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आदिवासी समुदाय की अद्वितीय पारंपरिक धरोहर और प्राकृतिक संबंध का प्रतीक 'सरई पत्तल'

मनोज कुजूर द्वारा सम्पादित


हम आपको एक ऐसे आदिवासी गांव के बारे में जानकारी देने का प्रयास कर रहे हैं, जो आज भी पुराने रीति-रिवाजों को अपनाता है। इस गांव का नाम है कोडगार क्षेत्र, और यहां के लोग पुराने रीति-रिवाजों को अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं। कोडगार क्षेत्र के आदिवासी लोग अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों को गहरे अनुशासन में अपनाते हैं, और यह उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। उन्होंने अपने घरों में त्योहारों का आयोजन करने की प्रथा बनाई है, जिसमें वे अपनी समृद्धि, सामाजिक मेलजोल, और सांस्कृतिक धरोहर को मनाते हैं।


इन रीति-रिवाजों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए, आपको आदिवासी समुदाय के बीच रहकर उनके रहन-सहन को समझना होगा। इससे आप उनके रीति-रिवाज और वेशभूषा को और भी गहराई से समझ सकेंगे।


मैं आपको अब अपने अनुभव से आदिवासियों के बारे में जानकारी देने का प्रयास कर रहा हूँ, जिनके बीच मैंने अपना जीवन बिताया है। आजकल मैं यह समझता हूँ कि हमें अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए, चाहे वो हमारे रहन-सहन और खान-पान हो या हमारी वेशभूषा हो। कुछ समय पहले हमारी संस्कृति धीरे-धीरे लुप्त हो रही थी, लेकिन हाल ही में मुझे आदिवासी समुदायों में एक बदलाव दिखा, जो अपने पुराने रीति-रिवाजों को फिर से अपनाने का प्रयास कर रहे हैं।

गंगा बाई

हमने पोड़ी ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले कोडगार ग्राम के एक निवासी, जिनका नाम है गंगा बाई, से बात की। वह एक 45 साल की आदिवासी महिला है। उन्होंने हमें अपने रीति-रिवाजों के बारे में और भी अधिक जानकारी दी। उन्होंने बताया कि हमारे गांव में किसी भी समारोह, विवाह या किसी भी प्रकार के कार्यक्रम के समय, गांव के सभी लोगों के घरों को सपरिवार आमंत्रित किया जाता है। इन कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए गांव के हर घर के लोग सरई (साल) पत्ता तोड़ने के लिए अपने घर से जंगल की ओर निकल पड़ते हैं। यह एक महत्वपूर्ण और अद्वितीय रीति-रिवाज है जो कोडगार ग्राम के आदिवासी समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है।

सरई पत्ता

सरई पत्ता तोड़ने के बाद, इस पत्तल को थाली के आकार में सिलकर कार्यक्रम हो रहे आदिवासी के घर पहुंचाया जाता है। जिसे इस गांव क्षेत्र में "पतरी" के नाम से जाना जाता है। यह एक अद्वितीय रीति-रिवाज है, जो अन्य क्षेत्रों में देखा नहीं जाता। अगर किसी के घर से पत्तल नहीं दिया जा पाता है, तो उन्हें दुकान से खरीदकर भी प्रदान किया जाता है। यह परंपरा पुराने समय से चल रही है और आज भी गांव के लोग इसे महत्वपूर्ण मानते हैं। गांव के बुजुर्गों के अनुसार, यह रीति-रिवाज गांव की धरोहर है और इसका पालन कई वर्षों से हो रहा है, जो आज भी गांव के इस माहौल में जारी है।


अब हम आपको बताते हैं कि आदिवासियों के कार्यक्रम क्यों अनूठा होते हैं


हम सभी ने देखा है कि बड़े कार्यक्रमों में अलग-अलग अंदाज से आयोजन होता है। जहां पर बड़े-बड़े शहरों में डीजे जैसे वाद्य यंत्रों का प्रयोग कर कार्यक्रम संपन्न करते हैं। लेकिन हमारे आदिवासी क्षेत्र में, आदिवासी लोग अपने पुराने रीति-रिवाज के साथ ही सभी त्योहार और कार्यक्रम का आयोजन करते हैं। यहां, गांव के लोग स्वयं गीत गाकर और कर्मा नृत्य करके सभी कार्यक्रमों को संपन्न करते हैं। किसी भी कार्यक्रम या त्योहार के समय, गांव के सभी लोग एक स्थान पर इकट्ठा होते हैं, और पूजा और अर्चना की शुरुआत की जाती है। गांव के सभी लोग एक-दूसरे का कमर पकड़कर कर्मा नृत्य करते हैं, चाहे वह कोई भी कार्यक्रम या त्योहार हो। गांव सभी कार्यक्रमों में गांव के सभी लोगों को नेवता भेजा जाता है। यह एक अद्वितीय और अनमोल परंपरा है जो हमारे आदिवासी समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है।


