छत्तीसगढ़ के मैदानों और पहाड़ियों में महुआ का पेड़ एक आम दृश्य है। इस क्षेत्र के निवासियों का इस पेड़ के साथ एक गहरा नाता है। पेड़ का हर हिस्सा जैसे की पत्तियाँ, छाल, फूल या फल चिकित्सीय रूप से फायदेमंद माना जाता है।
छत्तीसगढ़ के मुकूंवा गाँव और कोरबा जिले की रहने वाली छत्तन देवी ने हमें बताया कि उनके गाँव में महुआ के कई पेड़ हैं और वह उनके फूल से लड्डू बनाती हैं। महुआ के लड्डू बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं। सेहत को भी इससे लाभ मिलता है। छत्तन देवी अपने पति लल्लू राम के साथ रहती हैं। इनका गांव चारों तरफ पर्वत से घिरा हुआ है। पूर्व में मेडउर, पश्चिम में करमा-घाट और दक्षिण में गुंजी-घाट है। इन्होंने जंगल के किनारे घर बनाया है। उन्हें जंगल के विभिन्न प्रकार के पेड़, पौधे, फूल, और फूल की जानकारी है। इनका परिवार जंगल से उत्पन्न फलों और सब्जियों का सेवन करता है जैसे:- चार, तेन्दु, भेलवां, कुरलु, छिन्द इत्यादि।
छत्तनदेवी महुआ के लड्डु बनाने के सूखा महुआ चुनते हुए
जानते हैं महुए के पेड़ के बारे में।
महुआ का पेड़ मार्च-अप्रैल में सफेद हल्के पीले रंग वाले फूलों से खिलता है। यह फूल छोटे होते हैं। उनमें एक मीठी गंध होती है। मई-जून के माह में इसमें फल लग जाता है। महुआ के कच्चे फल हरे रंग के होते हैं। पकने पर हल्के पीले रंग के हो जाते हैं। महुआ के फल के छिलके को निकालने के बाद उसका फल लाल और पीले रंग का दिखाई देता है। इसके पत्ते हाथों के आकार जितने बड़े और बादाम जैसे मोटे होते हैं। महुआ की लकड़ी बहुत ही वजनदार और मजबूत होती है। हमारे आदिवासी पूर्वजों का यह कहना है कि महुआ के पेड़ की छाया के नीचे काफी ठंडक रहती है। इस पेड़ के संदर्भ में यह भी कहा गया है कि महुआ की जड़े, पत्ती, फूल और फल इत्यादि का रोजाना सेवन करने से व्यक्ति का शरीर जीवन भर निरोगी रहता है।
ऐसे बनाते हैं महुआ के लड्डू।
इस क्षेत्र में लोगों को महुआ के बने हुए लड्डू बहुत पसंद है और लोग उत्साह से यह लड्डू बनाते और खाते हैं।
महुआ के लड्डू के लिए आवश्यक सामग्री:-
●एक किलो महुआ के सूखे हुए फूल ●एक पाव मूंगफली ●एक पाव सफेद तिल्ली/तिल ●स्वाद अनुसार चीनी
छत्तन देवी महुआ के फूल से लड्डु बनाते हुए
जानते हैं मज़ेदार लड्डू बनाने की विधि।
सबसे पहले छत्तन देवी ने एक किलो महुआ के सूखे फूल लिए और उसके अंदर में जो जीरा जैसा पदार्थ होता है। उसको निकाल दिया। छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की भाषा में इसे “झिनी” बोलते हैं। इसके बाद फूल को साफ पानी में 2-3 बार धोया, ताकि अंदर की सारी “झिनी” निकल जाए। छत्तन देवी ने फिर चूल्हे में आग जलाकर 1 लीटर पानी चढ़ाया। पानी वाले बर्तन के ऊपर एक और तवा रखा। जिसमें उन्होंने महुआ के फूल को फैला दिया। इस तरह फूल को पानी के भाप से पकाया जाता है। पकने के बाद उस महुआ को सूपा में रखकर तुरंत मुसर से कूट लिया जाता है।
