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Khageshwar Markam

एग्रोक्रेट्स सोसायटी के संचालित होने से गरियाबंद क्षेत्र की हो रही है विकास

छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के अंतर्गत, केरगाँव में मौजूद "एग्रोक्रेट्स सोसायटी फ़ॉर रुरल डेवेलपमेंट कृषि ऋषि आश्रम" के संचालन होने से आसपास के गाँवों को अनेक फ़ायदे हो रहे हैं, और ग्रामीणों का जीवन बदल रहा है।

देवरी गाँव के निवासी, श्री चिंताराम दिवान, एवं रूवाड़ निवासी श्री नरेन्द्र नेताम द्वारा बताया गया कि, एग्रोक्रेटस् सोसाइटी फ़ॉर रूलर डेव्हलपमेट (ASORD) कृषि ऋषि आश्रम संस्थान के होने से इस क्षेत्र के लोग कई तरह से लाभान्वित हो रहे हैं। फलदार वृक्ष या बाँस लगाना हो या धान के बीज देना हो, या फिर बोरिंग कराना हो, इस जैसे अनेक कार्यों तथा योजनाओं के तहत किसानों की मदद की जा रही है।


चिंताराम जी कहते हैं, "नलकूप के लग जाने से अब मैं एक कि जगह दो फसल लगा रहा हूँ जिससे मेरी आमदानी बढ़ गई है एवं खेती-बाड़ी कर के ही अच्छे से अपना जीवन यापन कर पा रहा हूँ। एग्रोक्रेट्स की सहायता से मैं अपने बाड़ी में आम के पौधे लगाया हूँ, जिससे मुझे साल में 30 से 35 हजार रूपये की आमदनी हो जाती है। इस आमदानी से मैं अपने अन्य कृषि कार्यों को आसानी से कर पा रहा हूँ। मेरे अलावा इस क्षेत्र में बहुत से लोग इस तरह की योजनाओं का लाभ लेकर अपने दैनिक जीवन में सुधार लायें हैं।"


कृषि कार्य को और बेहतर तरीके से करने के लिए इस क्षेत्र के किसानों को एग्रोक्रेट्स द्वारा बीच-बीच में ट्रेनिंग भी दी जाती है। किसानों के जीवन में बदलाव का यह सिलसिला 1997-98 से शुरू हुआ है।

एग्रोक्रेट्स द्वारा ग्रामीणों को ट्रेनिंग दी जा रही है

आधुनिक तरीके से कृषि कार्यों को करने के लिए किसानों को बहुत ही अधिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। परंतु अब आसान होने लगा है। ट्रेनिंग तथा जानकारी के साथ-साथ किसानों को धान, कोचई, लाख, उड़द, मूंगफली, सब्जीयाँ, आदि के बीज भी समय-समय पर किसानों को दिए जाते हैं।

ग्रामीणों के बीच बीज वितरण

देशी धान की तुलना में हाइब्रिड धान की पैदावार अच्छी होती है, इससे लोगों को दुगुनी आमदानी हो रही है। अब तक हाईब्रिड धान की खेती बहुत कम ही किसान करते थे, परंतु पिछले पाँच सालों में हाईब्रिड धानों की खेती में बढ़ोतरी हुई है।

आधुनिक तरीके से धान की कृषि करता किसान

एग्रोक्रेट्स सोसायटी ने छत्तीसगढ़ के सुदूर वनांचल क्षेत्रों के आदिवासी एवं कृषक परिवारों के साथ जो सामाजिक-आर्थिक विकास ताना-बाना बुना है, वह निश्चय ही उल्लेखनीय है। एग्रोक्रेट्स सोसायटी ने कृषि की आधुनिकतम और परम्परागत तकनीकियों का कुशलता के साथ समन्वय करते हुए, कृषि कार्य से आय में अधिकतम वृद्धि करने का अनुकरणीय उदहारण प्रस्तुत कर, लोगों के जीवन स्तर में बदलाव लाया है।

अपनी फसलों के साथ किसानों की एक तसवीर
अध्यक्ष श्री धीरेंद्र मिश्रा

एग्रोक्रेट्स सोसायटी अपने उद्देश्य की प्राप्ति हेतु सदैव से उत्तम साधनों का उपयोग करती रही है। एग्रोक्रेट्स सोसायटी द्वारा

कृषको में स्वयं के संसाधनों से खेती, अर्थात टिकाऊ खेती को प्रोत्साहन देने हेतु वर्ष 1995 में, अधिक पैदावार वाली परोपजीवी प्रतिरोधी प्रजाति “महामाया” धान का सूत्रपात बस्तर जिले में किया था, जो एक नवप्रवर्तनशील अभियान था। जिसके तहत पढ़े-लिखे योग्य युवाओं को कृषि के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य हेतु प्रेरित किया गया। आधुनिकतम तकनीकी के उपकरणों की जानकारी एवं उनके उपयोग करने के तरीकों से कृषकों को अवगत कराया गया, जिससे कृषि कार्य में लागत कम हो तथा उत्पादन अधिक हो, एवं खेती लाभकारी हो सके।

यह जानकारी एग्रोक्रेट्स सोसाइटी के अध्यक्ष श्री धीरेंद्र मिश्रा जी द्वारा बताया गया।


स्वालंबी महिलाएं

महिलाओं के क्षमता व कौशल विकास हेतु एग्रोक्रेट्स सोसायटी, महिला स्व-सहायता समूह का निर्माण करती आयी है, साथ ही नाबार्ड के सहयोग से उन्हें प्रशिक्षित भी करने का कार्य कर रही है। लगभग 6000 महिलाओं को आजीविका-मूलक प्रशिक्षण दिया जा चूका है।

छत्तीसगढ़ शासन द्वारा वर्ल्ड बैंक की सहायता से 40 विकासखंडो के 2000 पंचायतों में, गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम के तहत सूक्ष्म योजना तैयार करने में प्रोजेक्ट फेसिलिटेटर टीम के रूप में एग्रोक्रेट्स सोसायटी का चयन किया गया। विभिन्न गतिविधियों में से 117 समूहों द्वारा असिंचित भूमि में सिंचाई के साधन हेतु बोरवेल्स और नाडेप टैंक की योजना का निर्माण किया गया, जिससे 117 बोरवेल्स एवं उतने ही नाडेप टैंक स्थापित हुए। सिंचाई के साधन से लगभग 1500 एकड़ भूमि बहुफसलीय हो गयी एवं ग्रामीणों के आय में दोगुनी वृद्धि हुई, जिससे अन्य गतिविधियों को बाज़ार उपलब्ध हो सका और चौतरफा विकास संभव हो पाया।


एग्रोक्रेट्स सोसायटी की योजनावार कार्य प्रणाली एवं पारदर्शिता के साथ शून्य प्रतिशत भ्रष्टाचार कि प्रक्रिया को वर्ल्ड बैंक ने भी प्रशंसा की है।


यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अन्तर्गत लिखा गया है जिसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है l

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