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ओडिशा रेल हादसे में दो दिन सेवा देने का अनुभव

पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित


ओडिशा के बालेश्वर में बीते शुक्रवार 2 जून को शाम करीब 7 बजे हुई ट्रेन एक्सीडेंट में लोगों (न्यूज़ वाले/सरकारी अधिकारी) ने अपने-अपने अनुसार मृतकों के आंकड़े बताए, किसी ने 275 बताए तो किसी ने 300 बताए। पर आप खुद अंदाजा लगाइए कि, ट्रेन के एक जनरल बॉगी में कितने लोग सफर करते हैं। एक जनरल बॉगी में लगभग 250 से भी ज़्यादा लोग सफर करते हैं। तो उसके हिसाब से तीन बॉगी का अंदाजा लगा लीजिए। कोरोमंडल एक्सप्रेस के एक स्लीपर कोच में 80 सीट होते हैं। लेकिन, आमतौर पर स्लीपर बोगियों में लगभग 100 लोग सफर करते हैं और इस ट्रेन में 5 स्लीपर कोच और कुल 13 एसी कोच थे। और दूसरी यात्री ट्रेन थी, यशवंतपुर हावड़ा एक्सप्रेस। जानकारी के मुताबिक इस ट्रेन के पीछे के 2 बॉगी में भी प्रभाव पड़ा। यह हादसा बहानागा बाजार स्टेशन के पास हुआ था। यहां कोरोमंडल एक्सप्रेस और मालगाड़ी के बीच टक्कर हुई, बाद में कुछ मिनट बाद ही यशवंतपुर हावड़ा एक्सप्रेस भी इस दुर्घटना के चपेट में आयी।

ओडिशा रेल हादसा (फोटो साभार:wionnews)

जब सरकारी अधिकारी आए और न्यूज़ रिपोर्ट्स को सम्बोधित कर रहे थे। तब वहां की आम जनता, जिन्होंने खुद अपने हाथों से सैकड़ों की संख्या में लाशों को निकाला था। वे लोग पीछे से आवाज लगा रहे थे कि, आप लोग गलत आंकड़े बता रहे हो और उन आम जनों की आवाजों को दबाया गया। और ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं, जहाँ सरकारों की तरफ से हर बार मृतकों की वास्तविक संख्या को छुपाया गया है। कइयों के तो पूरे शरीर भी नहीं मिले। लाशें ऐसे पड़े थे कि, समझ में नही आया कि, यह कटे अंग किस शरीर के हैं। और इन सभी लाशों को सोरो हॉस्पिटल में रखा गया है। और घायलों को बहानागा, बालेश्वर एवं आस-पास के हॉस्पिटलों में रखा गया है।


गणेश सोरेन बताते हैं कि, जब वे स्थानीय विधायक के साथ घटनास्थल पर पहुँचे, तब वहां करंट नही थी। ट्रेन हादसे के वजह से वहाँ की बिजली कट गई थी। हादसे के बाद स्थानीय लोगों के साथ प्रशासनिक अधिकारियों और बचाव दल की टीम भी पहुंची थी। मगर अंधेरे के कारण कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। वे लोग टोर्च के मदद से आस-पास देख रहे थे। तब गणेश, विधायक को देख कर चलने को कहे रहे थे। क्योंकि, वहां लाशों की बाढ़ थी। इस कारण, बचाव अभियान भी ठीक से नहीं चल पाया। करीब डेढ़ घंटे बाद, स्थानीय प्रशासन और बाहनगा रेलवे स्टेशन ने लाइट की व्यवस्था की और लाइट जलने के बाद यात्री टूटे हुए हाथ-पैर के साथ लेटे नजर आए।


सुजेन्द्र सिंह बताते हैं कि, "जब हम लोग घायलों को हॉस्पिटल पहुंचाए। तब देखे कि, वहां पर स्थिति बहुत ही खराब है। अस्पतालों में बिल्कुल जगह नहीं है, मरीजों से खचाखच भर गए हैं। घायलों को कॉरिडोर में स्ट्रेचर पर लिटाया गया था। हमारी पूरी टीम सेवा में व्यस्त थी। कोई घायलों को ला रहा था, तो कोई रक्तदान कराने में लगे थे।" फिर वे लोग पूरे बालेश्वर वासियों से अपील किए कि, फकीर मोहन मेडिकल कॉलेज आए और रक्तदान करें।


सागर हासदा बताते हैं कि, पहली बार ऐसे घटना देख रहे हैं। इससे पहले केवल फ़िल्मों में ही देखे थे कि, किसी का सर धड़ से अलग है तो किसी का आंतड़ी बाहर है। पर आज पहली बार हकीकत में किसी का धड़ से सर अलग हुए देखे हैं। और उससे भी भयानक स्थिति तो, उस शरीर से अलग हुए सर को हाथ में पकड़ कर हॉस्पिटल तक लाना था। ये घटना ज़िन्दगी भर याद रहेगा।


हमारी स्काउट्स की टीम ने भी दो दिन बाद स्पॉट पर जा कर सेवा दी। भारत स्काउट्स एवं गाइड्स संगठन का उद्देश्य ही नवयुवकों का पूर्ण शरीरिक, मानसिक, बौद्धिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक क्षमताओं का विकास करना है। जिससे वे एक जिम्मेदार नागरिक के रूप से कार्य कर सके एवं अभी जैसे परिस्थितियों में पूरा तन-मन से सेवा दे सकें। रोवर्स एवं लीडर्स कर्मचारियों ने मलबा हटाने, नाश्ता एवं खाना बांटने, खाना पैकिंग और मूविंग, भीड़ नियंत्रण और मेडिकल टीम को फर्स्ट एड में सहयोग किया।

