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Varsha Pulast

मवेशियों को बीमारियों से बचाने के लिए हुआ छत्तीसगढ़ के गाँव में टीकाकरण

छत्तीसगढ़ के ग्राम बिंझरा में मवेशियों को लेकर एक महत्वपूर्ण कार्य किया गया। जिससे मवेशियों को बीमारियों से दूर रखा जा सके। यह कार्य है मवेशियों के टीकाकरण का। पशुओं के लिए टीकाकरण बहुत ज़रूरी है। टीकाकरण संक्रमण रोगों के उपचार के लागत को कम करके किसानों के आर्थिक बोझ को कम करने में मदद करता है। और तो और पशुओं में ऐसी भी बीमारियां होती हैं जो उनसे मनुष्यों में भी फैलती हैं। ऐसे में पशुओं को टीकाकरण के द्वारा पशुओं से मनुष्य में संक्रमण को रोका जा सकता है।

पशुओं काम टीकाकरण क्यों ज़रूरी है

टीका लगाना बीमारी से बचने के लिए तो ज़रूरी है ही लेकिन टीका लगाने से दूध की वृद्धि में भी बढ़ोतरी की जा सकती है। इस बार दुधारू गाय को छोड़कर सभी गाय को यह टीका लगा गया। मवेशियों को टीका लगाकर उनके कानों पर पीले रंग का एक बैच भी लगाया गया, ताकि बैच के नंबर के अनुसार मवेशियों को पहचाना जा सके।

मवेशियों को लगाया गया बैच


मवेशियों में होने वाली बीमारियां


मवेशियों को होने वाली बीमारियों में से कुछ हैं गलघोटू, लंगड़ा बुखार, गिल्टी रोग, भेड़ चेचक, पीपीआर और खुर पका, मुंह पका रोग। इन सब बीमारियों का अलग-अलग टीकाकरण होता है जिससे इन बीमारियों से पशुओं को बचाया जा सके।


विभक्त खुर वाले पशुओं को घातक विषाणु जनित रोग होने की सम्भावना

विभक्त खुर वाले पशुओं को घातक विषाणु जनित रोग होने की सम्भावना होती है। विभक्त खुर वाले पशुओं में गाय, बैल, भैंस, भेड़, बकरी, सूअर आदि पालतू पशु एवं जंगली भैंसो में भी होता है। मुंह पका, खुर पका यह रोग किसी भी उम्र की गाए के साथ-साथ उनके बच्चों को भी हो सकता है। यह रोग कभी भी, किसी भी मौसम में गांव में फैल सकते हैं। इस रोग का कोई इलाज नहीं, इसलिए रोग होने से पहले टीकाकरण करना ज़रूरी है।


कई रोगों के पशुओं को बुखार के लक्षण होते हैं


कई रोगों के आने से पशुओं को बुखार होता है और मुंह में दाने, छाले हो जाते है। कई बार दर्द की वजह से पशु लंगड़ाने भी लगते है। कभी कभी रोग इतना बढ़ जाता है कि पशु को बचाया नहीं जा सकता लेकिन ऐसा भी होता है कि सब ज़ख़्म भर जाने के बाद पशु ठीक हो जाता है।

सावधानी


प्रभावित पशु को साफ एवं हवादार स्थान पर अन्य पशुओं से दूर रखना चाहिए। पशुओं की देखभाल करने वाले लोगों को भी हाथ-पांव साफ करने के बाद ही दूसरे पशु के संपर्क में आना चाहिए।


यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजैक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, और इसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है।


यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था

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