नोट- यह आर्टिकल केवल जानकारी के लिए है, यह किसी भी प्रकार का उपचार सुझाने की कोशिश नहीं है। यह आदिवासियों की पारंपारिक वनस्पति पर आधारित अनुभव है। कृपया आप इसका इस्तेमाल किसी डॉक्टर को पूछे बगैर ना करें। इस दवाई का सेवन करने के परिणाम के लिए Adivasi Lives Matter किसी भी प्रकार की ज़िम्मेदारी नहीं लेता है।छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदाय सदियों से अपने बीमारियों का सफलतापूर्वक इलाज़ घरेलू उपाय से करते आये हैं। बीमारियों का इलाज़ करने में बैगाओं की भूमिका बहुत ही अहम होती है।
रतीजा पंचायत के 65 वर्षीय गनपत सिंह ने हमें बताया कि वे एक बैगा हैं, और गाँव में वैद्य का काम करते हैं। वे बहुत सारी आयुर्वेदिक औषधियों के बारे में जानते हैं, इनके दिए हुए औषधियों से अनेक व्यक्तियों को विभिन्न रोगों में लाभ हुआ है। उन्होंने हमें भी कई सारी बीमारियों का आयुर्वेदिक इलाज बतायें, जैसे: -
मलेरिया का इलाज
हम सभी जानते हैं कि मच्छर के काटने से मलेरिया होता है। मलेरिया के बहुत सारे लक्षण होते हैं जैसे कि - बुखार, सिर दर्द आदि। गनपत जी ने हमें बताया कि गाँवों में पाए जाने वाला एक पौधा, जिसे आदिवासी 'भुई नीम' कहते हैं, उससे मलेरिया का आसानी से इलाज हो जाता है। हालाँकि इसका स्वाद बहुत ही ज्यादा कड़वा होता है।
बुखार का यह रामबाण उपाय है, यह तापमान को बहुत जल्दी कम करता है। इसके पत्तों से उबले हुए पानी को लगातार तीन-चार दिनों तक सुबह-शाम एक ग्लास पीने से मलेरिया ठीक हो जाती है।
मुँह में छाले पड़ना
मुँह के छाले होने पर रात को सोते समय गाय की असली घी छालों पर लगा देने से कुछ ही दिन में उसका असर दिख जाता है और मुँह को भी कोमल कर देता है। यह छोटे बच्चों के लिए बहुत ही अच्छी दवाई है। शहद को भी छालों में लगाने से बहुत जल्दी राहत मिलती है।
बग रंडा के पौधे तोड़ने पर उसमें से जो रस निकलता है, उसे भी छाले के इलाज लिए उपयोग किया जाता है।
अक़्सर मुहँ के छालों की मुख्य वज़ह है, शरीर का अधिक गर्म हो जाना एवं पाचन का सही न होना। अतः यह दोनों यदि ठीक रखे जाएं तो छालों से बचा जा सकता है।
कुत्ते का काटना
गाँवों में आदिवासी बैगा, 'आंकदूत' के पौधे से रेबीज़ की बीमारी को ठीक करते हैं। कुत्ते के काटने पर इसके फूल को गुड़ के साथ पीसकर खाने से बीमारी रेबीज़ जल्दी ठीक हो जाती है। इस दवाई को बनाने में आदिवासी बैगा कुछ खास नियमों का भी पालन करते हैं। इन नियमों का यदि उल्लंघन होता है तो फिर दवाई काम नहीं करता।
इस तरह के और भी कई सारे गंभीर बीमारियों का इलाज़ इन बैगाओं के पास होता है, इनके इलाज़ का ख़र्च भी कम होता है, अतः एक ग़रीब व्यक्ति का भी आसानी से इलाज़ हो जाता है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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