ग्लोबलाइज़ेशन के दौर में आदिवासी सभ्यता और संस्कृति को तेज़ी से खतरा पहुंच रहा है। कोरबा की रहने वाली श्रीमती इंद्रनिया एक्का, श्रीमती मंगती एक्का और श्रीमती जूलियाना एक्का के बातचीत से हमने उनके काम, कला और भाषा के विलोपन के बारे में जाना।
श्रीमती इंद्रनिया एक्का ने बताया,
हमारे पूर्वजों, माता-पिता और दादा-दादियों ने खेती एवं किसानी के साथ-साथ चटाई बनाने एवं बेचने का काम भी किया। उन्होंने चटाई बेचकर अपने बच्चों का पालन-पोषण किया। आज यह कला विलोपन की ओर अग्रसर है।
जूलियाना एक्का चटाई सिलाई की कला के बारे में बताती हैं। छिंदी से चटाई गताई के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा,
चटाईयों की तीन प्रकार की गताईं की जाती हैं- पांच छिंदी का (पानचे), छह छिंदी का (छक्के) और सात छिंदी का (सत्ते)। आवश्यकतानुसार इसकी लंबाई छह फुट-साढ़े छह फुट तक एवं चौड़ाई में तीन-चार फुट तक जोड़ी जाती है। चटाई जुड़ाई हेतु छिंदी का ही उपयोग होता है। किनारे में सिलाई के लिए अलग से रस्सी का उपयोग किया जाता है, जिससे चटाई का किनारा ना खुले।
विलोपन का कारण बताते हुए श्रीमती मंगती ने कहा,
आजकल बाज़ार में सस्ते दाम पर तरह-तरह की चटाईयां मिल जाती हैं। हमारी चटाई कम और बाज़ार की चटाई ज़्यादा खरीदी जाती है, इसलिए भी लोग चटाई नहीं बनाते हैं।
सरभोका गाँव के उरांव आदिवासियों के लिए चटाई बीनना सिर्फ काम नहीं, बल्कि इनमें वे अपनी कला को भी बीनते हैं। अपने कौशल से बिनी चटाईयों द्वारा वे दूसरों तक अपनी संस्कृति को पहुंचाते हैं।
उरांव आदिवासियों को उनके अलग परिधान से भी पहचाना जाता है। श्रीमती जुलियाना बताती हैं कि उरांव महिलाओं का साड़ी पहनने का अलग तरीका होता है। अपने पहनावे-ओढ़ावे के बारे में बताते हुए उन्होंने साड़ी भी पहनकर दिखाई। उरांव भाषा में इसे “ठाढी गातला तोलोंग किचरी कूरना” कहते हैं। इसका मतलब होता है “सीधा पल्ला पहनकर कमर के पास से आंचल निकालना”।
कला के साथ-साथ भाषा का विलोपन पर भी ज़ोर देते हुए श्रीमती जूलियाना एक्का ने कहा,
आज के बच्चे उरांव भाषा नहीं जानते हैं। वे हिंदी, इंग्लिश, छत्तीसगढ़ी में ज़्यादा बात करते हैं, इसलिए हमारी भाषा भी लुप्त होती जा रही है।
इस तरह विलुप्त हो रही कला, भाषा और संस्कृति को गंभीर समस्या बताते हुए इन महिलाओं ने अपनी भाषा, कला और संस्कृति को बचाए रखने की ज़िद को उजागर किया।
देखिए मनोहर एक्का के बनाए हुए इस वीडियो को, जो दिखाता है कि कैसे छत्तीसगढ़ की ये आदिवासी महिलाएं छिंदी की चटाई बनाती हैं और इस कला को ज़िंदा रखती हैं।
यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था
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