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Join date: Dec 2, 2021
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Jun 5, 2025 ∙ 7 min
मैं पृथ्वी के दर्द को महसूस करता हूँ!
पर्यावरण दिवस पर रविन्द्र गिलुवा लिखते हैं: “मैं पृथ्वी के दर्द को महसूस करता हूँ। झारखंड की धरती, जो कभी हरियाली से लहलहाती थी, आज खनन और कॉरपोरेट लालच से जख्मी है। टाटा, अडानी, रुंगटा जैसे समूहों ने विकास के नाम पर आदिवासियों की ज़मीन, जंगल और संस्कृति को उजाड़ दिया। लेकिन आदिवासी आज भी प्रकृति की रक्षा के लिए संघर्षरत हैं—बिना मंच, बिना शोर। हमें उनकी आवाज़ सुननी होगी, और उनका साथ देना होगा।
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Jun 8, 2023 ∙ 5 min
ओडिशा रेल हादसे में दो दिन सेवा देने का अनुभव
यह लेख ओडिशा रेल हादसे के बाद की स्तिथि का चित्रण करते हुए सरकारों की कार्यशैली पर प्रश्न उठाने के साथ ही वास्तविकता पर प्रकाश डालती है।
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Oct 6, 2022 ∙ 5 min
आदिवासी भाषाओं के लिए 21वीं सदी की चुनौतियां
अगर हम अपने भाषा को तव्वजो नही देंगे तो अपनी पहचान खुद खो देंगे और हमारी जड़े अपने आप कटने के लिए मजबूर हो जायेंगी।
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Rabindra Gilua
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