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जानिए गरियाबंद जिले के निवासी कौन से फल के बीज का उपयोग करके खांसी ठीक करते हैं

नोट- यह आर्टिकल केवल जानकारी के लिए है, यह किसी भी प्रकार का उपचार सुझाने की कोशिश नहीं है। यह आदिवासियों की पारंपारिक वनस्पति पर आधारित अनुभव है। कृपया आप इसका इस्तेमाल किसी डॉक्टर को पूछे बगैर ना करें। इस दवाई का सेवन करने के परिणाम के लिए Adivasi Lives Matter किसी भी प्रकार की ज़िम्मेदारी नहीं लेता है।

हर्रा का पेड़ गरियाबंद जिले के जंगलों में पाया जाता है

ऐसा माना जाता है कि जब भी मौसम बदलता है, ठंड और खांसी बहुत आम हो जाती है। यह गांवों और शहरों दोनों में देखा जाता है। लेकिन जबकि शहर के लोग खुद को ठीक करने के लिए एक एलोपैथिक गोली खाएंगे, भारत के गांवों और छोटे शहरों में, लोग अभी भी अपने दिन-प्रतिदिन की बीमारियों को ठीक करने के लिए पारंपरिक जड़ी-बूटी पर निर्भर हैं।

श्रीमती जमुना बाई कंवर आज भी हर्रा बीज का इस्तेमाल करती हैं

ऐसा ही एक छत्तीसगढ़ का वन उत्पाद है जो खांसी को ठीक करता है। इस फल का नाम है हर्रा। श्रीमती जमुना बाई कंवर आज भी इसी दवाई का इस्तेमाल करती हैं। जमुना बाई ग्राम बनगवां जिला गरियाबंद की रहने वाली निवासी है। उन्होंने हमें बताया की हर्रा का पेड़ जंगल में मिलता है। उस फल को तभी तोडा जाता है जब वह पक जाता है। पके हुए फल को तोड़ने के लिए जमुना बाई स्वयं ही जंगल जाती हैं। फलों को घर लाने के बाद, जमुना बाई इसे हर्बल दवा में बदलने के लिए नीचे दिए गए चरणों का पालन करती हैं :

  • सबसे पहले तोह फल में से बीज को निकाल लिया जाता है।

  • उसके बाद, हर्रा बीज को कुछ दिनों तक तेज धूप में सुखाया जाता है।

  • हर्रा बीज सूख कर तैयार हो जाने के बाद हर्रा के बीच को किसी बोरी में या टोकरी में भरकर रख देते हैं। ये कई साल तक ख़राब नहीं होता है।

हर्रा का इस्तेमाल : जमुना बाई कंवर ने बताया की जब भी उनको या उनके परिवार वालो को खांसी होती है तो वह कुछ बीज निकालकर अंगारे पर रख देती है। बीज को अचे से भून लेना होता है। जब हर्रा बीज पूरी तरह से भुन जाता है, तब उसे मुंह में लेकर चबाना परता है। तीन-चार दिन ऐसे रोज़ चबाने से खांसी ठीक होजाती है। बीज में कड़वा स्वाद होता है लेकिन बहुतअच्छा फ़ायदा करती है।

हर्रा का कच्चा फल भी बहुत उपयोगी है। हर्रा के हरे बीज का उपयोग घरों की लिपाई -पुताई के लिए किया जाता है। सबसे पहले जंगल से कच्चे फल को तोड़कर घर लाया जाता है। इसके बाद उसे 1 से 2 दिनों तक पानी में डूबो कर सड़ाया जाता है। सड़ जाने के बाद उसमें तालाब से मलवट ला कर मिला दिया जाता है जिससे यह काले रंग में बदल जाता है, जो घरों की लिपाई-पुताई में काम आता है।


यह आलेख आदिवासी आवाज़ प्रोजेक्ट के अंतर्गत मिजेरियोर और प्रयोग समाज सेवी संस्था के सहयोग से तैयार किया गया है।

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