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आइए जानें ग्राम तीव्रता के रहस्यमय तालाब के बारे में

पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित


ग्राम तीव्रता के ग्राम वासियों का कहना है कि, यह तालाब पुराने समय के लोगों ने बनवाया था। इस तालाब को रातों-रात ही निर्माण किया गया था तथा इस तलाब में आज भी देव मुनि निवास करते हैं। यह तलाब सामान्य आकार का है, लेकिन यह बहुत गहरा तलाब है और इस तालाब का पानी कभी भी नहीं सूखता है। इस तालाब के चारों ओर कोसम और पीपल के वृक्ष लगे हुए हैं। इस तालाब के किनारे झालर मंदिर स्तिथ है, जहाँ प्रत्येक साल चैत व कुंवार माह में ग्रामीणों द्वारा जोत जलाए जाते हैं। इस तालाब को जोगनहा तालाब के नाम से जाना जाता है।


ग्रामीणों के अनुसार इस तालाब में सात बहनिया और मंलाही दाई निवासरत हैं। गांव के बुज़ुर्ग कहते हैं कि, तालाब के निर्माण होने के कुछ साल बाद यहाँ से एक तेली बारात पानी पीने के लिए रुकी थी। वे लोग तालाब के पास एक पेड़ के छाँव में आराम करने के बाद, तालाब में पानी पीने के लिए गाड़आ में उतरे, तो तालाब का पानी अचानक से सूख गया और केवल तालाब के बीचों बीच में, एक ही पसर पानी था। वे लोग जब उस पानी को पीने लगे तो, अचानक से पूरा तलाब भर गया और उसी में सारे बाराती डूब गए। तब से लेकर वर्तमान समय में भी, नए शादी-शुदा लोग वहां नहीं जाते हैं। क्योंकि, वैवाहिक जोड़ों के वहाँ जाने पर उनकी मृत्यु हो जाती थी।

प्राचीन काल का तालाब

बड़े बुजुर्ग आगे बताते हैं कि, हम लोग जब छोटे-छोटे थे, तब नहाने के लिए उसी गाड़आ के चक्के में बैठकर नहाते थे। सुनसान रहने पर, हमें हमारे घर वाले, वहां नहाने से मना करते थे। और बरसात के समय में यहाँ से नगारा और मजीरा का आवाज़ दूर-दूर तक सुनाई देता था।


यह तलाब उस समय बहुत ही चमत्कारी तलाब था। गांव वाले उसी तालाब के पानी से चावल को धोकर खाना बनाते थे। अगर वह पांच कुरो का चावल है तो, पूरे गांव वालों के लिए खाना हो जाता था। यहाँ का पानी कभी गंदा नहीं होता था, हमेशा साफ-सुथरा रहता था। परन्तु, धीरे-धीरे उस तालाब की शक्ति कम गई है। क्योंकि, पहले जैसे पूजा-पाठ मानने वाले नहीं हैं। पहले बहुत पूजा पाठ करते थे। इसलिए, उस तालाब में रहने वाले देवी-देवता गांव वालों का साथ देते थे और उनको आशीर्वाद के रूप में, उनको पानी के माध्यम से सहायता प्रदान करते थे।


तालाब के किनारे, मरकी माता का झालर विराजमान है, जिसे आज तक गांव वाले उनकी सेवा संस्कार करते आ रहे हैं। गांव वालों का कहना है कि, बाहर के लोग इसे भंग कर रहे हैं, यहॉं पर गंदगी कर देते हैं। जिससे हमारे देवता नाराज हो रहे हैं, और कुछ पूजा-पाठ में कमी होने के कारण भी इस तालाब की शक्ति कम होते जा रही है। लेकिन यहां पर आज भी एक चमत्कार होता है, शादी-विवाह में हमेशा यहीं के पानी से चावल बनया जाता है। चूँकि थोड़े से चावल से भी बहुत सारा खाना बनता है।


जहां पर पूजा-पाठ का स्थान बनाया गया है, वहां पर कोई भी व्यक्ति गंदगी नही करता है और जो लोग वहां पर गलत करते हैं, तो उन्हें तुरंत कुछ ना कुछ नुकसान या हानि हो जाती है। इस तलाब में पीले रंग का कपड़ा पहन कर नही जा सकते। क्यूंकि, यहां के लोगों का कहना है कि, जो नई नवेली विवाह कर आई हुयी हैं। उनके लिए यह तालब खतरा है, अगर नहाने के लिए चले जाते हैं तो, कुछ न कुछ हो जाता है। लोगों का मानना है कि, रात में वहां के देवता, सात बहनिया रूप से बाहर आते हैं और घूमते रहते हैं। और फिर वापस तालाब में गायब हो जाते हैं, यह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।


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