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Covid-19 वैक्सीनेशन के बारे में कुछ आदिवासियों में जागरूकता की कमी, नहीं लगाना चाहते हैं टीका

कोविड-19 महामारी भारत में अपने चरम पर पहुँच गया है। दिल्ली, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे कई बड़े राज्य अपने स्वास्थ्य तंत्र की बदहाली साफ देख रहे हैं। कहीं ऑक्सीजन नहीं मिल रहा है तो कहीं वेंटिलेटर नहीं मिल रहा है। ऐसे में हमारे पास कोरोना से लड़ने का एक ही उपाय है, और वह यह है कि हम सब वैक्सीन लगवाएँ। लेकिन छत्तीसगढ़ के कुछ आदिवासी गाँवों के लोग टीका लगवाने से मना कर रहे हैं। इसलिए भारत के आदिवासी इलाकों में तुरंत जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है।

वैक्सीन से बुखार आना

टीकाकरण के तुरंत बाद, किसी-किसी व्यक्ति को उल्टी होती है और किसी-किसी को बुखार आता है। इसके साथ-साथ कई लोगों को शरीर में दर्द भी होता है। स्वास्थ्य विभाग और स्वास्थ्य कर्मचारी "मितानिन" द्वारा बताया गया है कि यह सब वैक्सीनेशन के लक्षण होते हैं और इससे शरीर को कोई हानि नहीं पहुँचती है। लेकिन कुछ लोगों और व्हाट्सप्प मैसेजों के द्वारा ये अफवाह फैलाई जा रही है कि टीका लगाने से लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचता है। गरियाबंद जिले के कुछ गाँवों में ऐसी अफवाह फैला दी गई कि वैक्सीन लेने की वजह से किसी व्यक्ति की मृत्यु हो गई, जबकि असल में उनकी मृत्यु कोरोना पॉजिटिव होने की वजह से हुई थी। ऐसी अफवाह फैला कर लोगों में वैक्सीनेशन के खिलाफ डर पैदा किया जा रहा है। सोशल मीडिया में भी ऐसे बहुत सारे भ्रामक पोस्ट शेयर किए जा रहे हैं जिसे देखकर आदिवासी समुदाय के युवा डरे हुए हैं। उन्हें डर लगता है कि अगर हमने वैक्सीन लगाई तो हमारे साथ भी यही होगा।


अभी तक छत्तीसगढ़ में 45 साल से अधिक उम्र के लोगों को टीका लगाया गया है। इसमें आदिवासी लोगों की अच्छी संख्या रही है। लेकिन सोशल मीडिया पर सक्रिय 45 साल से कम उम्र के नौजवान वैक्सीन के बारे में फैले अफवाहों को पढ़कर बहुत चिंतित दिखाई दे रहे हैं और वैक्सीन लगाने से मना कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के सभी गाँवों में में मितानिन एवं आंगनबाड़ी कार्यकर्ता लोगों को जागरूक करने का काम कर रही हैं लेकिन ऐसी परिस्थितियों में उनको और ज्यादा साधन की जरूरत है।


गाँव में वैक्सिनेशन की दिक्कतें :

इस विषय पर हमने छत्तीसगढ़ गरियाबंद जिले के आदिवासी ग्राम की एक मितानिन से बात की। उनका नाम है पुनिया बाई। उन्होंने बताया की सबसे पहली समस्या तो यह है कि लोग 6 फ़ीट की दूरी का पालन नहीं करते हैं। गाँवों में घर एक दूसरे से सटे हुए होते हैं इसलिए किसी न किसी कारण से लोगों का एक दूसरे से मिलना-जुलना होता ही रहता है। उन्होंने बताया, "गाँववालों का कहना है कि हमारे गाँव में कोई भी कोरोना पेशेंट नहीं है तो हम लोगों को कहाँ से कोरोना होगा? तो फिर हम क्यों टीका लगाए? टीका लगाने से अगर हमारी जान चली जाएगी तो हमारे घर वालों को कौन संभालेगा, कौन जिम्मेदारी लेगा?"


व्हाट्सएप के माध्यम से भी अफवाह फैलाई जा रही है कि वैक्सीनेशन से लोगों की मृत्यु हो रही है इसलिए गाँववाले भी डरे हुए हैं। गाँव के आदिवासी लोगों द्वारा कुछ कुछ गंभीर सवाल भी उठाए जा रहे हैं, जैसे कि "यह कैसी बीमारी है जिसमें सरकारी लोग और अमीर लोग ठीक हो जाते हैं और आम जनता मर जाती है? गजब का कोरोना वायरस है, जिसकी कोई दवा नहीं बनी, फिर भी लोग 99% ठीक हो रहे है! यह कौन सी जादुई बीमारी है, जिसके आने से सब बीमारी खत्म हो गई और अब जो भी मर रहा है कोरोना से ही मर रहा है!"


