त्यौहार हमारे सांस्कृतिक जीवन का आंतरिक हिस्सा रहे हैं। हमारे समाज में त्योहारों को महत्वपूर्ण वार्षिक आयोजनों और मौसमों से जोड़ा जाता हैI भारत के त्यौहार विश्व भर में विख्यात हैं, जैसे दशहरा, दीपावली, ईद इत्यादि। इनके अलावा भी भारत के छोटे-छोटे गाँव और कस्बों में विभिन्न स्थानीय त्यौहार मनाए जाते है।
ऐसा ही एक महत्वपूर्ण त्योहार है छत्तीसगढ़ का अक्ती त्यौहार जो खेतों में बीज बोआई से पहले मनाया जाता है। इस त्यौहार को अलग-अलग गाँव में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। किसी गाँव में इसे गर्मी के दिनों में मनाया जाता है, और कहीं इसे बारिश के मौसम में मनाया जाता है। हालांकि इस त्यौहार के समय और रीति-रिवाजों के विभिन्न रूप हो सकते हैं, लेकिन उन सभी गाँवों में यह त्योहार मानने की भावनाएँ एक सामान हैं। गाँव वाले इस त्यौहार के माध्यम से प्रार्थना करते हैं की उनकी फसल अच्छी हो। “अक्ति त्यौहार” का मतलब होता है साल का प्रथम बड़ा त्यौहार। यह त्यौहार खेतों में फसल उगाने वाले किसान से जुड़ा हुआ है और आषाड़ लगने से पहले मनाया जाता है। इस त्यौहार को मनाए बिना लोग नए साल का कोई भी कृषि संबंधी कार्य नहीं करते हैं।
पूजापाठ करते हुए
ऐसे मनाते है अक्ति त्यौहार
इस त्यौहार में गाँव के स्थानीय देवी-देवता की पूजा की जाती है। इन देवी- देवताओं के नाम हैं ठाकुर देव, बूढ़ी माई मरही माता, रक्षा देव, इत्यादि। विभिन्न गाँवों में अलग-अलग नाम से देवी देवताओं को जाना जाता है। इन देवी देवताओं की पूजा करने के बाद ही गाँव वाले अपने खेतों में साल का पहला हल चलाते हैं।
अपने स्थानीय देवी देवताओं की पूजा करते हुए
सावन सिंह बैगा बताते है कि इस त्यौहार को उनके पूर्वज सदियों से मनाते चले आ रहे हैं। आदिवासी इलाकों में लोगों और खेतों के बीच घनिष्ठ संबंध है। इस त्यौहार के द्वारा भूमि को माता के रूप में पूजा जाता है। गाँव के देवी- देवताओं की पूजा आवश्यक है, क्योंकि देवी- देवता ही लोगों की रक्षा करते हैं।
अक्ति त्यौहार मनाने के लिए गाँव के बैगा द्वारा गाँव के लोगों को मुनादी कर बुलाया जाता है। सभी गाँव वालों को इस त्यौहार में शामिल होने के लिए बुलाया जाता है। पूरा गाँव मिलकर यह निर्णय लेता हैं की किस दिन त्यौहार को मनाया जाए ताकि फसल बोने में कोई दिक्कत न हो। त्यौहार की तारीख तय होने के बाद, यह जानकारी ग्रामीणों में फैला दी जाती है ताकि सब गाँव वाले इसकी तैयारी कर सके। गाँव के निवासियों को त्योहार से एक दिन पहले पानी भरने के लिए कहा जाता है ताकि अगले दिन पानी की कमी न हो।
देवतालय में हल चलाते हुए
“अक्ति त्यौहार” का प्रारम्भ एक महुआ के पेड़ के नीचे ठाकुर देव की पूजा से किया जाता है। इस पूजा में काली मुर्गी, नारियल, धूप, अगरबत्ती की जरूरत पड़ती है, जो गाँव के बैगा द्वारा व्यवस्थित किया जाता है। गाँव के लोग अपने साथ बांस की बनी हुई टोकरी में थोड़ा सा धान, गोबर का लेप लगा हुआ दूबी का पौधा, और नारियल लेकर आते हैं। सभी लोग पूजा करते हैं। पूजा के दौरान गाँव के कुंवारे लड़कों द्वारा “हल चलने” की रीति का पालन किया जाता है। इस रीति में युवा लड़के “हल जोतने” के बहाने महुआ के पेड़ के चारों ओर एक साधारण लकड़ी का उपयोग करते हुए “जुताई” करते है।
गाँव में पानी बाँटते हुए
अगले अनुष्ठान में नारियल और मुर्गी की पूजा अर्चना की जाती है और मुर्गी की बलि दी जाती है। मुर्गी की बलि देने के बाद उसको एक पानी से भरे मटके में रखा जाता है। इस मटके को तीन-चार व्यक्ति एक तख्ते पर लटकाकर अपने कंधे के सहारे गाँव के घर- घर लेकर जाते है। घरों में जाकर आम के पत्तों द्वारा थोड़ा- थोड़ा पानी वितरण करते हैं। घर के सदस्य इस पानी को किसी भी पात्र में ग्रहण कर सकते हैं। उसके बाद पानी को छत में फेंक दिया जाता हैं। इसके पीछे अर्थ यह है कि इस पानी की तरह इस बरस भी वर्षा अधिक हो और खेतों में धान की फसल अधिक हो। गाँव के लोग पानी लेने के बदले में कुछ ना कुछ दान देते हैं जैसे कि धान, चावल, या पैसा। इसके साथ-साथ बूढ़ी माई, और जितने भी देवी- देवता हैं, सबकी पूजा की जाती है। इस तरीके से गाँव में अक्ति त्यौहार मनाया जाता है इस विश्वास के साथ की फसल अच्छी होगी और लोगों को समृद्धि प्राप्त होगी।
यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजैक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, और इसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है।
यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था
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