मनोज कुजूर द्वारा संपादित
गांव के आदिवासी गर्मी हो या बरसात दोनों ही सीजनों में भुट्टा की खेती करते हैं और इसे आदिवासी अपने स्थानीय भाषा में जोंधरी बोलते है। यह भुट्टा खाने में जितना अच्छा लगता है, उतना ही फायदेमंद भी है। अधिकतर लोग इस भुट्टे को आग में भून कर या उबालकर खाना पसंद करते हैं। लेकिन, आदिवासी इस भुट्टे को कई तरीकों से खाते हैं जो बहुत कम लोगों को पता होगा। भुट्टे को तो खाने में उपयोग करते ही हैं, साथ ही उसके पत्तों को भी जानवरों के खाने लिए भी उपयोग में लाया जाता है। इस तरह से इसके कई उपयोग हैं।
आदिवासियों की खान-पान अन्य लोगों से कुछ अलग ही होती है। सामान्य लोगों की अपेक्षा आदिवासियों में अनेकों प्रकार की भिन्नता पाई जाती है। ठीक ऐसे ही बरसात में होने वाली फसल, 'भुट्टा' को खाने में होती है। जहाँ लोग भुट्टा को सिर्फ भून कर खाते है तो वही आदिवासी इसे कुछ अलग तरीके से भी खाते है। आइये जानते है, आदिवासी इसके अलावा कौन कौन तरीकों से खाते है। अंगीठी की आग में भुनकर तैयार किए जाने वाले भुट्टे को तो आप सभी जानते ही है। इस तरीके से भुन कर खाने से भुट्टा बहुत ही अच्छा लगता है, ऐसा कहा जाता है कि यह भुट्टा चाँवल से बनी भात से ज्यादा लाभदायक होता है। आदिवासी इस भुट्टे को भुनने के साथ साथ इसकी रोटी भी बनाते है, जो बहुत स्वादिष्ट लगता है जिसे आदिवासी खूब पसंद करते हैं।
इस रोटी को बनाने के लिए इस भुट्टा के दाने को मुसरी से अलग करके कूटते है या पीस लेते है।पीसने के बाद उसे गुड़ के साथ मिलाकर तेल में बड़ा की तरह छान कर खाया जाता है। जब भुट्टा आवश्यकता से अधिक होता है, तो इसे सूखा कर रख देते है। इस सूखे हुए भुट्टा को आदिवासी गर्मी के दिनों में उबालकर भी खाते है, जिसे आदिवासी उसन्ना बोलते है। भुट्टे को तरह खाने से भी बहुत लाजवाब लगता है, जब सूखे भुट्टा को अच्छे से उबाल लिया जाता है, फिर जब यह उबल जाता है, तो कुछ मात्रा में आवश्यकता के अनुसार पुराने सूखे महुआ को डाल कर फिर से उबाला जाता है। जिससे उस भुट्टा में मीठापन आ जाता है और उस भुट्टा का स्वाद बदल जाता है। लेकिन पहले की अपेक्षा अब बहुत कम आदिवासी किसान ही भुट्टा की खेती करते है।
जंगलों के किनारे बसे गांवों के भुट्टा बाड़ियों में जंगली सुअर का आतंक बहुत ज्यादा होता है। जंगली सुअर बाड़ियों में लगे भुट्टे को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। जंगली सुअर भुट्टा को खाते ही है साथ ही भुट्टे के पौधों के जड़ को भी खा कर पौधों को पूरी तरह नष्ट कर देते हैं। भुट्टा को बहुत सारे उपयोग में भी लाया जाता है जैसे कि अगर भुट्टा को भुनने के बाद जो मुसरी बचता है, उसे बैलो को या अन्य जानवरों को खिलाया जाता है। जो बैलो के चारा का काम आता है। और जो उसका पौधा बचता है उसको भी छोटे छोटे टुकड़े कर गाय बैलों को खिलाया जाता है। आदिवासी भुट्टे की सभी चीजों को उपयोगी बना कर अपने उपयोग में लाते हैं।
जब मैं ग्राम झोरा के दरस कुंवर से पूछा तो उन्होंने बतलाया कि पहले जब धान-चाँवल की अच्छी उपज नही होती थी, लोग बहुत ज्यादा भुखमरी की समस्या से परेशान थे, खाने के लिए चाँवल मिलना मुश्किल होता था। खेती तो करते थे लेकिन उस हिसाब से फसल नही हो पाता था। ऐसी स्थिति में कभी-कभी लोगों को भूखे भी रहना पड़ता था। उस समय भुट्टा की पैदावार भी बहुत ज्यादा होती थी, तो उस समय इस भुट्टा की बासी बनाकर भी खाते थे। सुखा कर रखे हुए भुट्टे को ढेंकी (धान से चाँवल निकालने वाली चीज) से कूटकर चाँवल की तरह ही इसे पकाते थे। इसको पकाते समय हल्का चाँवल डाल कर उसमें थोड़ा गुड़ या शक्कर भी मिला दिया जाता था, जिससे भुट्टा की बनी बासी मीठा हो जाय, जो की सब्जियों के साथ खाने में बहुत ही लज़ीज़ लगता था।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
Comments