भारत में कोरोना वायरस की वजह से 25 मार्च को प्रथम लॉकडाउन घोषित किया गया था। हालांकि यह निर्णय लोगों की सुरक्षा के लिए लिया गया था, जिससे बहुत लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
सबसे अधिक समस्याएं गरीबों और मध्यमवर्गीय परिवारों को हुई हैं। मज़दूरों की एक समस्या खत्म होते होते ही दूसरी समस्या सामने आकर खड़ी हो जाती है। गरीब मजबूर अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए अपने राज्य के बाहर काम करने जाते हैं और इस साल भी गए थे। अब अपने राज्य में लौटकर उन्हें फिर से उसी गरीबी की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।
लॉकडाउन हो या ना हो, गरीबों को बेरोज़गारी की समस्या से जूझना ही पड़ता है। जो आशा लेकर रोज़गार की तलाश में बाहर गए थे, उनकी समस्याएं वैसे की वैसी ही हैं। लॉकडाउन में किसी को भी घर से बाहर जाने की अनुमति नहीं थी, जिससे और भी कठिनाइयां खड़ी हो गईं।
ग्रामीणों के बीच राशन वितरण
लेकिन इस समस्या का हल निकालते हुए राशन का सामान सभी के घरों में पहुंचाया गया ताकि कोरोना महामारी से बचा जा सके और सभी लोग लॉकडाउन का पालन करें।
यह राशन का समान शासन द्वारा दिया गया था, जिसे ग्राम बिंझरा पंचायत के दलदली पारा के निवासियों को पंच के माध्यम से वितरण किया गया। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा तीन महीने के राशन में चावल, चना, शक्कर, मिट्टी तेल के साथ साथ गाँव में ग्राम पंचायत द्वारा मास्क भी दिया गया।
दाल, आलू, प्याज़, साबुन, तेल, मिर्च-मसाला, हल्दी इन सभी चीज़ों को सही समय पर वितरण किया गया ताकि गाँव के लोगों को कोई समस्या ना हो और लोग इस समान को लेने के लिए बाहर जाकर एक-दूसरे के संपर्क में ना आएं।
राशन वितरण का रिकॉर्ड।
लोगों का कहना है कि शासन द्वारा जो खाद्य सामान दिया गया है, उससे गाँव के लोगों को कुछ हद तक मदद मिली है।सामान वितरण करने के बाद रजिस्टर पर उनके नाम और उनके हस्ताक्षर करवाए गए ताकि यह पता चल सके कि किस-किस को राशन मिला है और किसको नहीं।
छत्तीसगढ़ से बाहर काम करने के लिए गए हुए लोग
बहुत से लोग अपने गाँव से बहुत दूर-दूर तक काम करने के लिए गए थे, जो अभी तक अपने घर वापस नहीं आए हैं। जो लोग अपने-अपने घर हैं, उनका तो ख्याल रखा जा सकता है लेकिन जो घर से बाहर हैं, उनका क्या? ना तो उनको खाने-पीने को मिल रहा है और ना ही काम मिल रहा है, जिसकी वजह से उन्हें खाली हाथ वापस आना पड़ रहा है।
सिर्फ इतना ही नहीं, लॉकडाउन के दौरान बहुत लोगों की सिर्फ कोरोना संक्रमण से ही नहीं, बल्कि भूख से भी जान चली गई। जैसे-जैसे समय बीतता गया, अपने राज्य के बाहर अटके हुए मज़दूरों को और गाँव में लोगों को खाने की व्यवस्था करके दी गई।
बार-बार लोगों को लॉकडाउन का पालन करने को कहा गया। अन्य राज्यों से छत्तीसगढ़ में कोरोना संक्रमित मरीज़ों की संख्या कम ही है लेकिन हमें इन नियमों का पालन करते ही रहना है।
बाहर से आए लोगों को रखा जा रहा है स्कूलों में
क्वारंटाइन सेंटर की प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images
बाहर से काम करके आने वाले लोगों को गाँव से बाहर स्कूलों में रखा जा रहा है। चाहे वे महिला हों, पुरुष हों या बच्चे हों, सभी पर यह नियम लागू है। उन्हें गाँव के लोगों के साथ संपर्क में नहीं आने दिया जा रहा है, चाहे वे घर के ही सदस्य क्यों ना हों।
बाहर से मेडिकल टीम आई, जिन्होंने उनका ब्लड सैंपल लिया और लोगों को तब तक स्कूलों में रखा जाएगा जब तक कि उनके ब्लड सैंपल का रिज़ल्ट वापस ना आ जाए। उनके खाने-पीने की व्यवस्था ग्राम पंचायत द्वारा की जा रही है और उनकी सभी ज़रुरतों को ग्राम पंचायत पूरा करने की कोशिश कर रही है।
लोगों का कहना है कि शहरों से ज़्यादा गाँवों में लॉकडाउन का पालन किया गया। यही वजह हो सकती है कि छत्तीसगढ़ के कई ज़िलों में एक भी कोरोना संक्रमित मरीज़ नहीं मिला है।
इस लॉकडाउन की वजह से बच्चे स्कूल नहीं जा सकते हैं इसलिए उनकी पढ़ाई एप्स के माध्यम से ऑनलाइन करवाई जा रही है ताकि वे घर पर ही रहकर अपनी पढ़ाई पूरी कर पाएं।
गाँव में कड़े नियम लागू
गाँव में नियम लागू किया गया है कि अगर कहीं भी आना-जाना कर रहे हैं, तो मुंह को ढककर अन्य लोगों से 1 मीटर की दूरी बनाकर बात करें। सबको अपने ही गाँव में रहना है, दूसरे गाँव में नहीं जाना है। गाँव में जो कोतवाल रहते हैं, वो समय-समय पर गाँव वालों को आदेश देते हैं और गाँव के जो निवासी हैं, वे कोतवाल के आदेश का पालन करते हैं।
कुछ हद तक देखा जाए तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करके गाँव के लोग अपनी और अपने परिवार वालों की रक्षा कर रहे हैं।
सरकार द्वारा रोज़गार की मदद
गाँव में रहने वाले गरीबों की मदद के लिए उन्हें सरकार की महात्मा गाँधी रोज़गार गारंटी योजना द्वारा काम दिया गया। इसके द्वारा गाँव के लोग काम करके अपनी ज़रूरतों को पूरा कर रहे हैं। इसके अलावा वनोपज तेंदूपत्ता भी खोला गया है और सभी लोग तेंदूपत्ता तोड़ने जाते हैं, जिसके द्वारा उनको कुछ राशि मिल रही है।
इस परिस्थिति का सामना करते हुए गाँव में रहने वाले आदिवासी अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। अगर हम कड़ाई से नियमों का पालन करेंगे, तो कोरोना के खिलाफ यह लड़ाई हम ज़रूर जीतेंगे।
नोट: यह लेख ‘Adivasi Awaaz’ प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाज सेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था
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