top of page

आदिवासी क्षेत्रों में चार (चांहर) आय का एक अच्छा माध्यम बन रहा है

हर साल पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी चार (चांहर) फल इकट्ठा करने में व्यस्त रहते हैं आदिवासी महिलाएं जंगलों में ही रहना ज्यादा पसंद करती हैं और जंगल से प्राप्त फल-फूल को इकट्ठा कर उसे बेचकर अच्छा खासा आमदनी प्राप्त करते हैं, जिससे उनका घर खर्च निकल जाता है। आदिवासी क्षेत्रों में खासकर पहाड़ी इलाकों में काम मिल पाना बहुत ही ज्यादा मुश्किल होता है, जिससे आदिवासियों को अपना घर चलाने के लिए वनोत्पादों पर ही आश्रित रहना पड़ता है। इन्हीं वनोत्पादों में एक है चार (चांहर) जो गर्मियों के दिनों में पाए जाते हैं।

चार के सूखे दाने

आदिवासी सुबह से शाम तक चार का फल इकट्ठा करते हैं, तब जाकर थोड़ा बहुत चार इकट्ठा हो पाता है, चार फल का दाना छोटा-छोटा होने के कारण, उसे हाथों से बीनने में बहुत ही कठिनाई होती है। चार फल को इकट्ठा करने के बाद उसे धूप में सुखाया जाता है, फिर पानी से उसे अच्छी तरीके से धोया जाता है। उसके बाद फिर से धूप में सुखाया जाता है, सुखाने केबाद ही उसे दुकानों में या बाजारों में बिक्री की जाती है। इस साल चार दाने के दानों की मूल्य काफी ज्यादा रही है। इसलिए इस साल चार के दाने ज्यादा इकट्ठा भी किए गए हैं। पहले लोग चार दाना इकट्ठा कर, बरसात के दिनों में खाने के रूप में उपयोग में लाया करते थे। साथ-साथ चार के दाने का जो अंदर का बीज होता है, उसे तरह-तरह के मिठाई पकवान में भी डाला जाता है, छोटे-छोटे बच्चे चार दाने जो गांव क्षेत्रों में चिरौंजी के नाम से जानते हैं, उसे शक्कर में मिलाकर गर्मी के दिनों में खाने के रूप में प्रयोग करते हैं। साथ-साथ उस चिरौंजी का तेल भी निकाला जाता है।



कहा जाए तो आदिवासी अपनी आजीविका के लिए जंगलों पर ही निर्भर रहना पसंद करते हैं, अगर हम जंगलों की बात करें तो, पहले इतने घने जंगल थे कि अपनी आवश्यकता वाली जो चीजें होती थी, उसे पाना बहुत ही आसान होता था, लेकिन अब जंगल तो सिर्फ नाम मात्र के लिए ही रह गए हैं, कुछ दशकों से जंगल की इतनी अंधाधुंध कटाई शुरु हो गई है कि जो आदिवासी जंगलमें निर्भर रहा करते थे, उन्हें जंगल या पहाड़ी क्षेत्र को छोड़कर शहर की ओर अपने जीवन यापन करने के लिए जाना पड़ रहा है। अगर आदिवासियों को पैसे की कमी होती है तो आदिवासी लोग जंगलों में जाकर विभिन्न प्रकार के फल फूल को इकट्ठा करते हैं। उसे दुकानों में बिक्री करते हैं। जिससे आदिवासियों को कुछ पैसे भी मिल जाते हैं और अपने जरूरतों के सामान को खरीदने में वे सक्षम होते हैं, पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी महिलाओं ने हमें बताया कि पहाड़ी इलाका में काम मिल पाना बहुंत ही ज्यादा मुश्किल होता है। इसलिए गाँव क्षेत्र के लोग व पहाड़ी क्षेत्र के आदिवासी ज्यादातर जंगलों में ही रहते हैं ताकि जंगलों से कुछ न कुछ खाने के लिए फल-फूल इकट्ठा कर सकें।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

bottom of page