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गर्मी के दिनों में छत्तीसगढ़ के आदिवासी जल संरक्षण कर आलू उगा रहे हैं।

आलू ज्यादातर दिसंबर-जनवरी के महीने मेंउगाया जाता है, लेकिन कई आदिवासी क्षेत्र हैं जहाँ गर्मी के दिनों में भी आलू लगाने का काम किया जाता है। आदिवासी पहले ऐसा नहीं करते थे लेकिन जब से महंगाई में वृद्धि हुई है तब से आदिवासी अपने ज़रूरतों को पूरा करने के लिए आलू उगाना शुरू किए हैं। कोरबा जिले के बिंझरा गाँव में रहने वाले कई आदिवासी गर्मी के दिनों में भी आलू और कुछ दूसरे फसल की भी खेती करते हैं। गर्मी के दिनों में आलू की खेती करना बहुत ही मुश्किल होता है, इसलिए आदिवासियों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।


गाँव के ही निवासी नीलकंठ जी भी इस साल गर्मी के दिनों में भी आलू लगाए हैं, उन्होंने बताया कि वे हर साल बरसात के दिनों में आलू लगाते थे, लेकिन इस साल महंगाई के कारण उन्हें गर्मी के दिनों में भी आलू लगाना पड़ा। उन्होंने कहा कि "इस साल इतना मेहनत करने पर भी कुछ अच्छा-खासा आलू प्राप्त नहीं हुआ है, क्योंकि कुछ आलू को तो ऐसे ही कीड़ा खा गए, जैसे ही आलू का बीज लगाए कुछ दिन बाद पानी गिरने के कारण आलू का बीज खराब हो गया जिसके कारण उन्हें आधे से ज्यादा आलू का नुकसान हो गया," उन्होंने आगे बताया कि "कभी-कभी ये होता है की आलू को बेचकर अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है, लेकिन अभी ज्यादातर आलू को खाने के लिए ही लगाते हैं।"

जमा किये हुए पानी को ले जाते किसान

बरसात के दिनों में आलू लगाने के लिए कोई भी परेशानी उठानी नहीं पड़ती, बरसात के दिनों में आलू लगाने के लिए पानी की भी कमी नहीं होती और ना ही खाद की ज्यादा ज़रूरत होती है बरसात के दिनों में अपने हाथों से ही खाद को तैयार कर लेते हैं और सभी सब्जियों में छिड़काव कर देते हैं जिससे सब्जीयों को कोई नुकसान नहीं होता है, लेकिन गर्मी के दिनों में पानी मिल पाना बहुत ही ज्यादा मुश्किल हो जाता है, और खाद तैयार करना भी बहुत कठिनाई होती है, उन्होंने बताया कि "इस बार गर्मी के दिनों में नदी में जल का संरक्षण किया गया था तो इसीलिए इस बार आलू गर्मी के दिनों में भी लगा रहेहै और सभी आदिवासी इस बार पानी का संरक्षण करने के बाद फसल लगाए हैं, जिससे किसी को फायदा हुआ तो किसी को नुकसान।"


आदिवासी अपने घरों से ही प्राप्त कुछ चीजों को एकत्र करके उसे दवाई के रूप में बदल देते हैं, जैसे घरों में मिलने वाला राख जो लकड़ी आदि जलाने से प्राप्त होता है। उसे अपने फसल में छिड़काव कर देने से फसल में लगने वाले कीड़े मर जाते हैं और फसल सुरक्षित रहता है। दूसरी ओर सूखे हुए गोबर को राख में मिलावट कर के भी फसल में छिड़काव किया जाता है इससे भी फसल को कीड़े से बचाया जाता है। गर्मी के दिनों के लिए फसल को कीड़ों से बचाने के लिए आदिवासियों द्वारा ऐसे ही दवाई तैयार किया जाता है जिनसे उनके फसल सुरक्षित रहें।

उगे हुए आलू

कुछ आदिवासी महिलाओं से बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि,"वनांचल क्षेत्रों में गर्मी के दिनों में पानी की बहुत ही ज्यादा कमी होने लगती है। यहाँ तक की स्नान करने के लिए भी पानी नहीं मिल पाता, गर्मी के दिनों में नदी-नाले-तालाब पूरे सूख जाते हैं, जिससे गाँव के लोगों एवं जीव जंतुओं को बहुत ही ज्यादा परेशानी होती है।


इन सभी समस्याओं को देखते हुए आदिवासी लोग अब हर साल गर्मी के दिनों में नदी और नाले में बंदी बनाकर पानी को इकट्ठा करते हैं। जिससे पानी की जो समस्या है, वह दूर हो सके। नदी नाले में एकत्रित किए हुए पानी जानवरों के पीने के लिए भी काम आती है, और फसलों के लिए भी पानी मिल जाता है, अतः पानी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हमें जल संरक्षण के कदम ज़रूर उठाने चाहिए।"


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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