हैं। वो खुद की दुकान भी चलाते हैं। इन्हें लोगों के साथ मिल जुलकर रहना पसंद है और वो लोगों को अपने काम और कार्य से खुश करना चाहते हैं। उन्हें गाने का और जंगलों में प्रकृति के बीच समय बिताने का बहुत शौक है।
यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था
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