छत्तीसगढ़ में कई आदिवासी गाँव हैं, जहां कला की कोई कमी नहीं है। अलग-अलग सुंदर नृत्य और मधुर गानों से लेकर रंग-बिरंगी कला और पोशाक तक यहां के आदिवासियों के कौशल को देखकर आप दंग रह जाओगे। हर गाँव में कई प्रकार के वाद्ययंत्र होते हैं, जो हमारे कलाकार भाई-बहन हर त्यौहार में बजाते हैं।
इस आदिवासी संस्कृति पर मुझे बहुत गर्व है। छत्तीसगढ़ में कलाकार तो कई सारे हैं लेकिन आज मैं आपको छत्तीसगढ़ के कोरिया ज़िले के हरिलाल नामक कलाकार के बारे में बताना चाहती हूं।
हरिलाल जी कोरिया के महादेवपाली गाँव के रहने वाले हैं। इनके परदादा से लेकर इनका पूरा परिवार यही बसा है। इनके परदादा खेती नहीं करते थे, उस समय वो जंगल में तम्बू तानकर रहते थे और कंद-मूल खाते थे।
हरिलाल जी के दादा भी बड़े बुद्धिमान और ज्ञानदार व्यक्ति थे। वो बांस से तरह-तरह के बर्तन और खिलौने बनाते थे। वो बांस से बांसुरी भी बनाते थे और इसे बजाते थे।
छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध बांसुरी कलाकार हरिलाल जी बांसुरी बनाते हुए।
अपने दादाजी से सीखी बांसुरी बनाने और बजाने की कला
हरिलाल जी बांस के महत्व के बारे में बताते हुए कहते है, “बांस हम आदिवासियों के जीवन का सहारा है। बांस से हम कई तरह के बर्तन बनाते हैं, जिनका घरेलू उपयोग होता है। मेरे दादा बांस से खिलौने बनाने में माहिर थे और बच्चे उन्हें बहुत प्रेम करते थे। वो सभी बच्चों के लिए बांसुरी बनाते थे और उन्हें बांसुरी बजाना भी सिखाते थे।”
वो आगे कहते हैं, “मुझे भी उनके गाने सुनना बहुत पसंद था, इसलिए उन्होंने मुझे भी बांसुरी बनाना और बजाना भी सिखाया। मुझे बहुत आनंद हुआ, क्योंकि मुझे हमेशा उनकी तरह बांसुरी बजाना और बनाना सीखना था। मैं बचपन में गाय और भेसों के साथ बैठकर बांसुरी बजाता था। मेरे दादाजी से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला।”
ऐसे बनाते हैं हरिलाल जी बांस से बांसुरी
हरिलाल बांसुरी बनाने के लिए एक-दो सप्ताह पहले ही बांस को काटकर रख देते हैं। इस बांस की लकड़ी को सुखाया जाता है और बांसुरी के अनुसार उसे काटा जाता है, फिर बांसुरी में छेद बनाने के लिए लोहे की पतली छड़ी को आग में गरम करते हैं। गरम छड़ी से बांस की लकड़ी में छोटे-छोटे छेद बना लेते हैं।
सजाई हुई बांसुरी और उसे बनाने के लिए ज़रूरी औज़ार।
इस प्रक्रिया में मधुमक्खी का छत्ता भी ज़रूरी होता है। इसे भी आग में थोड़ा गरम करके बांसुरी के एक खुले सिरे के अंदर डाल देते हैं और उसे बंद कर देते हैं, फिर बांसुरी सजाने के लिए अलग-अलग रंगों का टेप और ताम्बे का पतला वायर उपयोग में लाए जाते हैं, जिससे बांसुरी बहुत ही सुंदर दिखने लगती है।
हरिलाल अपने बांसुरी के गीतों के बारे में बताते हैं, “बरसात में बांसुरी बजाना मुझे बहुत अच्छा लगता है इस समय में पहाड़ हरे-भरे होते है और नदियों में तेज़ी से पानी बहता है। आज भी ऐसे मौसम में मैं गाय-भैंसों के साथ बैठकर बांसुरी बजाता हूँ। सावन में बांसुरी की मधुर धुन गाँव में गूंजती है और मुझे और लोगों को भी इससे बहुत आनंद मिलता है। मैं बांसुरी पर तरह-तरह के करमा- ददरिया गीत गाता हूँ और लोग भी इन गीतों को सुनकर झूम उठते है।”
गाँव के चरवाहे बांसुरी का बहुत उपयोग करते हैं। गाय-बैलों को चराते समय चरवाहे अकेले रहते हैं और इस अकेलेपन को दूर करने के लिए वे अपने साथ बांसुरी लेकर जाते है। बांसुरी बजाते- बजाते समय कैसे गुज़रता है, यह पता ही नहीं चलता।
कार्यक्रमों में भी बजाते हैं हरिलाल जी बांसुरी
आज कल बांसुरी बाज़ार में नहीं मिलती, मेरे गाँव के लोग अपने हाथों से बांसुरी बनाते हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रमों और रामायण कथा के कार्यक्रमों में बांसुरी का बहुत उपयोग होता है। बांसुरी के बिना यह कार्यक्रम सूना-सूना लगता है। बांसुरी बजाने के लिए हरिलाल जी को भी दूर-दूर से लोग बुलाते हैं और उन्हें एक कार्यक्रम के 300-400 रुपये मिलते हैं।
कोरिया के हरिलाल जी छत्तीसगढ़ के जाने माने बांसुरी कलाकार हैं। इनके गानों की मधुर धुन दूर गाँव तक गूंजती है। अगर आप भी हरिलाल जी को अपने गाँव बुलाना चाहते हो, तो उन्हें 6266013281 नम्बर पर सम्पर्क करें। आपको भी इनके गाने बहुत पसंद आएंगे।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें प्रयोग समाजसेवी संस्था और Misereor का सहयोग है।
यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था
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