नोट- यह आर्टिकल केवल जानकारी के लिए है, यह किसी भी प्रकार का उपचार सुझाने की कोशिश नहीं है। यह आदिवासियों की पारंपारिक वनस्पति पर आधारित अनुभव है। कृपया आप इसका इस्तेमाल किसी डॉक्टर को पूछे बगैर ना करें। इस दवाई का सेवन करने के परिणाम के लिए Adivasi Lives Matter किसी भी प्रकार की ज़िम्मेदारी नहीं लेता है।
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भारत के आदिवासियों ने सैकड़ों वर्षों से औषधीय पौधों के बारे में ज्ञान विकसित किया है। मामूली चोट के इलाज से लेकर टूटी हड्डियों को ठीक करने तक, आदिवासी उपचारकर्ता ज्ञान की खान हैं। छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का मानना है कि उनके जंगलों और बाड़ियों में 36 जड़ी-बूटियां और पौधे पाए जाते हैं जो मानव जाति के लिए बेहद फायदेमंद हैं। इन औषदीय पौधों को भाजी भी कहा जाता है क्योंकि उनको पका के खाया जाता है। इन्हीं में से एक है कचनार का पेड़ जो ज्यादातर आदिवासी ग्रामीण क्षेत्रों में पाया जाता है। हर साल फरवरी-मार्च के महीनों में यह पेड़ पूरी तरह फूलों से भर जाता है । इसके फूल, पत्तियां, तना, और जड़ किसी ना किसी बीमारी का निराकरण करने में सक्षम है।
कचनार पेड़ को एक सुंदर और सदाबहार उपयोगी वृक्ष के रूप में जाना जाता है । इसकी कई प्रजातियां होती है जिनमें गुलाबी कचनार अधिक लाभकारी होता है। कचनार के फूलों की कली हरी व गुलाबी रंग की होती हैं। आयुर्वेद में इसे अधिकतम चमत्कारी और औषधीय गुणों से भरपूर पेड़ माना जाता है। कचनार के फूल और कलियां वात रोग और जोड़ों के दर्द के लिए विशेष रूप से लाभकारी है।
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रूवाड़ गांव के विजयकृष्ण नागेश बताते हैं कि कचनार का पेड़ भारतवर्ष के सभी क्षेत्रों में पाया जाता है जिसमें सबसे अधिक आदिवासी ग्रामीण जंगली क्षेत्रों में पाया जाता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए भाजियों का सेवन करना अधिक लाभकारी होता है। जंगली क्षेत्रों के आस-पास के सभी आदिवासी लोग नियमित रूप से हरी भाजियो का वर्षों से सेवन करते आ रहे हैं।
कचनार वृक्ष की जानकारी रखने वाले ग्राम वासियों का मानना है कि आमतौर पर इसकी कलियों की सब्जी बनाई जाती है। इनके फूलों का भी रायता भी बनाया जाता है, जो खाने में स्वादिष्ट तो होता ही है, साथ ही इससे रक्त पित्त, फोड़े, फुंसियों की समस्या भी ठीक होती है। आयुर्वेद में कचनार के छाल को शरीर के किसी भी भाग में बनी गांठ को गलाने के लिए उपयोग किया जाता है। इसके अलावा रक्त विकार व त्वचा रोग जैसे- दाद, खाज - खुजली, एक्जिमा, फोड़े-फुंसी आदि रोगों में भी इसकी छाल बेहद लाभकारी है।
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इन बीमारियों में है अधिक लाभकारी औषधि-
शरीर में कहीं पर सूजन आने से कचनार की जड़ को पानी में पीसकर लेप बनाएं; लेप को गर्म कर सूजन वाली जगहों पर लगाने से आराम मिलता है ।
मुंह पर छाले होने से कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ा सा कत्था मिला कर उपयोग करने से छालों की तकलीफ में तुरंत आराम मिल जाता है ।
भूख न लगने से कचनार पेड़ की फूल की कलियां घी में भूनकर सुबह शाम खाने से कुछ ही दिनों में भूख बढ़ जाती है ।
गैस की समस्या में कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर 20 मिलीलीटर काढ़े में आधा चम्मच पिसी अजवाइन मिलाकर प्रयोग करने से गैस की समस्या से निजात मिलती है । इसे नियमित रूप से सुबह-शाम भोजन करने के बाद पीने से पेट फूलने की समस्या और गैस की तकलीफ दूर होती है ।
खांसी-दमा में शहद के साथ कचनार की छाल के काढ़े दो चम्मच दिन में तीन बार सेवन करने से खांसी और दमा में आराम मिलता है ।
दांतों का दर्द के लिए कचनार के पेड़ की छाल को जलाकर उसकी राख से मंजन करते हैं। सुबह एवं रात को खाना खाने के बाद मंजन करने से दांतों का दर्द तथा मसूड़ों से खून का निकलना बंद होता है। इसकी छाल को उबाल कर शीशी में रख सकते हैं । इस पानी से 50 मिलीलीटर गर्म करके रोजाना 3 बार कुल्ला करने से दांतों का हिलना, दर्द, खून निकलना, मसूड़ों की सूजन और पायरिया खत्म हो जाता है ।
बवासीर होने पर कचनार की एक चम्मच छाल को एक कप छाछ के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से बवासीर में खून गिरना बंद हो जाएगा। कचनार की कलियों के पाउडर को मक्खन और शक्कर मिलाकर 11 दिन खाने से पेट के कीड़े भी साफ हो जाते हैं ।
थायराइड के लिए कचनार के फूल अच्छी दवा है। लिवर में किसी तरह की तकलीफ हो तो कचनार की जड़ों का काढ़ा बनाकर पीना बेहद लाभकारी होता है।
ध्यान रखने योग्य बात- कचनार वनस्पति देर से हजम होती है और इसका सेवन करने से कब्ज की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है। इसके लिए कचनार का सेवन करने के साथ रोजाना पपीता का सेवन करना चाहिए। आयुर्वेदिक औषधियों में ज्यादातर कचनार की छाल का उपयोग किया जाता है इसलिए छाल का प्रयोग करते समय ध्यान रखें कि कचनार का पेड़ को नुकसान न पहुंचे ,और सेवन की मात्रा का ध्यान रखें।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।