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बस्तर में आदिवासियों पर हुए पुलिस हिंसा के खिलाफ एक आवाज में बोले गरियाबंद जिले के आदिवासी

Updated: Jun 11, 2021

बस्तर छत्तीसगढ़ के दक्षिण में स्थित जिला है। बस्तर जिले का क्षेत्रफल 6596.90 वर्ग किलोमीटर है। इसका मुख्यालय जगदलपुर शहर है। बस्तर जिला छत्तीसगढ़ प्रदेश के कोंडागांव, सुकमा, बीजापुर जिलों से घिरा हुआ है, बस्तर की जनसंख्या में 70% आदिवासी जनजाति समुदाय जैसे - गोंड, मारिया, मुरिया, भतरा, हल्बा, धुरवा, आदि हैं। बस्तर जिले में संविधान की पांचवी अनुसूची लागू है।

विरोध प्रदर्शन करते हुए आदिवासी संगठन ग्राम- रसेला, जिला गरियाबंद

बस्तर के आदिवासियों ने इलाके में सीआरपीएफ के नए कैंप लगाए जाने का विरोध किया था। सिलगेर में लगने वाला कैंप 70 किलोमीटर लंबे बसागुड़ा जगरगुंडा मार्ग के किनारे स्थापित किए जा रहे शिविरों में से एक है, यह मार्ग दक्षिण बस्तर में नक्सलियों के सबसे मजबूत गढ़ और बीहड़ जंगल के बीच से गुजरता है। बस्तर के आदिवासी लोगों का कहना है कि उन्हें ये कैंप नहीं चाहिए, क्योंकि वहाँ के लोगों को अपने जल, जमीन, जंगल से प्राकृतिक रूप से अधिक लगाव है। अगर कोई व्यक्ति जंगल कहीं काम से जाते है तो उन्हें मार-पीट कर भगा दिया जाता है। आये दिन लोगों को नक्सली बोल कर मार दिया जाता है या जेल में डाल देते हैं।


17 मई को बस्तर के आदिवासियों ने कैंप के खिलाफ सुकमा जिले में धरना प्रदर्शन किया। आदिवासियों का कहना है की पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पे फायरिंग की जिस में 3 लोगों की जान चली गई और कई लोग घायल हो गए है।

हिंसा के बाद से आदिवासियों ने इलाके में विरोध प्रदर्शन जारी रखा है । साथ ही गरियाबंद जिले के आदिवासी भी न्याय की मांग में शामिल हो गए हैं। पिछले दिनों गरियाबंद के आदिवासियों ने धरना प्रदर्शन किया और सरकार से इस क्रूरतापूर्ण हत्याओं की उच्च स्तरीय जांच कर दोषियों पर कार्रवाई करने की मांग की। इस सिलसिले में सर्व आदिवासी समाज गरियाबंद ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, अध्यक्ष अनुसूचित जनजाति आयोग, राज्यपाल और मुख्यमंत्री के नाम से जिला कार्यालय पहुंच कर ज्ञापन सौंपा ।


बार-बार ऐसी घटनाएँ देखने को मिलती रहती हैं। कोरोना महामारी के दौरान भी फर्जी मुठभेड़, फर्जी समर्पण, हत्या के अनेक मामले सामने आ चुके हैं। इसलिए इस मामले की उच्च-स्तरीय जांच कर दोषियों पर एफ.आई.आर दर्ज कर कड़ी कार्रवाई करने की मांग किया गया। इस विरोध प्रदर्शन में गरियाबंद जिले के सर्व आदिवासी समाज के सभी युवक-युवती और पदाधिकारी द्वारा हिस्सा लिया गया। मानव सुरक्षा एवं बस्तर में स्थाई शांति की स्थापना के लिए पूरे गरियाबंद जिले के हजारों आदिवासियों द्वारा अपने-अपने घर के सामने "वर्चुअल धरना प्रदर्शन" किया गया ।

