बांस का उपयोग सिर्फ़ भारत में नहीं, बल्कि दुनिया भर के आदिवासी समुदाय अलग अलग उपयोग की वस्तुएँ बनाने के लिए करते है। खाने के बर्तन से लेकर चटाई तक, बांस की बनी हुई वस्तुएँ सिर्फ़ उपयोगी हाई नहि, बल्कि दिखने में भी बहुत ही सुंदर होती। इन उपयोगी वस्तुओं में से आज मैं आपको त्रिपुरा के मेरे गाँव में बनायी जाने वाली बांस की टोकरी के बारे में बताना चाहूँगा।
सर्वागीण बांस की टोकरी
यह साधारण सी वस्तु त्रिपुरा के आदिवासियों के घरों के लिए बड़ी महत्वपूर्ण होती है। इस टोकरी का इस्तेमाल प्रतिदिन किया जाता है- कभी चावल का ढेर लगाने के लिए, कभी सामान भंडार में रखने के लिए। इसका उपयोग शादियों में भी होता है, जहाँ यह टौफ़ोन को पैक करने में काम आती है। इसी टोकरी में गांव के लोग फल-सब्जी बाज़ार में विक्रि करने के लिए ले जाते हैं। टोकरी से धान के ढेर को उठाकर बस्ती में डालना भी आसान होता है।
ऐसे बनती है टोकरी
टोकरी बनाने के लिए हरे बांस का इस्तेमाल होता है। जिस बांस से टोकरी बनाते है, वह बिलकुल सीधी और लंबी होनी चाहिए, नहीं तो अच्छी और टिकाऊ टोकरी नहीं बनती। बांस को एक विशेष प्रकार के छोरी से छला जाता है और लंबी लंबी पट्टियाँ निकाली जाती है। इन्हें और भी छीलकर और पतली बनाई जाती है। फिर इन्हें दो-तीन दिन के लिए धूप में सुखाकर, इन्हें शिल्पकार टोकरी का आकार देते है।
वैसे तो टोकरी बांस की बनाते है, लेकिन टोकरी को मजबूत बनाने के लिए एक विशेष किस्म के बांस का, जिसे राय कहते है, इस्तेमाल किया जाता है और टोकरी के ऊपरी हिस्सों में मज़बूती से बांधा जाता है।
आमदनी कमाने का ज़रिया
एक टोकरी बनाने के लिए दो-तीन दिन का समय लग जाता है। एक टोकरी में लगभग 20 किलो का सामान रखा जा सकता है। ऐसी एक टोकरी का बाजार का मूल्य लगभग 400- 450 रुपए होता है। गांव के सभी बुजुर्ग टोकरी बना जानते है। कभी-कबार जब घर में पैसों की कमी होती है, तो घर के बुजुर्ग टोकरी बनाकर बाजार में बेचते हैं और परिवार चलाने में मदद करते हैं।
पर्यावरण के अनुकूल बांस की टोकरी का उपयोग
प्लास्टिक दुनिया की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है और इससे बचने के लिए हमें नए बदल लाने होंगे। यह नए बदल लाने के लिए और एवज़ ढूँडने के लिए आपको ज़्यादा दूर देखने की ज़रूरत नहीं है- आप यह विकल्प और पर्याय आदिवासियों के घरों में ढूँड़ सकते है। हमें दुनिया के पेड़-पौधे, पशु-प्राणी और खुद को बचाने के लिए प्लास्टिक का उपयोग कम करना चाहिए। यह हम सब के लिए हानिकारक है और यह जैविक सामग्री की तरह मिट्टी में घुलता भी नहीं है। ऐसी प्लास्टिक भरी दुनिया में यह साधारण सी बांस की टोकरी एक आसान और टिकाऊ पर्याय है।
About the author: Rabindra Debbarma lives in Tripura. He is a beekeeper and is working towards growing his bee farm. He loves to travel and learn about what’s new in the world.
This article was first published in Youth Ki Awaaz
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