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आइए जानें पपीता के बड़ी कैसे बनते हैं

पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित


मेवा के बारे में सभी लोग जानते हैं। लेकिन, मेवा को बड़ी कैसे बनाते हैं, इसके बारे में बहुत कम लोगों को पता होगा। कच्चे मेवे की सब्जी बनाई जाती है और पक्के को खाया जाता है। बड़ी बनाने के बारे में, हमें राम बाई सोरी, जो डंगनी पारा की रहने वाली हैं, जिनकी उम्र 51 वर्ष है। उन्होंने हमें बताइए कि, पपीता जो हमारे छत्तीसगढ़ के लोग इसे मेवा के नाम से जानते हैं। सबसे पहले मेवा को तोड़ा जाता है। इसके बाद 3 से 4 घंटे तक, इसको पानी से धोने के बाद, सुखाया जाता है। उसके बाद मेवा को काटा जाता है, काटने के बाद, उसके छिलके को छिला जाता है। उसके बाद मध्य भाग को साफ़ करके, फिर पानी में धोया जाता है। फिर कोरनी से करी-करी घिसने के बाद, मेवा को झेनझरी में रख दीया जाता है। ताकि उसमें से पानी अच्छे से निकल जाए। उसके बाद उसमें, उरदी दाल को फिलाकर, फिलने के बाद, उसको धोया जाता है। धोने के बाद ढेकी बहना से कुटा जाता है। कूटने के बाद, पीठी बनाया जाता है।

राम बाई सोरी

गोंडी भाषा में, कूटे हुए आटे को पीठी बोलते हैं। और उसी, उरदी दाल की बनाई हुई पिट्ठी को, मेवे की करी में मिलाया जाता है। अच्छे से मिलाने के बाद, उसे सुखाने के लिए, अपने घर के अगल-बगल बाड़ी में लकड़ी या बांस का माचा बनाया जाता है। ताकि, उसमें अच्छे से पूरे दिन-भर का धूप पड़े। फिर उसमें की बनाई हुई करी को, गोल-गोल छोटा-छोटा बनाकर सुखो दिया जाता है।

कोरनी से पपीता घिसने के बाद

दो-तीन दिन सुखाने के बाद, उसे सब्जी बनाकर खा सकते हैं। जिसे टमाटर और आलू के साथ भी बनाया जाता है। और इस बड़ी को, छोटे बच्चे वाले माय लोग भी खाते हैं और किशोरी माय लोगों को भी खिलाया जाता है। जिस प्रकार रखियो बड़ी को उचित माना जाता है, ठीक उसी प्रकार इसको भी उचित माना जाता है। क्योंकि, इनमें अत्यधिक प्रोटीन होता है।

करी को धुप में सूखने के लिए छोड़ते हुए

ग्रामीण इन चीजों का ज्यादा उपयोग करते हैं। क्योंकि, ये गांव देहातों में, सभी के घरों में मिलता है। और इसका खेती भी किया जाता है और जब फल बड़ा हो जाता है, तो बाजारों में ले जाकर बेचते हैं। किसानों को इनका भी पौधा लगाने से बहुत फायदा होता है और जिन लोगों के घरों में नहीं रहता है, वे लोग उन किसानों के बगीचे से खरीदारी भी करते हैं। ज्यादातर नवरात्र के सीजन में, इन चीजों की अत्यधिक खरीदारी होती है। क्योंकि, नवरात्र में पूजा करने के लिए, पक्के हुए फलों को ज्यादा खरीदते हैं। पूजा-पाठ करने के लिए, तो रोजाना सुबह-सुबह हर आदमी एक-एक फल जरूर लेकर जाता है। इस प्रकार किसानों को बहुत लाभ मिलता है। ठीक उसी प्रकार, पपीता की खेती करने वाले किसानों को भी लाभ होता है।


सर्दी के दिनों में तो, पपीता के पेड़ों में, इस मौसम में बहुत ज्यादा फल लगता है। और गांव के लोगों का कहना है कि, अगर किसी व्यक्ति को अचानक पेट दर्द हो रहा हो, तो पपीते का सेवन करने से, पेट दर्द खत्म हो जाता है और पेट भी साफ होता है।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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