top of page
Writer's pictureRameshwari Dugga

जानिए गोंड आदिवासियों में, क्यों सुपा बजाकर नृत्य करते हैं

पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित


छत्तीसगढ़ एक आदिवासी बहुल क्षेत्र है और यहाँ की संस्कृति ही उनकी पहचान है। छत्तीसगढ़ में आज भी आदिवासी संस्कृति देखने को मिलता है, आदिवासियों का जीवन बहुत ही सरल और मनोरंजन से भरा होता है। गोंड आदिवासियों में बच्चों के जन्म लेने पर, ख़ुशी के साथ धूमधाम से त्यौहार मानाने का रिवाज है। इस तरह मनुष्य का इस दुनिया में स्वागत करते हैं, उसी प्रकार उसकी शादी को भी लोग धूमधाम से मनाते हैं और जब मनुष्य की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी अंतिम संस्कार भी, हम गोंड आदिवासियों में कुछ अलग तरीके से की जाती है।


छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में गोंड आदिवासियों में, जब मनुष्य की मृत्यु होती है। तब मृतक को दफनाकर उसके पहचान के लिए स्मारक के रूप में मठ बनाते हैं। ये मठ, मृत्यु के तीन-चार दिन बाद बनाते हैं और इस मठ की पूजा भी करते हैं। मठ के पूजा को क्षेत्रीय भाषा में तीज नाहन कहते हैं। इस कार्यक्रम में मृतक के घर से एक कलश निकालते हैं और उसे मठ तक ले जाते हैं। इसमें गांव के सभी लोगों के अलावा रिश्तेदार भी शामिल होते हैं। यह कार्यक्रम बहुत धूमधाम से मनाते हैं, इसमें लोग नाचते-गाते और रंग-गुलाल भी खेलते हैं। इसमें एक विशेष नृत्य होती है, जिसमें सुपा को महिलाएं बजाकर नाचते-गाते हैं।

सुपा बजाकर नाचती हुई महिलायें

जब घर से मठ की ओर निकलते हैं, तब महिलाएं सुपा को बजाकर नाचते हुए जाती हैं और इनके साथ पुरुष लोग ढोल-बाजा बजाते हुए जाते हैं। इस दौरान सभी लोग रंग-गुलाल भी खेलते हैं और मठ पहुँचने पर मठ की पूजा करते हैं। लोग कहते हैं कि, जो कलश घर से निकालते हैं, उसमें मृतक की आत्मा विराजमान होती है।

ढोल-बाजा बजाते हुए पुरुष

जिस प्रकार मनुष्य, जब इस धरती में जन्म लेकर आते हैं। तब उसके आगमन पर लोग उत्सव मनाते हैं, उसी प्रकार जब वह मनुष्य इस पृथ्वी से अलविदा ले लेता है, तो उसे, उसी प्रकार से उत्सव मनाते हुए उसको विदा करते हैं। लोगों का कहना है कि, मनुष्य जन्म में, जिस प्रकार से उसने अपना जीवन-यापन किया और कर्म किया, उसी प्रकार उसे अगले जन्म में भी सुख-शांति मिले।


सुपा को तो लगभग सभी लोग जानते होंगे, यह बांस से बनाई जाती है। और यह बस्तर में, नहारी जनजाति के लोग बनाते हैं। बांस से बने सुपा का उपयोग, सभी घरों में किया जाता है। लोग चावल साफ करने से लेकर पूजा करने के लिए भी सुपा का उपयोग करते हैं। दीपावली में गोंड आदिवासी सुपा में ही गाय-बैलों को खिचड़ी खिलाते हैं। और मेरी जानकारी के अनुसार, सिर्फ बस्तर के गोंड समुदाय में ही मृत्यु के बाद सुपा को बजाने का रिवाज है। यह परम्परा पूर्वजों से चलती आ रही है और आज भी बस्तर में यह परम्परा देखने को मिलती है।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।


Comments


bottom of page