मध्य भारत में एक बड़ा इलाक़ा है, जिसे गोंडवाना साम्राज्य के नाम से जाना जाता था। यह आज के महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ में फैला हुआ था। गोंडवाना गोंड आदिवासियों का साम्राज्य था, और आज भी इस इलाक़ों में इस साम्राज्य के इतिहास की झलक दिखती है। ऐसी एक झलक हमें कचारगढ गुफाओं में मिलती है।
कचारगढ गुफा महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ की सीमा पर सालेकसा तहसील में स्थित है। गुफा की पहाड़ी हरियाली और प्रकिर्तिक खूबसूरती के बीच स्तिथ है। अन्य प्रसिद्ध पर्यटन गुफाओं, जैसे महाराष्ट्र में अजंता-एलोरा और विशाखापत्तनम में बोर्रा गुफाएं के विपरीत, कचारगढ़ के बारे में बहुत से लोग नहीं जानते हैं। लेकिन साल में एक बार यह स्थान गतिविधियों का केंद्र बन जाता है, जब फेब्रुअरी के माह में यहाँ गोंड आदिवासी समाज का महाकुंभ लगता है। इस मेले में देश के कोने कोने से गोंड समाज के पाँच लाख से ज्यादा लोग भाग लेते हैं।
कचारगढ़ गुफा । फ़ोटो- Bharat Darshan on Blogspot
518 मीटर ऊंचाई पर स्थित इस प्राकृतिक गुफा के पीछे मान्यता है की सैकड़ों साल पहले गोंड समुदाय के पहले गुरु, पाहंदी पारी कोपार लिंगो ने गुफा को खोज लिया और माता काली कंकालीन के तैतीस कोटि बच्चों को मुक्त किया। बच्चों को गुफा से मुक्त करने के बाद तैतीस कोटि देवताओं का नामकरण किया गया। आज गोंड समाज में इन्ही देवताओं की पूजा की जाती है। प्रत्येक घर, गांव-शहर और मोहल्ले में पेड़-पौधे, जल, जंगल, जमीन, नदी, तालाब, पहाड़-पर्वत तथा त्रिशूल, फरसा, तीर-कमान, हथियार एवं कृषि औजारों के रूप मे देवालय बसता है। इसके अलावा जीव-जंतू और वनस्पतियों में भी देवी-देवताओं का स्वरूप मनाते आ रहे हैं। गोंड समाज में प्रकृति एवं मनुष्य के बनाए गए सामान की पूजा की जाती है, क्योंकि ऐसा माना जाता है के उन सब में देवी देवता गण बसते हैं।
लोग गुफा में स्थित गोंड आदिवासियों के धार्मिक स्थल काली कंकाली को भेंट देते हुए। फ़ोटो- Mayuri Pralhad Patankar, Sahapedia
इसी गुफा में हुई गोंड प्राकृतिक संम्मत धर्म की स्थापना
गोंडी धर्म की स्थापना धर्म गुरु पारी कोपार लिंगो ने 5000 वर्ष पूर्व इसी गुफा से की थी, इसलिए इस गुफा को पहाड़ी पारी कोपार लिंगो कचारगढ़ गुफा के नाम से जाना जाता है। धर्म गुरु ने छोटे-छोटे गोंड समुदायों को एकत्रित किया और सबको जोड़कर एक नए धर्म का निर्माण किया। इसके बाद गोंड राजाओं ने अपने छोटे-छोटे राज्यों की स्थापना कर राज पद्धति को 4 विभाग में बाँट लिया- येरगुट्टाकोर, उम्मोगुट्टाकोर, सहीमालगुट्टाकोर, तथा अफोकागुट्टाकोर।
कछारगढ़ मेले के दौरान हर साल गोंड समुदाय के लोग संगीत, गीत, नृत्य और रंगमंच के रूप में अपनी सांस्कृतिक परंपराओं को मनाते हैं और जीवित रखते हैं। आप भी उत्सव में शामिल हो सकते हैं और आदिवासी संस्कृति की विविधता के बारे में अधिक जान सकते हैं।
यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजैक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, और इसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है।
यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था
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