top of page
Joyeal Debbarma

यह ट्राइबल म्यूज़ियम देता है त्रिपुरा के आदिवासियों के जीवन की झलक

भारत के उत्तरपूर्व के त्रिपुरा राज्य में 19 आदिवासी समुदाय रहते है। त्रिपुरा के खुमुलुङ (Khumulwng) के TTAADC (Tripura Tribal Areas Autonomous District Council) के Tribal Heritage Museum में आदिवासियों की बनाई हुई कुछ चीज़ें देखने को मिलती है। यह म्यूज़ियम 2011 में बनाया गया था।

त्रिपुरा के खुमुलुड में TTAADC का Tribal Heritage Museum। फोटो- जोएल देब बर्मा


इस म्यूजियम में केवल आदिवासी लोगों से सम्बंधित चीज़े देखने को मिलती है। जो 19 आदिवासी समुदाय त्रिपुरा में रहते हैं, वे सदियों से चीजें कैसे बनाते आ रहे हैं इसके बारे में यहां जानकारी मिलती है।उदाहरण के दौर पे आदिवासियों ने अपने हाथों से बनाया हुआ कपड़ा, बांस से बनाई हुई कुछ चीजें- यह इस म्यूज़ीयम में प्रदर्शित की गयी है।


त्रिपुरा के 19 आदिवासी समुदाय हैं।

  • देब बर्मा (Royal family Debbarma) Tripuri

  • रीयांग (Reang)

  • चकमा (Chakma)

  • कुकी (Kuki)

  • जमातीया (Jamatia)

  • हलाम (Halam)

  • मोग (Mog)

  • गारों (Garo)

  • नोआतिया (Noatia)

  • लुसाई (Lusai)

  • उचोई (Uchoi)

  • खासी (Khasi)

  • चाइमाल (Chaimal)

  • लिपचा (Lipcha)

  • मुंडा (Munda)

  • भूतिया (Bhutia)

  • ओरांग (Orang)

  • भील (Bhil)

  • सन्थाल (Santhal)

यह आदिवासी समुदाय त्रिपुरा के पहाड़ों में अपना घर बनाकर रहते हैं। ज़्यादातर यह समुदाय अपना खाना खुद उगते है और अपने कपड़े भी खुद अपने हाथों से बनाते है।इन समुदायों के बनाए हुए कपड़े भी इस म्यूज़ीयम में देखने मिलते है।

यहां 11 आदिवासी समुदायों की वेश भूषा देखने मिलती है। फ़ोटो- जोएल देब बर्मा


कपड़ों के साथ-साथ आदिवासियों द्वारा बनाए गए आभूषण भी देखने लायक है। त्रिपुरा के आदिवासी अपने हाथों में, गले में, पाव में और माथे पर भी आभूषण पहनते है।


यह आभूषण ज़्यादातर चांदी से बनाई होती है, दिखने में बड़ी सुंदर और पहनने में बहुत भारी।अपने हाथों से बनाए गए यह आभूषण सिर्फ़ दिखने में सुंदर ही नहीं, बल्कि मज़बूत भी है। महाराजा बीर विक्रम माणिक्य के समय इन चीजें का बहुत ज़्यादा इस्तेमाल होता था, लेकिन आज कल यह बहुत कम नज़र आती है।

चांदी से बनाए हुए आभूषण। फोटो-जोएल देब बर्मा


त्रिपुरा के कई आदिवासी समुदाय अपने संगीत वाद्ययंत्र भी अपने हाथों से बनाते है।बड़े बड़े पहाडों के जंगल मैं जाकर लकड़ी और बॉस इकट्ठा करके लोग अपने हाथों से वाद्ययंत्र तय्यार करते है।एक समुदाय का वाद्ययंत्र सिर्फ़ उसी समुदाय के लोग बजा सकते है, और कोई नहीं बजा सकता। त्योहारों में, पूजा के समय या फिर किसी के मरण के बाद- संगीत इस संस्कृति का बड़ा हिस्सा है। जैसे कि गोरिया पूजा, मामीता डांस, ले बांग डांस- गीत-संगीत का महत्व बहुत है। और यह सुनने में भी बहुत मधुर है।


दुर्भाग्य से 19 समुदायों में से 3-4 समुदायों की संस्कृति ग़ायब हो चुकी है, और बाक़ी समुदाय भी धीरे-धीरे उसी रास्ते चल रहे है। अभी त्रिपुरा में भी यह वेश-भूषा और संस्कृति ज्यादातर देखने को नहीं मिलती है। संस्कृति लुप्त होने के बाद वह ऐसे म्यूज़ीयम में एक प्रदर्शनीय वस्तु बन जाती है। वह इतिहास बन जाती है। इस संस्कृति के बारे में बात करना, जागरूकता बढ़ाना और इसे बचाना बहुत ज़रूरी है।


इस म्यूज़ीयम की एक झलक के लिए जोएल का बनाया गया विडीओ आदिवासी लाइव्ज़ मैटर के फ़ेस्बुक पे देखें-




लेखक के बारे में: जोएल देब बर्मा त्रिपुरा का निवासी है। यह अभी BA की पढ़ाई कर रहे है। उन्हें गाने और घूमने का शौक़ है और इन्हें लोगों की मदद करना अच्छा लगता है। यह आगे जाके LLB करके वकील बनना चाहते है।


यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था


Comments


bottom of page