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छत्तीसगढ़ में सूखे की हालत, क्या ग्रामीण आदिवासियों को करना पड़ सकता है पलायन?

‘धान का कटोरा’ कहलाने वाली छत्तीसगढ़ राज्य आदिवासी बहुल क्षेत्रों से परिपूर्ण है और अधिकतर लोग गाँव तथा जंगलों में निवास करते हैं, जिसमें छोटे किसान एवं मज़दूर भी शामिल हैं। वनांचल और ग्रामीण क्षेत्रों में मिलने वाले मौसमी रोजगारें, कुछ हद तक पलायन को रोकने में सहायक है।


गाँव में रहने वाले आदिवासियों का जीवन पूर्ण रूप से प्रकृति पर निर्भर है। उनके कमाई का ज़रिया मौसमी होता है, जैसे - तेंदु पत्ता संग्रहण, महुआ बिनाई, कृषि कार्य आदि। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आदिवासियों के जीवन में मौसम का गहरा प्रभाव होता है। पूरी तरह से मौसम पर निर्भर रहने के कारण जब भी मौसम में अनियमित बदलाव होते हैं, इनका जीवन भी प्रभावित होता है।

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धान के फसलों पर बीमारी के लक्षण

इस वर्ष प्रतिकूल मौसम एवं अनियमित वर्षा ने आदिवासी जनजीवन को काफ़ी प्रभावित किया है। धान लगाने के शुरुआती दिनों में अत्याधिक बारिश से खेतों के मेड़ वगैरह टूट गए, और समय पर बुनाई-रोपाई नहीं हो पाई।

समय पर यदि धान की फसलें न लगी हों तो उनमें रोग लगने का खतरा बढ़ जाता है, और इन्हीं समस्याओं का सामना किसानों को करना पड़ रहा है।

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श्री जगधारी सिंह उर्रे, ग्राम पंचायत मोरगा

ग्राम पंचायत मोरगा के रहने वाले गोंड आदिवासी, श्री जगधारी सिंह उर्रे बताते हैं, "मैं लगभग छः एकड़ जमीन पर कृषि कार्य करता हूँ। धान का पौधा लगभग पंद्रह से बीस दिनों में तैयार हो जाता है और फिर उसे उखाड़ कर खेतों में रोपाई की जाती है, लेकिन बारिश की अनियमितता की वजह से धान की फसलों में बीमारी लग गई है। जिसके कारण फसल की पैदावार कम होने की संभावना है।"

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ग्राम डुमरमुडा निवासी विलियम तिग्गा

ग्राम डुमरमुडा निवासी विलियम तिग्गा बताते हैं, "फसल लगाने के बाद बारिश हुई नहीं, जिसके वजह से धान के बिचड़े, रोपाई के वक़्त जैसे थे वैसे ही रह गए, और जब बारिश शुरू हुई तो सप्ताह दो सप्ताह तक सूरज का प्रकाश ठीक से फसलों पर नहीं पड़ा, परिणामस्वरूप फसलों का लाल पड़ जाना, पीलापन, कीडों का लगना, आदि बीमारियाँ होने लगी हैं। मेरे परिवार के सभी जरूरी आवश्यकताओं की पूर्ति इन्हीं धान के फसलों से होती है, फसल का सही से नहीं होने और गाँवों में प्रयाप्त रोज़गार न मिलने की वजह से पैसों की किल्लत होने वाली है।"

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हल चलाते हुए किसान

समय पर बारिश होने से बुनाई, रोपाई, चचई आदि कार्य सही से हो पाते हैं जिससे अच्छी पैदावार होती है और किसानों का जीवनयापन सही से हो पाता है, परंतु इस वर्ष की स्थिती से ऐसा लग रहा है कि, धान के फसलों की उपज कम होगी, इन हालातों में आदिवासी किसान मज़दूरी के लिए पलायन करने को मज़बूर हो जाएंगे।


छत्तीसगढ़ सरकार ने अच्छी फसल न हो पाने, तथा सूखे जैसी स्थिती में मुआवजा देने की बात कही है, यदि इसे सही से क्रियान्वित किया जाता है तो आदिवासी किसानों को बहुत राहत होगी।


यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अन्तर्गत लिखा गया है जिसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है l


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