कोरोना पान्डेमिक लॉकडाउन के चलते मैं कई महीनों से अपने रिश्तेदारों से नहीं मिल पायी। लेकिन कुछ दिन पहले मैंने सोचा की मैं अपनी बुआ से मिलूं। उनका घर मेरे घर से बस दो-चार कदम की दूरी पर है। उनके घर पहुंचने पर मैंने देखा की कोरोना महामारी में जहाँ बहुत लोगों ने अपनी जीविका खोया है, वही मेरी बुआ ने बॉस से पोल्ट्री घर बनाने का एक नायाब तरीका निकाला है ताकि वह एक व्यवसायी बन सकें। आमतौर पर, पोल्ट्री शेड का निर्माण करने के लिए बहुत अधिक धन और निर्माण सामग्री की आवश्यकता होती है। लेकिन मेरी बुआ ने गुणवत्ता में समझौता किए बिना लागत में कटौती करने के लिए बांस का इस्तेमाल किया।
मेरी बुआ का नाम है बुधु लक्ष्मी देबबर्मा और वह एक सरकारी कर्मचारी हैं। उनके परिवार में चार सदस्य हैं--मेरी बुआ, उनके पति, और दो बेटे। वह सुधा चंद्रा गाँव में रहती है जो सिपाहीजला जिले में स्थित है।
मेरी बुआ एक उद्यमी बनना चाहती हैं और अपना खुद का पोल्ट्री फार्म स्थापित करना चाहती हैं ताकि वह और उनका परिवार बेहतर आय अर्जित कर सकें। मैंने उनसे पूछा की बॉस का पोंट्री शेड कितने पैसे में बनता है तो उन्होंने बताया की इस में २० हजार रूपये की लागत आयी है। इस तरह के अधिकांश शेड स्टिल्ट्स पर बनाए जाते हैं, लेकिन यहां उन्होंने इसे थोड़ा अलग तरीके से बनाया है। यहाँ कोई स्टिल्ट नहीं है।
मेरी बुआ के अनुसार बांस बहुत सुविधाजनक है क्योंकि यह शेड बनाने की लागत में कटौती करता है। "भले ही बांस इन दिनों बहुत महंगा हो गया है, लेकिन यह अन्य सामग्रियों की तुलना में अभी भी सस्ता है। इस शेड को बनाने के लिए हमने कंक्रीट के खंभों लगा दिए और बांस की दीवारों से एक बड़ा सा कमरा बना दिया," उन्होंने कहा।
आजकल बाजार में एक बॉस Rs. ४० में मिलती है। बांस के अलावा, उन्हें सीमेंट के खंभे और जाल खरीदना पड़ा। अब देखना है की मुर्गियां कब लायी जाएंगी।
इस बांस के पोल्ट्री शेड को बनाया है कारपेंटर बुढूंग देबबर्मा ने। बुढूंग जी बचपन से ही बांस का काम करते आरहे हैं। उन्होंने कहा कि उनके जैसे कई लोगों की तरह, वह एक बहु-कार्यकर्ता हैं। वह कुछ मौसमों के दौरान किसान के रूप में काम करता है और फिर बाकी के दौरान बढ़ई का काम करता है। उनके लिए बांस का घर बनाना आम बात है लेकिन बांस का पोल्ट्री शेड बनाना एक नया अनुभव है।
त्रिपुरा में बांस से बोहोत सारी सामग्री बनायीं जाती है । अनादिकाल से, हम अपने जीवन के प्रत्येक चरण में बांस का उपयोग करते रहे हैं। यह परंपरा आज भी जारी है क्योंकि यहाँ के लोग इस पर्यावरण के अनुकूल सामग्री के उपयोग के नए तरीके खोजते रहते हैं। आप लोग भी अपने गांव में कम पैसों से ऐसा बनावट चाहते हो तो बनवा सकते हैं।
This article is created as a part of the Adivasi Awaaz project, with the support of Misereor and Prayog Samaj Sevi Sanstha.
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