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एक आदर्श गाँव, बिंझरा, जहां महिलाएं गाँव को साफ रखते हुए खाद बना रही हैं

आप सभी ने देखा होगा कि शहरों में सफाई कर्मचारी घरों से कचरा इकट्ठा करते हैं। शहरों में ऐसे भी सफाई कर्मचारी रहते हैं जो वहां के सड़क और गलियों को साफ़ रखते हैं। ये सफाई कर्मचारी नगर पालिका के द्वारा निर्धारित किये जाते हैं। इस काम के लिए उन्हें वेतन दिया जाता है।

बिंझरा गाँव की महिलाएं सप्ताह में एक दिन घर-घर से कूड़ा इकठ्ठा करती हैं I Photo by Varsha Pulast

छत्तीसगढ़ के गाँवों में भी अब सफाई अभियान चलाया जा रहा हैं जहाँ औरतें बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। ये कर्मचारी गाँव में पड़े कचरे को उठाकर कचरे भरने वाले डिब्बे में भरकर उसे दूर फेंकने के लिए ले जाते हैं। गाँव में सिर्फ गली के ही कचरे का नहीं बल्कि घर में पड़े कचरे को भी उठाकर ले जाया जाता है। शहरों में देखा जाए तो कचरा साफ करने वाले हर दिन आते हैं। लेकिन गाँव में कर्मचारी प्रत्येक सप्ताह कचरा साफ करने के लिए आते हैं।


इस अभियान के द्वारा औरतों को आमदनी का एक नया स्रोत मिला है। साथ ही साथ, गाँव में जैविक खाद का भी उत्पादन अच्छे से हो रहा है। गाँव की महिला सफाई कर्मचारी कचड़ा को अलग कर, bio-waste , जैसे सब्जियों के छिलके, गोबर, सड़े हुए फल इत्यादि को कम्पोस्ट पिट में दाल देते हैं। कुछ दिन बाद ये कचड़ा जैविक खाद में बदल जाता है जिसके बाद इसकी बिक्री की जाती हैं। हमारे बिंझरा गाँव में 10 औरतों ने सफाई का काम संभाला हैं। इन औरतों को महीने में 5,000 रूपये मिलते हैं।

महामाया समूह की सदस्य सरोजिनी बाई बताती हैं की सफाई के काम से महिलाओं की आमदनी बड़ी है

मेरे गाँव में गॉँववालों ने सामुदायिक जीवन की समस्याओं के समाधान के लिए कई समूह बनाए हैं। कुछ समूह गायों की देखभाल करते हैं, कुछ समूह महिला कल्याण आदि की देख-रेख करते हैं। इन समूहों में से एक है महामाया समूह जिसने गाँव की स्वच्छता बनाए रखने की जिम्मेदारी ली है। ये महिला सफाई कर्मी दाल इसी समूह से जुड़कर काम करती हैं। महामाया समूह की सदस्य, सरोजिनी बाई ने बताया की हर एक सप्ताह में अलग-अलग महिलाएं साफ सफाई करने के लिए आती हैं और इस काम को करने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती है। "बल्कि हमें गर्व है कि हम अपने गाँव को साफ़ रखते हैं । इससे हमें अच्छी आमदनी भी मिल जाती हैं"। उन्होंने कहा कि ग्रामीण ज्यादा कचरा जमा नहीं करते हैं और इसलिए उन्हें सप्ताह में एक बार इकट्ठा करना काफी है।

हमें ये भी पता चला की हमारे बिंझरा ग्राम को एक आदर्श ग्राम घोषित किया गया है। इसकी शुरुआत सर्कार द्वारा 11 अक्टूबर 2014 को किया गया था। योजना के अंतर्गत प्रत्येक सांसद को 2016 तक एक-एक ग्राम पंचायत और 2019 तक दो-दो ग्राम पंचायत को चुनकर आदर्श ग्राम में परिवर्तित करना है। इस योजना के तहत, ग्रामीणों को विभिन्न बुनियादी सेवाओं तक पहुंच प्राप्त होगी ताकि समाज के सभी वर्गों की न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके। इस योजना के अंतर्गत वे सभी काम आते हैं जिससे एक गाँव की उन्नति हो। गाँवों को साफ रखना एक ऐसा तरीका है जिससे कई लोगों को रोजगार मिल सकता है और साथ ही ग्रामीणों की स्वच्छता भी बनी रहती है।


पहले देखा जाए तो महिलाओं को घर में ही रहने के लिए बोला जाता था । उन्हें काम के लिए बाहर नहीं जाने देते थे। पहले पुरुषों को लगता था कि महिलाएं सिर्फ चूल्हा चौकी का ही काम कर सकती हैं। लेकिन, अब महिलाएं इतनी शिक्षित हो गई हैं कि वह अपना काम स्वयं कर सकती हैं। गांवों में कई परियोजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं जिनके माध्यम से वे जीविकोपार्जन कर सकते हैं और अपने निर्णय स्वयं ले सकते हैं। हालाँकि, हमें यह भी पूछना चाहिए कि क्यों कुछ कार्य अभी भी सिर्फ औरतों से संबंधित हैं। ऐसा क्यों है कि केवल महिलाओं से खाना पकाने और साफ-सफाई करने की अपेक्षा की जाती है? क्या एक समय ऐसा आएगा जब स्त्री और पुरुष दोनों ही हर पेशे में कंधे से कंधा मिलाकर समान रूप से काम करेंगे?


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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