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वर्तमान भारत में, कैसी है नट जाति की वस्तुस्थिति?

Writer's picture: Veer MeraviVeer Meravi

पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित


हमारे बीच, कई लोग अपनी आर्थिक स्थिति से लड़ रहे हैं। उनके पास न तो पक्का घर है, न ही रोजगार है। वे झोपड़ी में रहते हुए अपना जीवन गुजारते हैं। शिक्षा की कमी और अज्ञानता के कारण, उनकी नई पीढ़ी भी इस स्थिति से गुजरने के लिए मजबूर है। इन लोगों की आर्थिक स्थिति भी उतनी मजबूत नहीं है, जो उन्हें अपने आने वाले कल को, बेहतर बनाने में मदद कर सके। इतने दिनों से, वे भीख मांग कर ही अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इस कारण, उनको देख कर भी अनदेखा किया जा रहा है।

एक नट परिवार का कच्चा घर

नट जाति के लोगों की आर्थिक स्थिति बहुत ही कमजोर है। ये लोग मिट्टी से बने, कच्चे घरों में रहते हैं और उनके पास कोई जमीन भी नहीं है, जहाँ वे खेती कर सकें। नट समुदाय में, पुरुष वर्ग सुबह से ही कबाड़ी के सामान को चुनने जाते हैं और दिन के एक-दो बजे तक वापस लौट आते हैं। इनके घर की महिलाएं सुबह से आस-पास के गांव में, भीख मांगने के लिए जाती हैं। गांव के लोग, उन्हें चावल और उनके लिए खाने की चीजें देते हैं। महिलाएं, रोजाना गांव बदल-बदल कर भीख मांगने जाती हैं। क्योंकि, कोई भी उन्हें अपने साथ काम में नहीं ले जाना चाहता है। इसलिए, उनके लिए भीख मांगना ही एकमात्र सहारा होता है।

नट जाति की महिलाएं

नट जाति की महिलाएं, अपने पूरे परिवार को अकेले पालती हैं। वे अपने साथ चुरकि कटोरा लेकर निकलती हैं और सारा दिन, चुरकि भरने तक वापस नहीं आती हैं। तस्वीर में, आप देख सकते हैं कि, चार महिलाएं, नजदीकी बाजार से सब्जियां मांग कर आई हैं। ये महिलाएं, सभी बाजारों के दिन, भीख मांगने जाती हैं और अपने घर के लिए सामान लाती हैं। और छोटे बच्चे भी, अपने उम्र के बाकी बच्चों के साथ भीख मांगते हैं। जिन लोगों को उनपे दया आती है, वो लोग खाने की चीज या फिर एक-दो रूपये दे दिया करते हैं। नट जाति के लोग, ज्यादा पढ़ाई-लिखाई नहीं किए रहते हैं। क्योंकि, बच्चे बचपन से ही इधर-उधर घूमते हैं, तो पढ़ाई-लिखाई में उनका मन नहीं लगता और वे स्कूल नहीं जाते हैं। घर के बड़े भी पढ़ाई नहीं किए रहते हैं, तो उन्हें भी लगता है कि, पढ़-लिख कर के क्या करेंगे? आखिर तो भीख मांग के ही जीना है।

सुअर घर

नट जाति के लोग, भीख माँगने के अलावा सुअर पालन भी करते हैं। उप्पर तस्वीर में, आप देख सकते हैं कि, नट लोग, सुअर को रखने के लिए मिटटी का एक घर बनाते हैं। जिसमें, अपने पालतू जानवर को रखते हैं। सूअर सारा दिन घूमते रहते हैं और शाम होते ही सारे सुअर, अपने घर में वापिस आ जाते हैं। लेकिन, इसमें भी लोगों को भरी नुकसान उठना पड़ता है। जब, सूअर बीमार पड़ने लग जाते हैं और एक साथ, सात-आठ सुअर मर जाते हैं।


हमारे बीच, कई ऐसे बच्चे मिलेंगे, जो चार-पाँच साल की उम्र में ही सड़कों पर, कचरे के सामानों में से पुट्ठा और शराब की बोतलें ढूँढते हुए घूमते रहते हैं। यह बच्चे, पढ़ाई-लिखाई और खेलने-खाने की उम्र में, इधर-उधर भटकते रहते हैं। इसमें, इन बच्चों का कोई दोष नहीं है। क्योंकि, इनके माता-पिता खुद भीख माँग के खाते हैं। इसलिए, इनको अच्छा बचपन नहीं दे पाते हैं। इस कारण, इन बच्चों पर बचपन से ही जिम्मेदारी आ जाती है। इन बच्चों को, जब खुद के लिए खिलौना लेना होता है। तब ये बच्चे, कूड़े-कचरों में से बेचने लायक समान ढूंढते हैं।


नट बच्चों को, क्या करना है और क्या नहीं करना? बचपन से ही उनके करने लायक का जो काम होता है, वही काम करते हैं। आमतौर पर, बच्चे छोटी उम्र से ही बड़ो की नकल करते हैं। इस कारण अपने आस-पास, नशा करने वाले लोगों को देख कर, ये बच्चे खुद नशे के आदि हो जाते हैं। और इन बच्चों को कबाड़ी का सामान बेचकर, नशा करने के लिए, वहाँ से पैसे मिल जाते हैं। इन मासूम बच्चों को कोई समझने वाला भी नहीं होता है कि, उनके लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा है? इस कारण, ये बच्चे नशे के चक्कर में अपने जीवन और परिवार के बारे में सोचना भूल जाते हैं।


यह बहुत दुखद है कि, नट जाति की महिलाओं और बच्चों को, इतनी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। यह उनकी आर्थिक स्थिति दर्शाता है, जोकि बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। इस तरह की समस्याओं का समाधान ढूंढने के लिए, समाज को एक साथ काम करना चाहिए। सरकार को इन लोगों की मदद करने के लिए, उचित योजनाओं और नीतियों को लागू करने की आवश्यकता है। सरकारों को इन्हें स्कूलों, स्वास्थ्य सुविधाओं और उद्योगों और कौशल विकास कार्यक्रमों में, शामिल करने के लिए प्रयास करना चाहिए। इन्हें, नौकरी के अवसर प्रदान करने और इनकी आर्थिक स्थिति में सुधार करने के लिए, उचित विकास कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करने की भी आवश्यकता है। समाज के लोगों को, इन लोगों का सहयोग करना चाहिए और इनकी समस्याओं का समाधान ढूंढने में मदद करने के लिए आगे आना चाहिए।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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