सर्व आदिवासी समाज गरियाबंद युवा प्रभाग - विजयकृष्ण नागेश

बस्तर में नरसंहार बंद करो के नारों के साथ विरोध प्रदर्शन करते हुए शामिल हुए युवक विजयकृष्ण नागेश जो रूवाड़ के निवासी हैं। उनसे हुई बातचीत में उन्होंने कहा, "लोकसभा ना विधानसभा सबसे बड़ी ग्राम सभा। बस्तर के बहुसंख्यक आदिवासी लोग गाँव एवं जंगल में रहने वाले नागरिक हैं। बहुत से लोग अपनी मातृभाषा के अलावा दूसरी भाषा ठीक से बोल भी नहीं पाते हैं। गाँव वाले सरकार के साथ मिलकर विकास चाहते हैं किंतु सभी निर्माण कार्य जैसे = सड़क, स्कूल, कालेज, अस्पताल, बिजली, राशन दुकान इत्यादि आदिवासी भाई बहन स्वयं करना चाहते हैं जिससे उन्हें रोजगार का अवसर मिलेगा साथ ही सरकार का विकास कार्य भी पूरा हो जाएगा। भविष्य में स्थापित होने वाली कंपनियों में ग्रामीणों की 50% हिस्सेदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए । तभी आदिवासी लोगों का विकास सुनिश्चित होगा। निर्माण कार्यों में ग्रामीणों की सहभागिता बहुत जरूरी है।"



हम ने एक और युवा से बात की जिनका नाम है दिलेश नेताम, जो कि ग्राम रूवाड़ के निवासी हैं। उनका कहना है कि, "हमें हिंसा नहीं, शिक्षा, स्वास्थ्य और मूलभूत सुविधाएँ चाहिए। विवाद की स्थिति को सरकार बरकरार रख रही है जो आम आदमी को नक्सली बोलकर मार रही है। 'नक्सली बस्तर छोड़ो, फोर्स बस्तर छोड़ो'। पांचवी अनुसूची के अंतर्गत आने वाला जल, जंगल, जमीन आदिवासियों का है। गाँव की मंजूरी लिए बिना सरकार अपना फैसला थोपना चाहती है। पहले प्रधान लोगों से तो पूछ लो अब बहुत हुआ खेल, नक्सली कहकर निहत्थे ग्रामीण बहुत मार लिए, अब एक भी मौत को बर्दाश्त नहीं होगा। ताज्जुब की बात यह है कि आदिवासी मामले के बारे में कोई कुछ नहीं बोलता।"


सरकार और मीडिया का कहना है कि बस्तर के लोग अधिक संख्या में विरोध प्रदर्शन कर कोरोना महामारी को बढ़ावा दे रहे हैं। इसके जवाब में आदिवासी बोले कि देश के नेता अगर अपनी रैली करते हैं वहाँ कोरोना गाइडलाइन न तो कभी पुलिस प्रशासन को दिखाई देती है ना तो मीडिया को। जहाँ नेता रैली करेगा वहाँ कोरोना का डर नहीं है लेकिन जब आदिवासी अपना हक मांगे तो कोरोना का डर है। आदिवासी खुद में एक जड़ी - बूटी हैं, कुछ नहीं होगा कोरोना से उनको।


2018 में मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद भूपेश बघेल ने कहा था कि नक्सल समस्या से बंदूक के बल पर नहीं निपटा जा सकता। यह भी कहा था कि ठोस समाधान तक पहुंचने के लिए सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हमें पहले प्रभावित लोगों, खासकर आदिवासियों से बात करनी चाहिए। लेकिन हालात को देखते हुए आदिवासियों को इंसाफ मिलता नहीं दिख रहा है।


सरकार से मेरा यह निवेदन है कि बस्तर के आदिवासी लोगों के साथ हो रही घटनाओं को मद्देनजर रखते हुए, सरकार आवश्यक कदम उठाए। बस्तर में नरसंहार बंद करे और पांचवी अनुसूची के अधिकार पूर्णतः लागू करे।


मेरा एक सवाल है, क्या कोई मुझे बताऐगा नक्सली कैसे, किस कारण और क्यों बनते हैं? वे भी तो अपने देश के नागरिक हैं ! आपके पास जवाब हो तो कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।


यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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