गरियाबंद जिले के गांवों में इस माह माता पहुंचनी का कार्यक्रम चल रहा है। गांव की प्राचीन परम्परा आज भी अक्षुण्ण है, जिसमें गांव की जिम्मेदारीन याया की पहुंचनी मनाया जाता है। आदिवासी अपने परम्पराओं को सादगीपूर्ण मानाते है।
आदिवासी लोग गांव के प्रमुख होते है। और गांव के देव कार्य बैगा, भुमका, आदिवासी ही करते हैं और अपने रिती-निती, पुरे नेग दस्तूर के साथ सेवा गोगो करते हैं। जिम्मेदारीन याया गांव की प्रमुख देवी होती है जो गांव की रक्षा करती है। रोग,राई समस्याओं के प्रकोप से दुर रखती है। फ़सल के दौरान कीट नियंत्रण करने एवं फसल कि अच्छी पैदावार के लिए गांव के लोगों द्वारा जिम्मेदारीन याया (शितला दाई) कि पुजा अर्चना करते हैं। जिम्मेदारीन को खैरोदाई, व शितला दाई भी कहते हैं।
इस दौरान गांव के मातृ शक्ति,पितृ शक्ति, लया लयोर शक्ति, देव गुड़ी सभी जिम्मेदारी याया के देवालय में जाकर अर्जी विनती कर सेवा गोगो करते हैं। गांव के प्रत्येक घर से थाली सजा कर चावल, नींबु, नारियल, हल्दी एवं नीम के पत्ते आदि पुजा समान से मातृ शक्तियां प्रकृति धर्म का पालन कर देवालय जाती हैं।
गांव के सुरक्षा व्यवस्था को बनाये रखने वाली हर समस्या के समाधान करने वाली मार्गदर्शक जड़ी बूटी का ज्ञान रखने वाली माता जिम्मेदारीन की गांव वाले परिक्रमा कर बारी-बारी दर्शन कर सेवा जोहर करती हैं और पुजा करते हैं। बैगा द्वारा शुद्ध पानी, दुध, तेल, हल्दी, नीम का पत्ता आदि को मिलाकर ठण्डई प्रसाद बनाया जाता है। सर्व प्रथम बैगा द्वारा जिम्मेदारीन दाई को ठण्डई का छिड़काव देते हैं एवं देवालय के अन्य देवी-देवताओं को ठण्डई देते हैं। और उसके बाद ही ग्रामीण जन वह ठण्डई लेते हैं। माना जाता है कि इस ठण्डई से शरीर के रोग, छोटे-मोटे बिमारियां आदि दुर हो जाते हैं।
सभी मातृ शक्ति को घर ले जाने के लिए वितरण भी करते हैं। सभी अपने-अपने घर में ले जाकर ठण्डई का छिड़काव करते हैं। यह दिन गांव वालों के लिए खुशी का माहौल रहता है। इस दिन लोग अपनी समस्याओं के दूर होने हेतू मान्यताएं भी रखते हैं, और जिसकी मुराद पूरी हुई होती है वे अपने वादा किये अनुसार मुर्गा, बकरा आदि भेंट प्रदान करते हैं।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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