आदिवासियों का खानपान भी अनूठा होता है। कार्यक्रम के दिन, आदिवासी चावल से बने कोसना को पानी से भींगाकर "कोसना रस" तैयार करते हैं, खास के तरीके से बने चावल के इस रस को "कोसना" कहा जाता है, और यह आदिवासियों का प्रिय पेय पदार्थ माना जाता है। जब कभी भी आदिवासियों की देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की जाती है, तो सरई पत्तों के बने दोना में ही पूजा-अर्चना के रूप में अर्पण की जाती है। जिसे कार्यक्रम में शामिल होने वाले लोगों को भी दिया जाता है। अगर किसी आदिवासी घर में विवाह समारोह किया जाता है, तो वहां के बैगा समुदाय के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति को बड़े सम्मान के साथ अपने घर लाए जाते हैं, और उन्हें मान-सम्मान के साथ बिठाया जाता है। इन बैगा आदिवासियों को अन्य आदिवासियों द्वारा राजपुरोहित के रूप में माना जाता है और उनके बिना कोई भी आदिवासी कार्यक्रम संपन्न नहीं होते हैं। यह एक बहुत महत्वपूर्ण और अनूठा परंपरा है जो गांव के आदिवासी समुदाय में सम्पन्न होती है।


क्या आप जानते हैं हमारे गोंड समुदाय में बैगा आदिवासियों को राजपुरोहित के रूप में क्यों माना जाता है?

बैगा आदिवासी राजपुरोहित पवन सिंह बैगा

गोंड आदिवासियों के अनुसार, बैगा आदिवासी, पुराने समय से ही गांव एवं समुदाय के राजपुरोहित, होते हैं। हमारे गांव की परंपरा के अनुसार, बैगा आदिवासी को गांव में एक विशेष दर्जा दिया गया है, क्योंकि उन्हें प्रकृति का अद्वितीय ज्ञान होता है।


बैगा आदिवासी गांव के लोगों के लिए प्रकृति से बहुत करीब होते हैं और वे प्रकृति की गोद में एक सरल जीवन जीते हैं। वे प्रकृति के साथ अपना जीवन संबंध बहुत मधुर मानते हैं और उनके पास प्रकृति के विभिन्न पहलुओं का बहुत अधिक ज्ञान होता है।


इन आदिवासियों का जीवन जंगलों में निवास करने पर आधारित है, और वे वनों से फल, फूल, और कंदमूल का प्रयोग अपने जीवन में करते हैं। इसके अलावा, बैगा आदिवासी अपने जीवन के लिए वनों से प्राप्त औषधियों के बारे में भी बहुत ज्ञान रखते हैं। वे अपने तरीकों से जगह-जगह वनों में पौधों की पैदावार बढ़ाने का प्रयास करते हैं, और यदि गांव के किसी का भी स्वास्थ्य खराब होता है, तो वे इसे अपने उपायों और ज्ञान से ठीक करने का प्रयास करते हैं। बैगा आदिवासी अपने धार्मिक अद्भुतताओं और आदिवासी औषधियों की तैयारी में भी माहिर होते हैं, जो उनके समुदाय के लिए महत्वपूर्ण हैं।


बैगा आदिवासियों का जीवन एक अद्वितीय सांस्कृतिक समृद्धि और प्राकृतिक संबंध का प्रतीक है। उनके पुराने रीति-रिवाज, प्रकृति के साथ के गहरे संबंध, और आदिवासी जीवन के लिए प्राकृतिक उपचार का ज्ञान हमें दिखाते हैं कि यह समुदाय अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बचाए रखने के लिए संकल्पबद्ध है। उनके रीति-रिवाज, जैसे कि सरई पत्ता और कोसना रस, उनके जीवन में महत्वपूर्ण होते हैं और इन्हें बिना किसी परिवर्तन के बचाए रखने का प्रयास किया जाता है। इसके अलावा, बैगा आदिवासी समुदाय के लोग अपने धार्मिक और आदिवासी आदतों को बनाए रखने के लिए कई कठिनाइयों का सामना करते हैं, लेकिन वे इसे महत्वपूर्ण मानते हैं। इससे हमें एक बहुत मूल्यवान दृष्टि प्राप्त होती है कि हमारी सांस्कृतिक विविधता और प्राकृतिक संबंध कितने महत्वपूर्ण होते हैं।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।


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