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आइए जानें कोडगार ग्राम के प्रसिद्ध कुंडा के बारे में

पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित


हमारे भारत में ऐसे गांव होते हैं, जहाँ कुछ विशेष तरह के चीजें या प्रकृति से निर्मित, प्रकृत्ति का एक अद्भुत संसार देखने को मिलता है, जिसे देखकर हर कोई हैरान रह जाता है। ऐसे ही हमारे गांव में एक प्रसिद्ध झरना है, जो आदिवासियों के लिए देव तुल्य के समान है। जो कोडगार ग्राम में स्थित है और यह जंगल के किनारे है। हमारे यहाँ यह 'कुंडा झरिया' के नाम से प्रसिद्ध है। इस झरिया (झरना) के बारे में गांव के लोगों व बुजुर्गों का कहना है कि, यह झरिया लोगों के द्वारा नहीं बनाया गया है। बल्कि, यह प्रकृति में पहले से ही कुंडा जैसा आकृति के आकर में है।


ग्रामीणों द्वारा इस कुंडा का पूजा-अर्चना साल में एक बार किया जाता है। क्योंकि, पहले भी बुजुर्गों के द्वारा इस कुंडा का पूजा-अर्चना किया जाता रहा है और आज भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस कुंडा की पूजा अर्चना करते आ रहे हैं। और यह कुंडा गांव से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी में स्थित है। इस स्थान में गांव के सभी लोग सिर्फ पूजा-अर्चना करने के लिए ही जाते हैं।

कुंडा झरिया

हमने गांव के ही निवासी, जिनका नाम पवन सिंह बैगा है और जिनकी उम्र 60 वर्ष है। उन्होंने हमें अपने गांव में स्थित कुंडा के बारे में बताया कि, कुंडा कुएं के समान दिखाई देता है और उसमें हमेशा पानी भरा रहता है, चाहे कितनी भी गर्मी हो, उस कुंडे का पानी कभी कम नहीं होता। गांव के बुजुर्गों का कहना है कि, यह जो कुंडा है वह आदिवासियों का एक विशेष कुंडा है। जिसमें प्रत्येक 3 सालों में वहां बकरा पूजाई (बलि) की जाती है। प्रकृति से निर्मित वे सभी तरह की चीजें जैसे नदी, कुएं, झरिया, कुंडा, पेड़-पौधे आदि आदिवासियों के पूज्य देवता के रूप में माने गए हैं।

यह जो कुंडा झरिया है, वह पत्थर का ही है और पत्थर में एक कुएं के आकार के जैसा दिखने वाला छोटा सा कुंडा है। जिसमें हमेशा पानी भरा रहता है और यह पानी हमेशा हर समय पत्थर से पाझरता (रिसता) रहता है। यहां आस-पास कोई भी नाले, नदी या तालाब नहीं है। लेकिन, हर समय इस कुंडा में पानी भरा रहता है। यह जो झरिया है वह साल वृक्ष के पास स्थित है। इसी साल वृक्ष के नीचे सरना पूजाई होता है। और यहीं नजदीक में आदिवासियों के घर हैं। और वे इसी कुंडा से अपने लिए पीने का पानी उपयोग में ला रहे हैं।

आदिवासियों द्वारा पूजा अर्चना की जा रही है

यहाँ के आदिवासियों का कहना है कि, हम इस कुंडा को देवी का स्वरूप मानकर उसकी पूजा अर्चना करते हैं। ताकि, हमारे गांव में पानी की कभी कमी ना हो। लोगों का कहना है कि, यह कुंडा प्राचीन जमाने से ही उस जगह में है और पहले के लोग भी उस कुंडा का पूजा अर्चना करते थे। और आज भी विधि-विधान से आदिवासी बुजुर्ग पूजा-अर्चना करते हैं।


हमारे आस-पास झरने, बड़े-बड़े पत्थरों में कुएं के आकार का कुंड या प्राचीन समय में खोदी गई कुएं या जंगलो में कुंड का निर्माण प्रकृति की सुंदरता को दर्शाता है। इस तरह के रचनाओं को देखने के लिए बहुत दूर-दूर से लोग आते हैं। आदिवासी प्रकृति को अपना धरोहर और अपने जीवन का एक हिस्सा मान कर चलते हैं और कहते हैं कि, अगर हम प्रकृति के गोद में पैदा हुए हैं तो प्रकृति से निर्मित झील, झरना, तालाब, कुएं और कुंड की रक्षा करना हम आदिवासियों का एक कर्तव्य है।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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