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अप्रत्याशित भारी बारिश ने छत्तीसगढ के कोरबा ज़िला में लोगों का जीवन किया अस्त- व्यस्त

हमारे भारत देश में मानसून बारिश मई के अंतिम सप्ताह और जून महीने के पहले सप्ताह में सबसे पहले केरला में आता है। इसी बारिश के बाद किसान लोग अपना खेती बॉडी का काम शुरु करते हैं । इस समय की खेती को खरीफ फसल कहते हैं जो मानसून के पानी में की जाती है । छत्तीसगढ में भी मानसून बारिश का आगाज हो गया है । छत्तीसगढ़ में सबसे पहले मानसून का बारिश बस्तर इलाके में पहुचता है और फिर जगदलपुर होते हुए रायपुर पहुचता है।

कई किसानों के खेत में मेड पूरा का पूरा बह गया

कुछ दिन पहले मानसून का बारिश रायपुर के पास कोरबा जिले में पहुंचा। लेकिन पिछले वर्षों के विपरीत बारिश असाधारण रूप से भारी थी। 24 घंटे में इतनी बारिश हुई कि इससे सड़कें बह गईं और गांवों में बाढ़ आ गई। लोगों के घरों तक में पानी घुस गया । इस बारिश ने कोरबा ज़िला में लोगों का जीवन अस्त- व्यस्त कर दिया।


बारिश के आने से लोगों को काफी परेशानीयां झेलनी पड़ रही है। कोरबा जिले के पोंडी उपरोड़ा विकासखंड के अंतर्गत आने वाले गावं गुरसीया रिंगानिया, सरभोका, बंजारी आदि गांवो में जमकर बारिश हुई । इन गांवों में ज्यादातर आदिवासी रहते हैं। यहाँँ के लोग बताते है की इससे पहले ऐसा बारिश बीते कई सालों से नहीं हुई थी। कई किसानों के खेत में पानी रोकने के लिए जो मेड बनाके रख्खा हुआ था, पूरा का पूरा बह गया पानी में। मेड को बनाने में किसानों का बहुत सारा पैसा और महनत लगता है। कोरोना काल में बड़ी मुश्किल से गाँववालों ने मेड तैयार किया था। इसके आलावा बारिश से कई जगह सड़क पानी में बहने लगा जिससे आवागमन में आने जाने वालोंं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है । सड़क को बहा ले जाने के कारण एक गाँव से दूसरे गाँव का संपर्क टूट गया है।

गुरसीया में कई लोगों के घर में पानी घुसा जिससे काफी नुकसान हुआ, घर में रखा राशन सामान गीला हो गया । जब मैंने ग्रामीणों से बात की तो कुछ मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ थीं। जिन किसानों का खेत अधिक ऊंचाई पर स्थित है, उन्होंने कहा कि वे जल्द ही बुवाई शुरू कर देंगे, जबकि जिन किसानों के खेत जलमग्न हैं, वे परेशान हैं। कुछ किसानों के चेहरे में खुशी की झलक तो दिखाई दे रही है। वही जिसका बारिश के वजह से खेतों का मेड बह गया वह निरास हैं।


कोरबा जिले के रिंगानिया निवासी अंजोर सिंह का 2 खेतों का मेड बह गया जिससे वह निराश है, वही इसी गाँव के एक और ब्यक्त, बीर सिंह, जिन्होंने इसी साल खेत बनवाया था उसका मेड बह गया है। खेत बनवाने मे लगभग 70- 80 हजार रुपये खर्च किया था, सब बह जाने के कारण वह निराश है।


फ़ोन के माध्यम से जानकारी मिली के शहरों मे भी जमकर बारिश हुई जिससे आने जाने मे परेशानी हो रही है। शहरों में उतना नुक्सान नहीं हुआ जितना की गाँवों में हुआ है। छत्तीसगढ़ में लगभग सभी जिलों में खरीफ फसल की खेती कि जाती है। इसमें ज्यादा तर मक्का कि खेती और मुख्य रूप से धान कि खेती करते हैं। क्योंकि मानसूनी बरसात से पुरा जमीन गिला हो जाता है, और बीच बीच में वर्षा होती रहती है तो फसलों को पानी देना नहीं पड़ता ट्यूब वेल से।

वर्षा ऋतु की सुरुआत जून माह से सितम्बर तक माना जाता है। वही शरद ऋतु अक्टूबर से दिसम्बर तक रहता है। जनवरी से अप्रैल तक गृष्म ऋतु रहता है। यही हमारे देश और राज्य के चक्र हैं। हर वर्ष मानसून के बाद किसान अपना खेतों और बाड़ी को हल चलाना शूरु करता है और उसमें बीज कि बुवाई करता है।


यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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