मैंने गाँव देव परसुली, गरियाबंद के थानेश्वर नेताम से बात की। उन्होंने हमें बताया कि वे फिलहाल वैक्सीन नहीं लगवा सकते क्योंकि उनको जंगल में काम करना है। अभी उनके पास बीमार पड़ने का समय नहीं है। वे एक किसान हैं और इस वक़्त छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता इकट्ठा करने का मौसम चल रहा है। "टीका लगाने से बुखार आता है और इस समय मेरे गाँव में तेंदूपत्ता की कटाई चल रही है। अगर मैं बीमार पड़ गया तो मेरी रोजी-रोटी छिन जाएगी। मेरी आय का मुख्य साधन तेंदूपत्ता है, इससे मेरे कुछ महीनों का राशन निकल जाता है।"


थानेश्वर ने ये भी कहा की अगर सरकार टीका लगवाना ही चाहती है तो पहले लोगों के शरीर की जांच करवाए ताकि लोगों को पता चले कि उनका शरीर टीका को सह पायेगा कि नहीं। "बहुत सी जगहों से सुनने को मिल रहा है कि लोग टीकाकरण से मर रहे है। अगर सरकार मुझे टीका लगवाना चाहती है तो पहले मेरे शरीर की जांच करें कि टीकाकरण से मुझे कोई नुकसान नहीं होगा। और ये भी सुनिश्चित करे कि अगर मुझे कुछ हो जाता है तो मेरे परिवार की जिम्मेदारी सरकार उठाएगी, उसके बाद ही मैं टीका लगवाउँगा। रही बात कोरोना वायरस की तो अभी तक मेरे गांव में कोई भी कोरोना का पेशेंट नहीं निकला है और ना ही मेरे गाँव से कोई बाहर आ-जा रहा है तो हमारे गाँव में टीका लगाने से क्या फर्क पड़ेगा।"


सरकार को गरीब किसानों की चिंताओं को सुनना होगा और उन्हें टीका के बारे में उचित आश्वासन दे कर विश्वास दिलाना चाहिए।


युवाओं के बीच अफ़वाहें :

मेरे अनुभव में आदिवासी युवाओं में बहुत ज्यादा अफवाह फैली हुई है। वे सोचते हैं कि,

1. कोरोना से सिर्फ अमीर लोग ठीक होते हैं। गरीब लोग वैक्सीन लगाने के बाद और ज्यादा बीमार पड़ते हैं।

2. वैक्सीन लगाने के बाद कोरोना हो जाता है फिर गाँव के लोगों को अस्पताल में भर्ती कर दिया जाता है। जिसके बाद उनको देखने वाला कोई नहीं होता।

3. गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को गलत रिपोर्ट दिया जाता है। उनको बुखार और खांसी नहीं होती है फिर भी पॉजिटिव बता दिया जाता है और अस्पताल में भर्ती कर दिया जाता है। ये कोई घोटाला है, लोगों की किडनी व्यवसाय करने के लिए।

4. घोटाला होने पर किसी को पता नहीं चलता क्योंकि कोविड से मरने वाले लोगों का शव घरवालों को नहीं दिया जाता है।


ऐसे अफवाहों को दूर करना बहुत जरूरी है। इसके लिए घर- घर जा कर लोगों को जागरूक करना होगा।


ऐसे में छत्तीसगढ़ की राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने आदिवासी समाज के प्रमुखों से वर्चुअल मीटिंग में वैक्सीनेशन के लिए सहयोग की बात कही है। ये मुलाकात 03/05/2021 सोमवार को हुआ था। राज्यपाल ने सहयोग की अपील के साथ-साथ लोगों को टीकाकरण के लिए जागरूक करने की बात कही। इस मीटिंग में सर्व आदिवासी समाज युवा प्रकोष्ठ जिला गरियाबंद के नरेंद्र ध्रुव एवं सरपंच संघ अध्यक्ष मनीष ध्रुव, निरंजन मरकाम, शंकर ध्रुव ने हिस्सा लिया। सभी आदिवासी प्रमुखों ने कोविड-19 महामारी में सरकार के साथ खड़ा रहने का भरोसा दिया और टीकाकरण के लिए अपने समाज को जागरूक करने का हर संभव प्रयास का विश्वास दिलाया।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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