भारत स्काउट्स एवं गाइड्स टीम सेवा देती हुई

बालेश्वर रेलवे स्टेशन में एक कुक हैं, जो जनसताब्दी ट्रैन के लिए कुकिंग करते हैं। उन्होंने बताया कि, “जब मैं घटनास्थल में पहुंचा तो देखें कि, जनरल बॉगी सिकुड़ कर आधा हो चुका है। लाश जमीन के अंदर दबे हुए हैं। किसी का केवल हाथ दिख रहा है तो किसी का पैर। इसी तरह लोगों के लाशें इधर-उधर फैले हुए थे।”


भारत को विश्व गुरु बनाने में लगी सरकार, यहाँ लाशों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। स्लीपर और एसी कोच वालों का आंकड़ा बता रहे हैं। लेकिन, क्या जनरल कोच वाले इंसान नहीं है? और तो और लाशों की भी इज्जत नही कर रहे हैं। एक के ऊपर एक, रद्दी की तरह रख कर लाशों को सोरो हॉस्पिटल लाया जा रहा था। क्या ये इंसानियत है? इस पूरे आपातकालीन स्थिति में मेडिकल रेकॉर्ड में पूरे 200 एम्बुलेंस दौड़ रही थी और बहुत सारे ट्रेक्टर, पिकउप वेन और निजी वाहन इत्यादि भी दौड़ रहीं थी।


इस घटना के बाद रेलवे ने मृतकों को 10 लाख, गंभीर रूप से घायल को 2 लाख और मामूली घायलों को 50 हजार देने की घोषणा की है। वहीं ओडिशा सरकार, बंगाल सरकार और आंध्र प्रदेश सरकार भी अपने तरफ से सहयोग राशि देने की बात कहें है। बंगाल सरकार ने तो नौकरी तक देने की बात कही है।


इतनी बड़ी दुघर्टना में जब कोई सामने नही आ रहे थे, तब हमारे आदिवासी लोग ही सबसे पहले सामने आए थे। तब जा कर बाकी लोगों को हिम्मत आई और साथ मिल कर पीड़ितों को सुरक्षित स्थान पर लाए। आपने भी अखबारों या टीवी के माध्यम से जाना होगा कि, स्वप्रथम स्थानीय लोग ही मदद करने के लिए आगे आये थे। लेकिन, कुछ मीडिया ने ही पूरी बात बताई कि, इलाके के आदिवासी ही सबसे पहले मदद के लिए आगे आये। देश का मीडिया हमेशा से ही आदिवासी ख़बरों को दरकिनार करते हुए आये हैं और इस बार भी उन्होंने आदिवासियों का जिक्र नहीं किया। मैं अपने आदिवासी भाइयों को सलाम करता हूँ, जिन्होंने तुरंत इस स्थिति को देख कर, मदद के लिए आगे आये और लोगों को इकट्ठा किये। मैं सुजेन्द्र सिंह (ओडिशा में कुछ हो आदिवासी सिंह लिखते हैं), गणेश सोरेन और सागर हांसदा को तहे दिल से नमन करता हूँ, जो मदद करने के लिए पहली कतार में शामिल थे।

लव मुर्मू जो हावड़ा से हैं। उनके साथ 6 लोग थे, जो जनरल कोच में सफर कर रहे थे। जिनमें से 3 नहीं रहे और 3 लोग ज़िंदा है। लव मुर्मू ने बताया कि, उन्हें केवल 65 हजार का चेक ही मिला है। घाटशिला के मिस्टर सोरेन जो आर्मी रिटायर्ड हैं, वो भी जनरल बॉगी में ही सफर कर रहे थे। वो बताते हैं कि, 2 दिन हॉस्पिटल का चक्कर काटा और अभी बालेश्वर स्टेशन से वापस घर जाने के हालात में भी नहीं हैं और वह मदद की गुहार लगा रहे हैं। लेकिन, सुनने वाला कोई भी नहीं है।


मेरी डोनेट ब्लड की टीम भी चार जून को घटनस्थल पर पहुँच गयी थी और कटक के स्थानीय सदस्यों को सहयोग करते हुए रविवार को सुबह 8 बजे से रक्तदान कराया। कटक में इसके लिए ज्योति पांडा ने जिम्मेदारी लिया था। इस घटना से केन्द्रीय सरकार को जागने की आवश्यकता है। ताकि, भविष्य में इस प्रकार की कोई भी घटना न हो और देश के जान-माल को ट्रेन हादसों से नुकसान न पहुँचे। और तमाम संस्थानों से अनुरोध करता हूँ कि, मृतकों के परिवार वालों से लेकर घायलों तक को उनकी देय राशि बिना किसी अड़चन के पूरी मिले।


लेखक परिचय:- चक्रधरपुर, झारखण्ड के रहने वाले, रविन्द्र गिलुआ ने अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर किया है और भारत स्काउट्स एवं गाइड्स में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित हैं। लिखने तथा फोटोग्राफी-वीडियोग्राफी करने के शौकीन रविन्द्र समाजसेवा के लिए भी हमेशा आगे रहते हैं। वे 'Donate Blood' वेबसाइट के प्रधान समन्वयक भी हैं।

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