पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित
मडिया का पौधा, सुंदर फूल की तरह दिखता है। यह प्राकृति की सौंदर्य बढ़ाने के साथ ही पौष्टिकता में भी भरपूर होता है। जिससे, कुपोषण दूर किया जाता है। मडिया को ‘रागी’ भी कहते हैं। मडिया की खेती, छत्तीसगढ़ के सभी जिलों में होती है। पूर्व में, मडिया की खेती, परंपरागत तरीके से किया जाता था। जैसे, छत्तीसगढ़ के बस्तर में, किसान, लकड़ियों को जलाकर, उसमें मडिया का बीज बोते थे और बहुत कम मात्रा में, इसकी खेती होती थी। लोगों को, इसके फायदे के बारे में भी पता नहीं था। अब लोग, धीरे-धीरे नए तरीके से मडिया की खेती कर रहे हैंI
मडिया के बीज को भी, धान के बीच की तरह डालते हैं। उसके बाद, उसको उखाड़ कर, दोबारा लगाते हैं। इसमें, जैविक खाद का इस्तेमाल करते हैं और खरपतवारों का नीदाई भी करते हैं। मडिया को पकने में, बहुत कम समय लगता है और पानी भी कम लगता है। जब, मडिया पक जाता है, तो वह भूरे रंग का हो जाता है, और उसका फूल, गेंदे के फूल की तरह, भूरे कलर का दिखाई देता है। फूल के अंदर में, मडिया का छोटा-छोटा बीज होता है, जो सरसों के बीज की तरह दिखता है। और मडिया के फूल की भी कटाई करते हैं।
मडिया को, लोग कई प्रकार से, खाने में इस्तेमाल करते हैं। मडिया का रोटी बनाते हैं। और इसका हलवा भी बना कर खाते हैं। कुपोषित बच्चों को और गर्भवती महिलाओं को, आंगनबाड़ी में, रोज मडिया का हलवा दिया जाता है। मडिया, एक आयुर्वेदिक औषधि भी है। जिनको, हाँथ-पैर में दर्द होता है, या ‘घटिया’ के जो बीमार होते हैं, वे लोग मडिया का भोजन बनाकर खाते हैं। जिससे शरीर को राहत मिलती है।
मडिया का पेज (पेय) बनाने की विधि
बस्तर के आदिवासी, मडिया का उपयोग, खाने में कुछ अलग प्रकार से करते हैं। यहां के आदिवासी, मडिया का पेज बनाकर पीते हैं, जो यहां पर सबसे ज्यादा प्रचलित है। मडिया का पेज, हर घर में बनता है। मडिया का पेज बनाने के लिए, मडिया को चक्की में पीसते हैं और पिसान को रात भर भिगो देते हैं। फिर उसे चावल के साथ पकाते हैं। इसमें डूमर का फल भी डालते हैं। फिर इसे अच्छा से पकाते हैं, पकने के लिए, लगभग 2 घंटा लगता है। इसको, गाढ़ा होते तक पकाते हैं, और इसे तरल रूप में ही बनाते हैं। यहां के आदिवासी, मडिया के पेज को भाजी और नमक का चटनी बनाकर, पीते हैं। इस पेज को गर्मी के मौसम में बनाते हैं। जो शरीर को ठंडक पहुंचाती है। मडिया का पेज, स्वाद में हल्का सा खट्टा होता है। यहां के आदिवासी, जब घर से बाहर, जंगल जाते हैं। लकड़ी या शिकार करने के लिए, तो वे लोग पानी की जगह, मडिया का पेज को लेकर जाते हैं। क्योंकि, मडिया का पेज पीने से, भूख भी मिटता है और प्यास भी मिट जाता है। गर्मी में, बहुत ज्यादा प्यास लगती है। इस स्थिति में, लोग अपने साथ, मडिया का पेज, हमेशा बनाकर पकड़े रहते हैं। और जब भी प्यास लगता है, तो इसे पीते हैं।
अब, धीरे-धीरे लोग, मडिया की खेती करने में रुचि बढ़ा रहे हैं। दसरू राम जी, जो की एक किसान हैं। उनका कहना है कि, “मडिया की खेती करने में, कम लागत लगती है और पानी की भी जरूरत कम पड़ती है। मडिया में, जैविक खाद देने से ही अच्छी पैदावार होती है, रसायनिक खाद की जरूरत नहीं पड़ती और बाजार में भी इसका अच्छा दाम मिल जाता है। बाजार में ₹100 रुपये किलो की दर से, मडिया का बीच बिकता है। जोकि, धान के बीज से कहीं ज्यादा अधिक है। अब तो, ग्राम सेवक द्वारा, अच्छी किस्म के बीज उपलब्ध होती हैं। और वे इसकी खेती के लिए, मार्गदर्शन भी देते रहते हैं। पहले, लोग बरसात में ही मडिया की खेती करते थे। किंतु, अभी जिनके पास सिंचाई का साधन है, वे लोग गर्मी फसल भी लेते हैं। पहले, लोग स्वयं के खाने के लिए ही मडिया की खेती करते थे। लेकिन, आज के समय में, बाजार में बहुत अधिक मात्रा में, मडिया का मांग हो रही है। इस कारण, इसकी खेती में बढ़ावा दिया जा रहा है और अब इसका पंजीयन भी किया जाता है। और इसकी खरीदी, सरकारी सोसाइटी में होगी, जो की ₹5200 रुपये क्विंटल में खरीदी होगी। इससे किसानों को भी फायदा होगा।”
देशी बीज की खरीदी के लिए, सरकार ने जो योजना बनाई है। उससे, किसानों का फायदा भी हो रहा है और उनकी रुचि भी बढ़ रही है। मडिया के बहुत सारे फायदे होते हैं, इससे कुपोषण भी दूर किया जाता है। इसलिए, लोगों को इसे खाने का सलाह दिया जाता है। इसका उत्पादन करने के लिए रसायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इस कारण, यह शरीर को किसी भी प्रकार का, हानि नहीं पहुंचाती है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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