इसके बाद छत्तन देवी दूसरी कढ़ाई में मूंगफली और तिल्ली को भून लेती हैं। भूनने के बाद मूंगफली का छिलका हाथ से मलकर निकाल देती हैं। इसके बाद मूंगफली, तिल्ली और महुआ, तीनों चीजों को मिक्स करके कढ़ाई में रखकर इसे आग में हल्का भूना जाता है। इस समय उसमें चीनी मिलाई जाती है। 10 मिनट तक छत्तन देवी एक चम्मच के माध्यम से लड्डू मिक्स को भुनती रहती हैं। उसके बाद कढ़ाई को चूल्हे से निकाल लेती हैं। लड्डू की सामग्री थोड़ी सी ठंडी होने पर वह मुट्ठी भर मिक्स लेकर लड्डू बनाती जाती हैं। ज्यादा ठंडा होने पर लड्डू ठीक से नहीं बनता है और फूट जाता है।
महुआ के पकवान बनाने का भी एक नियम होता है। आदिवासी लोग महुआ का त्यौहार मनाए बिना महुआ का पकवान नहीं बना सकते हैं और ना खा सकते हैं।
महुआ के फूल, मूंगफली और तिल्ली के मिक्स से बनाये गये लड्डु
महुआ के फायदे
महुआ एक ऐसा पेड़ है जिससे फूल एवं फल के रूप में एक साल में दो बार फसल मिलती है। इस पेड़ को बहुत अधिक रखरखाव की आवश्यकता नहीं है। वृक्षारोपण के संदर्भ में पेड़ों के बीज को खेतों- खलिहानों अथवा सड़कों- जंगलों में बिखराव कर इसका पौधे को उगाया जाता है। इससे ग्रामीणों को कम मेहनत से ही दो बार कीमती और नकदी फसल मिलती है।
महुआ है रोज़गार का साधन।
इन दिनों ग्रामीण, महुआ के फूल जैसे नकदी फसल को उत्साह से चुन रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में गर्मी होने के बावजूद लोग परिवार सहित उत्साह से महुआ के फूल को चुनते हैं। वहीं एक महीने के बाद इसी पेड़ से लोग डोरी प्राप्त करते हैं। जिसे लोग बिक्री कर स्कूली बच्चों की पढ़ाई या कृषि जैसे महत्वपूर्ण कार्य में आने वाले खर्च को आसानी से पूरा करते हैं। ग्रामीण इस दोहरी फसल देने वाले प्रति पेड़ से ₹2 से ₹5000 तक की कमाई कर लेते हैं। अनेक ग्रामीणों के खेतों में महुआ के दर्जनों पेड़ होते हैं। वही जंगल के पेड़ों से मज़दूर वर्ग के लोग इसका लाभ प्राप्त करते हैं।
सबसे अच्छी बात यह है कि अन्य फसलों के उत्पादन में मेहनत करने की तरह इसमें मेहनत करने की आवश्यकता नहीं होती है। ना तो निराई करनी पड़ती है और ना ही खुदाई। इसे तोड़ने की भी आवश्यकता नहीं होती है। क्योंकि महुआ का फूल अपने समय में गिरता है। महुआ के फूल को गिरने के लिए धूप की आवश्यकता होती है। महुआ के फल भी परिपक्व होते ही पेड़ से अपने आप गिरने लगते हैं। जिससे ग्रामीण चुनकर घर लाते हैं। जहां महुए को सुखाने या डोरी का छिलका निकालने के बाद बिक्री करते हैं।
आदिवासी और महुआ के पेड़ का रिश्ता तो गहरा है ही। लेकिन यह आदिवासियों के जीवन-यापन के लिए भी महत्वपूर्ण पेड़ है। अगर आप कभी छत्तीसगढ़ आएं तो इन महुआ के लड्डुओं को ज़रूर चखें। स्वाद के साथ साथ यह आपके शरीर के लिए भी फायदेमंद है।
यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है। इसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है।
यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था
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