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इस रोटी के बिना गोंड आदिवासियों में विवाह होना संभव नहीं

सभी जनजातियों की संस्कृति में उनकी परम्पराओं का विशेष महत्व होता है। अपनी परंपराओं को आधार मानते हुए आज भी आदिवासी अपने पुराने रीति-रिवाजों के आधार पर ही कोई भी त्यौहार या घर के किसी विशेष कार्यक्रम को संपन्न करते हैं। सभी जनजातियों में विवाह के समय विभिन्न प्रकार के रस्मों और रिवाजों को पूरा किया जाता है। लेकिन इस आधुनिकता के समय में बहुत से रस्मों रिवाजों को लोग भूलते चले जा रहे हैं और अपनी संस्कृति को पीछे छोड़ते हुए आधुनिक जमाने के तरीकों को अपना रहे हैं।


जैसे विभिन्न रीति-रिवाज आदिवासियों के विवाह के एक अभिन्न अंग हैं, वैसे ही आदिवासियों के अपने भोजन भी इसके अभिन्न अंग हैं। गोंड आदिवासी घरों में विवाह के अवसर पर चावल आटा से बनाया हुआ चीला रोटी अवश्य बनाया जाता है चावल आटा से बना हुआ चीला रोटी शादी आरंभ होने से पहले दुल्हन और दूल्हा को रोटी बनाकर खिलाई जाती है, वही एक ओर जब चुल मिट्टी लेने जाते हैं तब इस चीले रोटी को आदिवासी अपने देवालय में ले जाकर देव स्थल पर भोग लगाते हैं, और वहां उपस्थित लोगों में बांटते हैं। यह व्यंजन तो सामान्यतः सभी के घरों में बनाई जाती है, लेकिन आदिवासी घरों में यह चीला रोटी बनाना एक प्रकार से अनिवार्य माना जाता है, अक्सर आदिवासियों के घरों में चावल आटा जरूर होता हैं। चावल आटा से बनाया हुआ चीला रोटी आदिवासी घरों में नाश्ता के रूप में ही नहीं बल्कि सगाई और विवाह जैसे शुभ अवसर पर भी बनाया जाता है। दुल्हन पक्ष वाले दूल्हा पक्ष वालों से 5 जावर 7 जावर और 9 जावर रोटी की मांग की जाती है, लड़के वाले दुल्हन पक्ष में इन रोटियों को ले जाते हैं, अगर दुल्हन पक्ष वाले जितनी रोटियां मंगाते हैं, उतनी रोटियां नहीं ले जाते तो तुरंत ही शादी करने से इनकार करते हुए दूल्हे पक्ष वालों से रोटी मंगाई जाती है। दूल्हा पक्ष वालों की तरफ से ले जाने वाली इन रोटियों को दुल्हन पक्ष के बुजुर्ग और दूल्हे पक्ष के बुजुर्ग एक साथ मिलकर एक दूसरे को रोटी और गुड़ खिलाते हैं, और गांव के जितने भी लोग हैं उनको भी इन रोटियों को बांटा जाता है।

चीला रोटी बनाती महिला

आदिवासियों में ऐसे ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जो सुनने में कठिन लगता है पर इसका अर्थ सुनने में सरल होता है, जैसे गोंड समुदाय के सगाई या विवाहों में 5, 7 और 9 जावर रोटी मंगाई जाती है, इसका मतलब होता है, कि दुल्हन पक्ष वाले 5 जावर यानी 10 रोटीयां, सात जावर यानी 14 रोटियां और 9 जावर यानी अट्ठारह रोटियां मंगाई गई हैं। रोटियों को रखने के लिए साल के पत्ते का प्रयोग किया जाता है, पत्तल में 7 जोड़ी रोटी अलग पत्तल में और 9 जोड़ी रोटी को अलग से पत्तल में सेम पौधे की लता से अच्छी तरह से बांध दिया जाता है। रोटियों के अनुसार गुड़ भी दिया जाता है।



कोरबा जिले के ग्राम पंचायत पुटूवा ग्राम की एक आदिवासी महिला श्रीमती राधा बाई का कहना है कि हमारे गोंड आदिवासीयों में हमेशा से ही ऐसी परंपरा चली आ रही है, जिसमें दुल्हन पक्ष वाले दूल्हा पक्ष वालों से स्वेच्छा से रोटियां मंगाते हैं, अगर उनके बताए हुए अनुसार रोटियां नहीं ले जाते हैं, तब लड़के पक्ष वालों को जुर्माना देना पड़ता है, और हमारे आदिवासी समाज में चावल आटे से बने हुए चीला रोटी को सबसे पहले हमारे देव स्थल में भोग लगाया जाता है, उसके बाद बाकी लोगों में बांटा जाता है। यह परंपरा हमारे पूर्वजों से चली आ रही है और यह हमारे संस्कृति का एक अहम हिस्सा है। चावल आटे से बने हुए चीला रोटी का प्रयोग हर त्यौहार में हमारे आदिवासी जनजाति के द्वारा किया जाता है, जब इन रोटियों को लड़की पक्ष के द्वारा मंगाया जाता है, तो उन्हें जावर में गिनती की जाती है, आधुनिक गिनती का प्रयोग ना करते हुए पुराने या छत्तीसगढ़ी शब्दों का प्रयोग कर अपनी बातों को लड़के पक्ष वालों के बीच रखी जाती है।" चावल आटे से बने हुए चीला रोटी की मांग सभी क्षेत्रों में नहीं है, कोरबा जिला के कुछ क्षेत्रों में ही ऐसा रिवाज है"


ग्राम पेंड्री जिला कोरिया की रहने वाली श्रीमती धनकुंवर जी का कहना है कि "विवाह जैसे कार्य में अक्सर हमारे गाँव में चावल से बने हुए रोटी का ही प्रयोग किया जाता है, साथ ही साथ महुआ फूल से बने हुए शुद्ध शराब का भी प्रयोग हमारे समुदाय के लोगों के द्वारा किया जाता है।" धन कुंवर जी का कहना है कि उनके क्षेत्र में बिना रोटी और शुद्ध शराब के कहीं पर भी लड़की का हाथ तक नहीं मांग सकते।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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